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Dr.Prachi Singh's Blog – June 2012 Archive (5)

"डोरी बंधन की........"

ये कैसी डोरी बंधन की,  है जैसे कच्चे रेशम की..
डर लगता है टूट न जाए, साथ कहीं ये छूट न जाए..
 
इस से मन के तार जुड़े हैं, सपनों के संसार जुड़े हैं..
सप्त सुरों में इसकी लय है, हर सावन इस की ही शय है..
 
गुँथे …
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Added by Dr.Prachi Singh on June 29, 2012 at 11:46am — 4 Comments

करें प्रकृति से प्यार

सोलह शृंगारों सजी, प्रकृति चंचला रूप .
उसकी मतवाली छटा, मन भाती है खूब ..
 
झरना झर-झर बह चले, मतवाली ले चाल .
मन में इक कम्पन करे, उसकी सुर लय ताल ..
 
कल-कल कर बहती नदी, मस्ती भर दे अंग .
वाचाला औ चंचला, बदले पल पल रंग ..
 
बारिश की बूंदों नहा, निखरा कैसा रूप .
अन्तः मन निर्मल करे, छाँव खिले या धूप ..
 
उढ़ता बादल कोहरा, मन ले जाए दूर .
बाहों में…
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Added by Dr.Prachi Singh on June 24, 2012 at 2:30pm — 22 Comments

मोहब्बत के कदम

बादलों पे
थिरकता है हुस्न
अरमानों की
मखमली चादर ओढ़े...
कजरारे नशीले नैन
मासूमियत से मुस्कुराते हैं,
निगाहों निगाहों में 
बूझ पहेलियाँ...
होठों पर लहराती
गुनगुनाती हँसी
सागर की चंचल लहरों सी,
करती है अठखेलियाँ...
गीले चमकीले
मोतियों के चिराग
झिलमिलाते है रिमझिम
गेसुओं…
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Added by Dr.Prachi Singh on June 13, 2012 at 11:09pm — 20 Comments

५-जून ( विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में)

५-जून ( विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में)

****************************************************
पर्यावरणिक तंत्र है, सात सुरों का राग.
भू, अम्बर, जल तत्व सब, अन्तः गर्भित भाग.
****************************************************
भूधर,जलधर, वायुधर,सब की बदली चाल.
जड़ चेतन सब कांपते, हो दूषित बदहाल.
****************************************************
क्षत विक्षत जल 'औ' धरा , बदल…
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Added by Dr.Prachi Singh on June 5, 2012 at 6:30pm — 12 Comments

हमेशा के लिए...

थम गया है वक़्त ..
जम गए हैं कदम ..
पसरा है सनसनाता सन्नाटा ..
अपना घर आँगन 
जो महकता था 
फूलों की बगिया सा,
गुलमोहर के पेड़ से 
झड़ते थे जहाँ आशीषों के फूल ..
अब है वीरान  खंडहर सा..
नहीं लौट रहे
स्नानकर, वापिस
अपने वीराने आशियाने की ओर
भारी कदम..
आँखों की बदरी में
पिघल रहे हैं गुज़रे लम्हें ,
जो…
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Added by Dr.Prachi Singh on June 4, 2012 at 12:30pm — 23 Comments

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