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ग़ज़ल...आँसू तभी छलक पड़े बेबस किसान के

221 2121 1221 212
.
ये बेरुखी ये ज़ुल्म सितम आसमान के
आँसू तभी छलक पड़े बेबस किसान के

दिल में छुपा लिये थे सभी गम जहान के
रुख पे नुमायाँ हो गए लम्हे थकान के

वीरां है मुददतों से मगर टूटता नहीं
ये हौंसले तो देखिये जर्जर मकान के

है मजहबी अलाव, सुलगते सभी बशर
बदहाल गाँव घर हुए भारत महान के

वो अनमनी सबा, हुआ रंजूर ये चमन
निकली लवों से आह किसी बेजुबान के
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 5, 2017 at 7:55am
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह'कुशक्षत्रप' जी रचना ह्रदय से महसूस करने के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन वंदन सादर..
Comment by नाथ सोनांचली on March 4, 2017 at 7:29am
आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल, बेहतरीन अशआर से सजी, दाद हाजिर है।बधाई। सादर
Comment by नाथ सोनांचली on March 4, 2017 at 7:29am
आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल, बेहतरीन अशआर से सजी, दाद हाजिर है।बधाई। सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 2, 2017 at 8:24pm
आप बड़े हैं आदरणीय कुछ सिखाएंगे ही..आखरी शैर में रदीफ़ लवों से सम्बंधित है इसलिए पुल्लिंग ही हुआ इस हिसाब से रदीफ़ सही है आदरणीय समर कबीर जी का भी यही मानना है..सादर
Comment by Ravi Shukla on March 2, 2017 at 3:33pm

आदरणीय बृजेश जी हमारे कहे को मान देने के लिये आभार

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 28, 2017 at 8:30pm
आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपके अमूल्य समय और सार्थक समीक्षा हेतु कोटि कोटि आभार..मतले के लिए आपका सुझाव उत्तम है विशेषकर सानी...हुस्ने मतला के लक्षण शब्द को लम्हे से बदला जाये तो कैसा रहेगा?'रुख पे नुमाया हो गये लम्हे थकान के'आखरी शेर मुझे भी शुरू से ही कमजोर लग रहा..कोशिश कर रहा हूँ कुछ अच्छा बदलाव कर सकूँ..चौथे शेर में भी आपके सुझाव स्वागतयोग्य हैं..सादर
Comment by Ravi Shukla on February 28, 2017 at 10:25am

आदरणीय ब्रजेश जी इस बहर में अच्‍छी कोशिश हुई है गजल की दाद हाजिर है । हुस्‍ने मतला के सानी में लक्षण शब्‍द कुछ अलग सा लग रहा है सभी अल्‍फाज उर्दू में है और मात्र लक्षण शब्‍द ही हिंदी का लिया है इसे उचित शब्‍द से बदले तो हमारी विनम्र राय में और अच्‍छा  हो सकता है शेर ।

अ‍ाखिरी शेर के भाव तक हम भी नहीं पंहुचे साथ ही अगर वाक्‍य देखें तो निकली लबो से आह किसी बेजुबान की  होना चाहिये आह स्‍त्रीलिंग शब्‍द है आपका रदीफ बदल रहा है इस तरह से ।

ज़ुल्मो सितम को देख के इस आसमान के
छलकें न अश्‍क क्‍या करें बेबस किसान के एक त्‍वरित सुझाव मात्र है

है मजहबी अलाव, सुलगते सभी बशर
बदहाल गाँव घर हुए भारत महान के इस शेर के उला मिसरे में  हमारी सोच का नजरिया देखें

इस मजहबी अलाव ने सुलगा दिया वतन

बदहाल गावं गाँव घर हुए भारत महान के .... सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 27, 2017 at 6:56pm
आपके उत्साहवर्धक शब्दों के लिए हार्दिक आभार आदरणीय शिज्जु 'शकूर' जी..हाँ आदरणीय आखरी शेर मुझे भी कुछ कमजोर लग रहा है..कुछ सुधार की कोशिश करता हूँ..सादर

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Comment by शिज्जु "शकूर" on February 27, 2017 at 11:25am

वीरां है मुददतों से मगर टूटता नहीं
ये हौंसले तो देखिये जर्जर मकान के...... बेहतरीन आ. बृजेश कुमार बृज जी, बधाई

आखिरी शेर कुछ स्पष्ट नहीं हो रहा है

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