For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तीन मुक्तक ......//माँ

 

इस रक्त के संचार पे अधिकार तुम्हारा है 

श्वांसो के हरेक तार पे उपकार तुम्हारा  है
आँखों में चमकते हैं मुस्कान के जो मोती 
कुछ और नहीं माँ वो बस प्यार तुम्हारा है 
 
 
 
बिन बोले बिन उपदेश दिए ,कर्मो की गीता समझाई 
तुमने अपनी दिनचर्या से,पल-पल की कीमत बतलाई 
जब रुके कदम मन विकल हुआ श्रीहत साहस का स्वर्ण हुआ 
माथे पर उत्प्रेरित चुम्बन करती माँ मन में मुस्काई 


मेरी आँखों की पीर चुरा तुम हँसी वहाँ भर  जाती हो 
तुम परी हो मेरे सपनों की हर मुश्किल हल कर जाती हो
तुम माँ हो या जादूगरनी ,विस्मित हूँ ,दुर्गम दूरी से  
कैसे मेरे अनबोले ज़ख्मो पर मरहम धर जाती हो 

Views: 1515

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MARKAND DAVE. on October 11, 2012 at 8:58am

तुम माँ हो या जादूगरनी ,विस्मित हूँ ,दुर्गम दूरी से  
कैसे मेरे अनबोले ज़ख्मो पर मरहम धर जाती हो ।

 

बहुत-बहुत ही बढ़िया, कृपया बधाई स्वीकार करें।

Comment by seema agrawal on October 10, 2012 at 2:03pm

मुक्तक की सराहना हेतु हृदय से धन्यवाद अशोक जी 

Comment by seema agrawal on October 10, 2012 at 2:02pm

आपने सच कहा प्राची माँ  के व्यक्तित्व की गहराई और विशालता समुद्र की भाँती है न ओर न छोर 

स्वागत है  आपका 

Comment by seema agrawal on October 10, 2012 at 1:58pm

आपकी बधाई तो पुरूस्कार है सौरभ जी .....और पुरुस्कार मिलने पर तो स्वयं पर गर्व ही होता है .......तो बस गौरवान्वित महसूस कर रही हूँ 

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 9, 2012 at 8:30am

इस रक्त के संचार पे अधिकार तुम्हारा है 

श्वांसो के हरेक तार पे उपकार तुम्हारा  है

आँखों में चमकते हैं मुस्कान के जो मोती 

कुछ और नहीं माँ वो बस प्यार तुम्हारा है 

बहुत ही सुन्दर माँ के प्यार को प्रखर करती रचना के लिए बधाई स्वीकारें आद. सीमा जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 5, 2012 at 10:10pm

बिन बोले बिन उपदेश दिए ,कर्मो की गीता समझाई 

तुमने अपनी दिनचर्या से,पल-पल की कीमत बतलाई 
जब रुके कदम मन विकल हुआ श्रीहत साहस का स्वर्ण हुआ 
माथे पर उत्प्रेरित चुम्बन करती माँ मन में मुस्काई .................बहुत सुन्दर मुक्तक. माँ कि व्यापकता कितनी गहन और विस्तृत होती है ये हम पूर्णतः जान भी नहीं सकते,,, 
हर मुक्तक अपने आप में विशिष्ट है, बहुत बहत बधाई इन  माँ की विशिष्टताओं से सराबोर मुक्तकों के लिए.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 5, 2012 at 9:48pm

बहुत सुन्दर मुक्तक आपने प्रस्तुत किया है, सीमाजी. तीनों मुक्तक तीन ढंग के, तीन शिल्प में.  किन्तु विषय एक.. . वाह !

प्रवाह भी सुन्दर ! हृदय से बधाई स्वीकारें !
 

Comment by seema agrawal on October 5, 2012 at 3:38pm

आपके विचारों का दिल से अनुमोदन करती हूँ लक्ष्मण जी माँ से बड़ा गुरु और कौन होगा एक बच्चे के लिए ....बहुत बहुत शुक्रिया आपको 

Comment by seema agrawal on October 5, 2012 at 3:36pm

प्रिय अरुण आपका बहुत बहुत आभार ...आपके द्वार चुनी गयी पंक्तियाँ सच में कई बार अनुभव की हैं और मै माँ से कहती भी हूँ की तुम जादूगरनी हो बिना कहे ही सब जान लेती हो 

Comment by seema agrawal on October 5, 2012 at 3:34pm

हमेशा की तरह मेरी भावनाओं को साझा करने के लिए ह्रदय से धन्यवाद आदरणीय राजेश जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service