मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
गाँव से आकर नगर में फिर वो’ मंजर ढूँढते हैं
ईंट गारे के महल में गाँव का घर ढूँढते हैं
रौशनी देने सभी को मोम पिघला भी, जला भी …
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 29, 2018 at 4:00pm — 12 Comments
राह किसी की कहाँ रोकते,
हट जाते हैं पेड़
इसकी, उसकी, सबकी खातिर,
कट जाते हैं पेड़
तपन धूप की खुद सह लेते
देते सबको शीतल छाया.
पत्ते, छाल, तना, जड़, सब कुछ,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 20, 2018 at 4:00pm — 16 Comments
जीवन की सूनी राहों में,
मधु बरसाने जैसा हो.
अबकी बार तुम्हारा आना
सचमुच आने जैसा हो.
धूप कुनकुनी खिले माघ में,
भीगा-भीगा हो सावन.
बादल गरजें जिसकी छत पर,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 18, 2018 at 10:00am — 20 Comments
मापनी - 2122 2122 2122
आपसे इतनी मुहब्बत हो गई है
लोग कहते हैं कि आफत हो गई है
नींद मेरी हो न पायी थी मुकम्मल
फिर कोई मीठी शरारत हो गई है
ढूँढता है रोज मिलने का बहाना…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 12, 2018 at 5:00pm — 20 Comments
1222 1222 1222 1222
शिकायत है बहुत खुद से कि मैं क्यों कर नहीं जाता
मुझे जिससे मुहब्बत है, उसी के घर नहीं जाता
अगर मिलना है’ उससे तो, तुम्हें जाना पड़ेगा खुद
चला करता है दरिया ही, कहीं सागर नहीं जाता
मधुर…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 11, 2018 at 3:30pm — 11 Comments
अंतर्मन में जाने कितने,
ज्वालामुखी फटे.
दूरी रही सुखों से अपनी,
दुख ही रहे सटे.
झोंपड़ियों में बुलडोजर के,
जब-तब घाव सहे.
अरमानों की जली चिताएँ,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 6, 2018 at 9:29am — 9 Comments
चाहत की परवाज अलग है
उसका हर अंदाज अलग है
ताजमहल की क्या है’ जरूरत
अपनी ये मुमताज अलग है
सुन पाते हैं केवल हम ही
अपने दिल का साज अलग है
मन की बातें मन में…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 2, 2018 at 4:00pm — 9 Comments
अम्बर को पाती भिजवाई,
व्याकुल होकर धरती ने.
सभी जरूरी संसाधन दे,
नर को जीना सिखलाया.
मर्यादा का पालन लेकिन,
कभी कहाँ वह कर पाया.
अपने मन की बात बताई,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 1, 2018 at 4:01pm — 14 Comments
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