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भावजड़ता 
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अहंमन्यता की तलैया में 
मूर्खता की कीचड़ से जन्म ले 
ए भावजड़ता !
तू कमल की तरह खिलती है।
अपने आकर्षण के भ्रमजाल में
उलझाती है ऐसे,
कि सारी जनता 
लहरों पर सवार हो बस तेरे गले मिलती है।
झूठ सच के विश्लेषण की क्षमता हरण कर
आडम्बर ओढ़े, गढ़ती है नए रूप।
धनी हों या मानी, गुणी हों या ज्ञानी 
तेरे कटाक्ष से सब होते हैं घायल 
क्या साधू क्या फक्कड़ , बड़े बड़े भूप।
भू , समाज और भूसमाज भावना…
Added by Dr T R Sukul on July 5, 2016 at 11:23am — 10 Comments
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