For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कोहरे के कागज़ पर
किरणों के गीत लिखें
आओ ना मीत लिखें

सहमी सहमी कलियाँ
सहमी सहमी शाखें
सहमें पत्तों की हैं

सहमी सहमी आँखें

सिहराते झोंकों के
मुरझाए
मौसम पर
फूलों की रीत लिखें

आओ ना मीत लिखें 

रातों के ढर्रों में
नीयत है चोरों की
खीसें में दौलत है
सांझों की भोरों की

छलिया अँधियारो से
घबराए,
नीड़ों पर
जुगनू की जीत लिखें

आओ ना मीत लिखें 

गूँज रहा सन्नाटा
सूरज के घर-आँगन
धुआँ धुआँ धूप हुयी
सौंप घना सूनापन

धरती से सूरज के
रूखे
संवादों पर
निहुराई प्रीत लिखें

आओ ना मीत लिखें

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 678

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on January 20, 2015 at 6:59pm

आदरणीय सीमा अग्रवाल जी , इस सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई आपको ,इस रचना पर अब ध्यान गया उस समय १५ दिन कार्य से बाहर था ...

छलिया अँधियारो से 

घबराए, 
नीड़ों पर 
जुगनू की जीत लिखें

आओ ना मीत लिखें......बहुत खूब ! सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 19, 2015 at 11:13pm
कोहरे के कागज़ पर
किरणों के गीत लिखें
आओ ना मीत लिखें ॥
सुन्दर एवं सुरुचि पूर्ण , आदरणीय सीमा जी, बधाई, सादर।
Comment by seema agrawal on January 19, 2015 at 10:57pm

मैं तो यहाँ से कभी गयी ही नहीं अर्चना ................. :) खुश रहो 

Comment by seema agrawal on January 19, 2015 at 10:56pm

बहुत बहुत शुक्रिया मंजरी जी आपकी उपस्थिति से गीत का मान बढ़ा ...............धन्यवाद देने थोडा देर से आ सकी  इस बात के लिए माफी चाहती हूँ 

Comment by seema agrawal on January 19, 2015 at 10:54pm

खुश रहिये सोमेश जी ........सराहना करने का आपका ये अंदाज़ अच्छा लगा  ................

 :)

Comment by seema agrawal on January 19, 2015 at 10:52pm

आदरणीय गोपाल नारायण जी आप जैसे सुधि पाठक की सराहना पा कर उत्साहित हूँ ............... अपना धन्यवाद थोड़ा विलम्ब से पहुंचा सकी इसके लिए क्षमा प्रार्थी भी हूँ 

Comment by seema agrawal on January 19, 2015 at 10:49pm

बहुत बहुत शुक्रिया  मिथिलेश वामनकर जी ............थोड़ा विलम्ब से पहुंचा सकी अपना धन्यवाद  इसके लिए क्षमा प्रार्थी भी हूँ 

Comment by seema agrawal on December 24, 2014 at 12:17am
आदरणीय सौरभ जी पंक्ति दर पंक्ति गीत की सम्यक व्याख्या कर आपने जिस प्रकार गीत को स्नेह दिया सच कहूँ तो अभिभूत हूँ आपकी इस सदाशयता से । धन्यवाद शब्द बहुत छोटा है ।
Comment by seema agrawal on December 24, 2014 at 12:11am
आप सभी ने गीत पर उपस्थित हो कर जो मान दिया उसके लिए जितना भी आभार व्यक्त करूँ कम है ।गीत पोस्ट करने के बाद से ही लगातार व्यस्त होने के कारण आप सब के बीच उपास्थित न हो सकी अतः इस विलम्ब के लिए आप सभी से क्षमा प्रार्थी हूँ । पुनः धन्यवाद ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 21, 2014 at 2:33pm

आदरणीया सीमाजी, एक अरसे बाद आपकी प्रस्तुति को इन पन्नों में देखना भावविभोर कर गया.
पद्य में प्रकृति का मानवीकरण छायावाद काल का महत्त्वपूर्ण पहलू रहा है. इस काल के उत्तर काल-खण्ड में यथार्थ प्रस्तुतीकरण के वशीभूत कई प्रस्तुतियाँ भावहीन होने लगी थीं. जो आधुनिक काल तक आते-आते प्रस्तुतियों मेम् विद्रूप वर्णन या भदेसपन का समावेश एक गुण की तरह स्वीकार किया जाने लगा. पेट, रोटी, दिल्ली, मादा शरीर, शरीर की भूख से सनी कविताएँ सिर चढ़ कर चीखने लगीं.


