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रवि  किरणों  को कंटक सम  चुभता   

 नोच डाला  गिद्धों ने जो गिरी का बदन

करते हैं दोहन उसकी भुजाओं का 

कैसे दिखाए नदी शिव को अपना वदन

जब चाहा संहार किया काटी ग्रीवा   

आज चुपचाप बिलखते हैं अरण्य सघन

मासूम गंगा की छीन ली पावनता  

बहाते  गन्दगी धुलते  मैले कुचैले  वसन  

शून्य धरा शून्य अम्बर बचा क्या 

प्रदूषित जल ,पर्यावरण , प्रदूषित पवन 

क्या दोगे धरोहर अगली पीढ़ी को 

कुछ तो बचा लो ,सुनो क्या कहे  अंतर्मन

***************************************

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 16, 2012 at 8:57am

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी हार्दिक आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 16, 2012 at 8:56am

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी रचना पसंद करने हेतु हार्दिक आभार आपका 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 16, 2012 at 1:24am

इस आर्त पुकार पर हार्दिक बधाई.

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 16, 2012 at 12:18am

पावन सरिता गंगा कि होती दुर्दशा पर चिंता प्रकट करती रचना पर बधाई स्वीकारें आद. राजेश कुमारी जी.सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 15, 2012 at 5:28pm

अन्वेषा जी हार्दिक आभार आपकी अनमोल टिपण्णी हेतु 

Comment by Anwesha Anjushree on December 15, 2012 at 4:34pm

Shabdheen...........


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 3, 2012 at 7:38pm

आदरणीय डॉ .सूर्या बाली जी आपकी उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए दिल से शुक्रिया 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 3, 2012 at 4:16pm

राजेश कुमारी जी नमस्कार बहुत सुंदर रचना....बेहद संजीदा और साहित्यिक रचना के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें।

खास कर ये पंक्तियाँ बहुत उम्दा हैं....

प्रदूषित जल ,पर्यावरण , प्रदूषित पवन 

क्या दोगे धरोहर अगली पीढ़ी को ... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 3, 2012 at 2:11pm

प्रिय प्राची जी मेरी रचना पर आपकी उपस्थिति और प्रतिक्रिया मेरी कलम में मानो  उर्जा की तरंगे लेकर आई हैं उत्साह वर्धन हेतु दिल से आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 3, 2012 at 12:19pm

बहुत बहुत बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी, पर्यावरण की दिन प्रति दिन प्रदूषित होती स्थिति को इतनी संवेदनशीलता के साथ इस काव्य में समेटने के लिए....काश सबका अंतर्मन यह ज़रूर सुने..की पृथ्वी जो हमें जीवन देती है, उसको हमने इस लायक भी नहीं छोड़ा की वो हमारे आगे आनी वाली पीड़ीयों को भी यूं ही सम्हाल सके.... जल वायु धरती सब बिलख रहे है..

इस संवेदनशील सन्देश हेतु पुनः बधाई 

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