For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये कहाँ हैं हम ?/गीत

खिलखिलाती सिसकियों का हर तरफ ही शोर है
भीड़ में तन्हाइयों की भीड़ चारों ओर है
ये कहाँ हैं हम ?
क्या यही थे हम ?

छू रहा मानव सफलता के चमकते नव शिखर
प्रकृत नियमों को विकृत करता ये कैसा है सफर
है सभी कुछ पर अधूरी,
हर निशा हर भोर है

ये कहाँ हैं हम ?
क्या यही थे हम ?

कितनी परतों में दबा है आज का ये आदमी
अब कहाँ किरदार सच्चे अनृत की है तह जमी
स्वार्थ आरी नेह बंधन,
कर रहीं कमज़ोर हैं

ये कहाँ हैं हम ?
क्या यही थे हम ?

है धुआँ आँखों में रिश्तों की सुलगती आह का
टूटते अनुबंधों का और टिमटिमाती चाह का
उच्चाकांक्षा की चमक में,
तिमिर ही घनघोर है

ये कहाँ हैं हम ?
क्या यही थे हम ?

Views: 566

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by seema agrawal on September 21, 2012 at 2:25pm

 रचना की सराहना के लिए शुक्रिया सतीश जी 

Comment by seema agrawal on September 21, 2012 at 2:24pm

राज़ जी किसी भी कविता को जिए बिना लिखना बहुत मुश्किल है लेखन में वो पल बहुत मुश्किल पल होते हैं जब बात कहने के लिए हम सही लफ्ज़ नहीं ढूँढ पाते .....और जब कविता बनने के बाद वो बहुतों को अपनी कहानी सी लगती है,या बहुतों को अपने मन की बात लगती है तो सारा श्रम सार्थक हो जाता है  ..........

//हम जब खुद से सवाल करने लगते हैं, बातें करने लगते हैं तो कविता सुन्दर बन जाती है. कोई खुद को हममें देखने लगता है//..........बहुत सुन्दर बात कही आपने ...शुक्रिया  

Comment by Satish Agnihotri on September 21, 2012 at 1:06pm

सुन्दर  एवं सराहनीय  रचना बधाई आपको ...इस चुने हुए शब्दों के लिए ....

Comment by राज़ नवादवी on September 21, 2012 at 1:00am

खिलखिलाती सिसकियों का हर तरफ ही शोर है 
भीड़ में तन्हाइयों की भीड़ चारों ओर है

ये कहाँ हैं हम ?
क्या यही थे हम ?

 

है धुआँ आँखों में रिश्तों की सुलगती आह का 
टूटते अनुबंधों का और टिमटिमाती चाह का

 

हम जब खुद से सवाल करने लगते हैं, बातें करने लगते हैं तो कविता सुन्दर बन जाती है. कोई खुद को हममें देखने लगता है......सुन्दर पंकतिया हैं. बधाई स्वीकार करें. 

 

Comment by seema agrawal on September 20, 2012 at 10:48pm

धन्यवाद सौरभ जी आपकी बात से सहमत हूँ ...........कुछ ऐसा भी  लिखा जाना चाहिए कुछ वैसा भी लिखा जाना चाहिए  

पुनः आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 19, 2012 at 2:42pm

कभी-कभी बातें सीधी-सीधी सुनने को मिले तो बहुत अच्छा लगता है. गीत का असर देर तक बना रहता है, सीमाजी.  हार्दिक बधाई.

Comment by seema agrawal on September 19, 2012 at 2:32pm

आदरणीय Laxman Prasad Ladiwala जी दिल से शुक्रिया आपको कि कथ्य से आप भी सहमत हैं 

Comment by seema agrawal on September 19, 2012 at 2:31pm

गीत की सराहना के लिए आभारी  हूँ गणेश जी धन्यवाद 

Comment by seema agrawal on September 19, 2012 at 2:30pm

धन्यवाद राजेश जी आपकी उपस्थिति भी दिल को छूती है 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 19, 2012 at 1:49pm
बहत सुन्दर गीत गहरे भाव -
भीड़ में तन्हाइयों की भीड़ चारों ओर है -    बहुत खूब  बधाई आदरणीया सीमा अग्रवाल जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
5 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service