ऐसे में छायावाद या उत्तर छायावाद के वायव्य तथा यथार्थ के नाम पर आधुनिक कविताओं के विद्रूप वर्णन के बीच नवगीत की मुलामीयत चुपचाप संतुलन का काम करती रही.
आपके प्रस्तुत नवगीत को मैं इसी आलोक में देख रहा हूँ.  

नवधनाढ्यों से अँटे समाज में विडंबनाओं पर बोलना कई बार नक्कारखाने में तुती की आवाज़ बन कर रह जाती है. लेकिन कवि भी कब रुकता है ! आपकी प्रस्तुत पंक्तियों को इसी संदर्भ में देखना भला लगा -
रातों के ढर्रों में / नीयत है चोरों की / खीसें में दौलत है / सांझों की भोरों की / .. / छलिया अँधियारो से / घबराए, / नीड़ों पर / जुगनू की जीत लिखें / आओ ना मीत लिखें

तो उधर प्रेमपगी भावनाओं को आपने अपेक्षित दुलार से सराहा है -
सहमी सहमी कलियाँ / सहमी सहमी शाखें / सहमें पत्तों की हैं / सहमी सहमी आँखें /
सिहराते झोंकों के / मुरझाए मौसम पर / फूलों की रीत लिखें.. ! वाह !!

परस्पर सामञ्जस्य और समावेशी आचरण में वैयक्तिकता तथा अहं का अनएवोडाइबल इण्ट्रूजन कई विसंगतियों को जन्म देता रहा है. ऐसे विन्दुओं को मुखर करना आधुनिक कवि तथा नवगीतकार अपना अधिकार तो समझते ही हैं, इस विन्दु पर बोलना इनकी मजबूरी भी है. है न ? -
गूँज रहा सन्नाटा / सूरज के घर-आँगन / धुआँ धुआँ धूप हुयी / सौंप घना सूनापन / .. / धरती से सूरज के / रूखे संवादों पर / निहुराई प्रीत लिखें

इस नवगीत के पहलुओं पर सोचते हुए कई जानी-अनजानी बातें खुलती गयीं, आदरणीया.
हृदय से बधाइयाँ व असीम शुभकामनाएँ.
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post मनका छंद
"आ. भा सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर छन्द हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

मनका छंद

मनका / वर्णिका छंद - तीन चरण, पाँच-पाँच वर्ण प्रत्येक चरण,दो चरण या तीनों चरण समतुकांतमस्त जवानी   …See More
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post बेटी दिवस पर दोहा ग़ज़ल. . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सहमत"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .राजनीति
"हार्दिक आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .राजनीति
"आ. भाई सशील जी, शब्दों को मान देने के लिए आभार। संशोधन के बाद दोहा निखर भी गया है । सादर..."
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .राजनीति

दोहा पंचक. . . राजनीतिराजनीति के जाल में, जनता है  बेहाल । मतदाता पर लोभ का, नेता डालें जाल…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post बेटी दिवस पर दोहा ग़ज़ल. . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।  अबला बेटी करने से वाक्य रचना…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on KALPANA BHATT ('रौनक़')'s blog post डर के आगे (लघुकथा)
"आ. कल्पना बहन, सादर अभिवादन। अच्छी कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शिवजी जैसा किसने माथे साधा होगा चाँद -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शिवजी जैसा किसने माथे साधा होगा चाँद -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत ही खूबसूरत सृजन हुआ है सर । हार्दिक बधाई"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .राजनीति
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।सहमत देखता हूँ"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for Radheshyam Sahu 'Sham'
"आ. भाई राधेश्याम जी, आपका ओबीओ परिवार में हार्दिक स्वागत है।"
Sunday

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service