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Seema agrawal's Blog – September 2012 Archive (4)

शुभ्रांशु जी के हास्य लेखन से प्रेरित हो कर एक हास्य लिखने की कोशिश ...........

जब भी शुभ्रांशु जी के हास्य-व्यंग्य के लेख पढ़ती हूँ ...लगता है कितनी आसानी और सहजता से से वो सब कुछ लिख जाते हैं और हँसा भी देते हैं ......एक दिन अचानक ही लगा दरअसल वो आसानी से लिख नहीं जाते है बल्कि यह लिखना बहुत आसान है l  क्यों न मै भी कुछ  हास्य व्यंग टाइप की चीज़ लिखूँ .

कविता में तो बड़ी पेचीदगियां है ..... एक कविता लिखने में तो…

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Added by seema agrawal on September 26, 2012 at 5:00pm — 15 Comments

ये कहाँ हैं हम ?/गीत

खिलखिलाती सिसकियों का हर तरफ ही शोर है

भीड़ में तन्हाइयों की भीड़ चारों ओर है

ये कहाँ हैं हम ?

क्या यही थे हम ?

छू रहा मानव सफलता के चमकते नव शिखर

प्रकृत नियमों को विकृत करता ये कैसा है सफर

है सभी कुछ पर अधूरी,

हर निशा हर भोर है

ये कहाँ हैं हम ?

क्या यही थे हम ?

कितनी परतों में दबा है आज का ये आदमी

अब कहाँ किरदार सच्चे अनृत की है तह जमी

स्वार्थ आरी नेह बंधन,

कर रहीं कमज़ोर हैं

ये कहाँ हैं हम ?

क्या यही थे…

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Added by seema agrawal on September 19, 2012 at 11:00am — 12 Comments

गीत मे तू मीत मधुरिम नेह के आखर मिला

सौरभ जी से चर्चा के पश्चात जो परिवर्तन किये हैं उन्हें प्रस्तुत कर रही हूँ 

परिचर्चा के बिंदु सुरक्षित रह सके  इस हेतु  पूर्व की पंक्तियों को भी डिलीट नहीं किया है जिससे नयी पंक्तियाँ नीले text में हैं 

 

गीत मे तू मीत मधुरिम नेह के आखर मिला 

प्रीत के मुकुलित सुमन हो भाव मे भास्वर* मिला -----*सूर्य



हो सकल यह विश्व ही जिसके लिए परिवार सम 

नीर मे उसके नयन के स्नेह का सागर मिला …



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Added by seema agrawal on September 12, 2012 at 10:00am — 34 Comments

कोई फिर भगवान हुआ है

यह रचना उन (ढोंगी ) बाबाओं और गुरुओं के नाम जो अमरबेल से हर गली में  हर रोज उग रहे है .....





कोई फिर भगवान हुआ है
हर घर का दरबान हुआ है 

फैला कर झूठे विज्ञापन

गीता…
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Added by seema agrawal on September 6, 2012 at 10:21am — 11 Comments

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