For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Manan Kumar singh's Blog – November 2016 Archive (7)

गजल(दूकानें सजी हैं.....)

गजल#(नोट बंदी के फलितार्थ)-7

* एक वार्त्तालाप*

******************************

दुकानें सजी हैं ,दिखाते खरीदो,

कहें बंद जिनकी,चलो अब कहीं तो।1(आज का सच)



अभी दौर मुश्किल हुआ जा रहा है,

उठेगी ही अर्थी,ठहर भर घड़ी तो।2(चेतावनी)



बुझे रात के सब मुसाफिर सुबह तक,

जलाती बहुत है प्रखरता मुरीदो!3(अनुभूति)



बड़े जोड़ से तो बटोरे थे' टुकड़े

जलाना, बहाना अखरता मुरीदो!4(आत्मकथ्य)



हुआ ही कहाँ कुछ?बता दो बखत है,

बचा है वसन बिन नहाना… Continue

Added by Manan Kumar singh on November 27, 2016 at 3:30pm — 8 Comments

गजल(सबकुछ....)

22 22 22 22
सच होता कब कहना सबकुछ
लाख करो क्या बनता सबकुछ?1

ढाते सब बेमतलब बारिश
झूठ कहाँ हो जाता सबकुछ?2

शमशीरें ले हाथ खड़े हैं
कर सकते क्या बौना सबकुछ?3

पंथ पता बेढ़ंग चले हैं
कौन कुपथ हो सकता सबकुछ?4

कितनों ने दी कुर्बानी, पर
याद भला कब रहता सबकुछ?5

खींच रहे बस रोज लकीरें
कोई कह दे, लिखता सबकुछ?6

मिहनत की ताबीर 'मनन'मय
हो सकता क्या जीना सबकुछ?7
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

Added by Manan Kumar singh on November 22, 2016 at 10:16am — 7 Comments

चोर(लघु कथा)

गाँव में चोरों का प्रकोप बढ़ रहा था। लोग परेशान थे।आये दिन किसी-न-किसी घर में चोरी हो जा रही थी। ग्राम प्रधान ने नई योजना बनाई। पूरा गाँव स्थिति से निपटने को तैयार था।रात चढ़े कालू सेठ के घर चोर पहुँचे।घर का मौन उन्हें ज्यादा मुखर लगा,कालू सेठ का चिर परिचित खर्राटा जो सुनने को नहीं मिला। वे भागने लगे।पूरा गाँव होहकारा देकर पीछे पड़ गया। पर चोर तो चोर थे।निकल गए दूर तक,चोरोंवाले गाँव की तरफ।प्रधान जी के नेतृत्व में उनके गाँव का जत्था आगे बढ़ता जा रहा था।पर यह क्या? थोड़ा ही आगे जाने पर वे…

Continue

Added by Manan Kumar singh on November 18, 2016 at 6:30pm — 4 Comments

गजल(अगर हो नागवारी....)

1222 1222 1222 1222

अगर हो नागवारी तो भुलाना भी जरूरी है

भले कुछ हो हमारा पास आना भी जरूरी है।1



बटोरे थे बहुत धन अबतलक कुछ इस कदर मैंने

पचाना हो गया मुश्किल बताना भी जरूरी है। 2



चुने मैंने महज चमचे बदलने को पुराने सब

असीमित नोट हैं अब तो गिनाना भी जरूरी है।3



पड़े छापे बहुत अबतक पड़ेंगे और भी कितने

अगर हों साथ कुछ अपने दिखाना भी जरूरी है।4



पकड़ में आ न जाये धन सँजोया वक्त गाढ़े का

जलाना या बहा गंगा नहाना भी जरूरी… Continue

Added by Manan Kumar singh on November 13, 2016 at 12:56pm — 2 Comments

गजल( होते-होते कुछ हो जाता)

22 22 22 22

*********************

होते-होते कुछ हो जाता

वक्त सभी का मोल बताता।1



गाढ़े का जोड़ा धन धुँधला

बेसाबुन कोई धो जाता।2



हँसते रहते गाँधी बाबा

झुँझलाता कोई रिसिआता।3



रोते-मरते धन्ना कितने

चाय पिला चँदुआ मुसुकाता।4



नोट बड़े सब शून्य हुए हैं

छोटा लल्ला है इठलाता।5



चैन लुटा कितनों के घर का

काला धन कुछ बाहर आता।6



पीट रहे सब खूब लकीरें

वेग समय का बदला जाता।7



सोना दूभर करता… Continue

Added by Manan Kumar singh on November 10, 2016 at 11:54am — 4 Comments

गजल(हैं उभरते आजकल यूँ रहनुमा घर-घर)

2122 2122 2122 2

हैं उभरते आजकल यूँ रहनुमा घर-घर

अब सियासत का उतारा हो गया घर-घर।1



अब न पढ़ना है, न कुछ करना जरूरी ही,

बस वजीरों का मुहल्ला बन चला घर-घर।2



गलतियों से आपकी लाला मिनिस्टर हैं

कुर्सियों पर आजकल चिपटा पड़ा घर-घर।3



अँगुलियों पर नाचकर रहबर बना है वो

बढ़ गया कुनबा बड़ा इतरा रहा घर-घर।4



रोशनी की खोज में लड़ कर मरे पुरखे

बस अँधेरा ही यहाँ छितरा रहा घर-घर।5



जोड़ने की बात के थे मुंतजिर सारे

तोड़ने का… Continue

Added by Manan Kumar singh on November 4, 2016 at 4:00pm — 6 Comments

गीतिका/हिंदी गजल(आनंदवर्द्धक छंद)

देश से अपने हमें तो प्यार है

देशद्रोही मत बनो, धिक्कार है।1



धूप-धरती सब मिले तुझको यहाँ

देश की तुझको सखे दरकार है।2



जड़ बिना पौधा कहीं पनपा नहीं

देश की माटी बड़ा आधार है।3



चल रहे हैं बेवजह के चुटकुले

भेदियों की हो गयी भरमार है।4



सनसनाते हैं यहाँ नारे बहुत

'भारती'माँ की कहो जयकार है।5



कैद तेरी बात अब क्यूँ हो गयी?

रे! जवानी को बड़ी ललकार है।6



रोशनी पूरब से' देखो हो रही

झाँक लो अंदर यही मनुहार… Continue

Added by Manan Kumar singh on November 1, 2016 at 8:30am — 9 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service