लफ़्ज़ों को हथियार बना
 फिर उसमें तू धार बना
छोड़ तवज़्ज़ो का रोना
 अपना इक मेयार बना
लंबा वृक्ष बना ख़ुद को
 लेकिन छायादार बना
बेवकूफ़ियाँ बढ़ती गयीं
 जितना बशर हुश्यार बना
शिकवा गुलों से है न तुझे?
 तो कांटों को यार बना
जिसने दिखाई राह नई
 वो दुनिया का शिकार बना
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by जयनित कुमार मेहता on July 9, 2024 at 7:53pm — 4 Comments
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