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बृजेश कुमार 'ब्रज''s Blog – June 2017 Archive (3)

ग़ज़ल...कौन भरे इस खालीपन को

22 22 22 22
याद करे वीरान चमन को
कौन भरे इस खालीपन को

मुझमें है ये कौन समाया
आँखों ने टोका दर्पन को

हाथ बढ़ाकर कौन सँभाले
सड़कों पे मरते बचपन को

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई
खाने को तैयार वतन को

अबके सावन ऐसे बरसे
ले आये सुख चैन अमन को

प्रभु बसते दुखिया आहों में
हम बैठे संगीत भजन को

कितने अरमानों से सींचा
'ब्रज' ने अपने फक्खड़पन को
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 27, 2017 at 11:54am — 11 Comments

ग़ज़ल...मगरूर है वो हमसफ़र

गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल..बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम
मुस्तफ्इलुन मुस्तफ्इलुन
2212 2212
मगरूर है वो हमसफ़र
हैरान हूँ ये जानकर

अपनी जड़ों से टूटकर
क्यूँ आदमी है दर-ब-दर

जाना कहाँ थे आ गये
ये पूँछती है रहगुजर

सब आहटें खामोश हैं
चुपचाप सी है हर डगर

आसान है अब तोड़ना
बिखरे हुये हैं सब बशर

बेआबरू ऐ इश्क़ के
हम भी बड़े थे मोतबर
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 11, 2017 at 5:59pm — 8 Comments

एक ग़ज़ल देश के वीर सैनिकों के नाम

मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

221 2121 1221 212

दुख दर्द आह दिल की खलिश को लताड़ कर

हम चल दिये बदन पे पड़ी धूल झाड़ कर



दिल दुश्मनों के हिल गये इक पल न टिक सके

हमने नजर उठा उन्हें देखा दहाड़ कर



आवाज दी चमन ने पुकारा बहार ने

हम आ गये हसीन जहाँ छोड़ छाड़ कर



माँ भारती तरफ बढ़े नापाक जो कदम

रख देंगे तेरे दौनों जहाँ को उजाड़ कर



है रूह जिस्म जान तलक हिन्द के लिये

ओ माँ सपूत से तेरे इतना न लाड़ कर

(मौलिक एवं… Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 4, 2017 at 5:25pm — 11 Comments

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