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Rajesh kumari's Blog – December 2012 Archive (4)

सर्व नाश

थर्रा गये  मंदिर ,मस्जिद ,गिरिजा घर   

जब  कर्ण  में पड़ी  मासूम की चीत्कार 

सहम गए दरख़्त के सब फूल पत्ते  

बिलख पड़ी हर वर्ण हर वर्ग  की दीवार 

रिक्त हो गए बहते हुए चक्षु  समंदर 

दिलों में  नफरतों के नाग रहे फुफकार

उतर  आये   दैत्य देवों  की भूमि पर 

और ध्वस्त किये अपने देश के संस्कार  

 दर्द के  अलाव में  जल  रहे हैं जिस्म                  

 नाच रही हैवानियत मचा…

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Added by rajesh kumari on December 25, 2012 at 7:38pm — 24 Comments

री तू क्यूँ जिन्दा है ??

लिखी गई फिर पल्लव पर नाखून से कहानियां   

खिलखिलाई गुलशन में नृशंसता की निशानियां  

छिपे शिकारी जाल बिछाकर ,चाल समझ में आई 

उड़ती चिड़िया ने नभ से न  आने की  कसमें खाई 

बिछी नागफनी देख बदरिया मन ही मन घबराई 

गर्भ से निकली ज्यों ही बूँदे,  झट उर से चिपकाई 

सकुचाई ,फड़फडाई तितली देख देख ये सोचे 

कहाँ छिपाऊं पंख मैं अपने कौन कहाँ कब नोचे 

देख  सामाजिक ढांचा…

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Added by rajesh kumari on December 20, 2012 at 11:30am — 22 Comments

हिम सौंदर्य

अनुपम अद्दभुत कलाकृति है या द्रष्टि का छलावरण

जिसे देख विस्मयाभिभूत हैं द्रग और अंतःकरण

त्रण-त्रण चैतन्य औ चित्ताकर्षक रंगों का ज़खीरा

पहना सतरंगी वसन शिखर को कहाँ छुपा चितेरा

शीर्ष पर बरसते हैं रजत,कभी स्वर्णिम रुपहले कण

जिसे देख विस्मयाभिभूत हैं आँखें और अंतःकरण…

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Added by rajesh kumari on December 16, 2012 at 10:30pm — 11 Comments

सुनो क्या कहे अंतर्मन

रवि  किरणों  को कंटक सम  चुभता   

 नोच डाला  गिद्धों ने जो गिरी का बदन

करते हैं दोहन उसकी भुजाओं का 

कैसे दिखाए नदी शिव को अपना वदन

जब चाहा संहार किया काटी ग्रीवा   

आज चुपचाप बिलखते हैं अरण्य सघन

मासूम गंगा की छीन ली पावनता  

बहाते  गन्दगी धुलते  मैले कुचैले  वसन  

शून्य धरा शून्य अम्बर बचा क्या 

प्रदूषित जल ,पर्यावरण , प्रदूषित पवन 

क्या दोगे धरोहर अगली पीढ़ी को 

कुछ तो बचा लो ,सुनो क्या कहे …

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Added by rajesh kumari on December 2, 2012 at 10:34am — 10 Comments

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"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
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