For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog – May 2014 Archive (8)

जिसका वो अंश है ……

जिसका वो अंश है ……

कौन है ज़िंदा ?

वो मैं,जो सांसें लेता है

जिसका प्रतिबिम्ब दर्पण में नज़र आता है

जो झूठे दम्भ के आवरण में जीवन जीता है

या

वो मैं जो अदृश्य हो कर भी सबमें समाया है

न जिसकी कोई काया है

न जिसका कोई साया है

कितना विचित्र विधि का विधान है

एक मैं, नश्वरता से नेह करता है

एक मैं, अमरत्व के लिए मरता है

मैं के परिधान में जो मैं ज़िंदा है

वही प्रभु का सच्चा परिंदा है …

Continue

Added by Sushil Sarna on May 31, 2014 at 12:30pm — 14 Comments

खुद रूठूँ और खुद मन जाऊं ……

खुद रूठूँ और खुद मन जाऊं ……

खुद रूठूँ और खुद मन जाऊं

प्रीतम तुझ को कैसे बुलाऊँ

पल-पल ..तेरी राह निहारूं

एकांत पलों में तुझे पुकारूं

जीने की कोई आस बता दे

किस मूरत से .नेह लगाऊं

खुद रूठूँ और खुद मन जाऊं

प्रीतम तुझ को .कैसे बुलाऊँ

भोर व्यर्थ मेरी .साँझ व्यर्थ है

तुझ बिन मेरी प्यास व्यर्थ है

अंबर के घन .कुछ तो कह तू

कैसे नयन का ...नीर…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 30, 2014 at 3:07pm — 12 Comments

आये अज़ल जिस गोद में ……

आये अजल जिस गोद में  ……

कितने निर्दयी हो तुम

दबे पाँव आते हो

मेरे खामोश लम्हों को

अपनी यादों से झंकृत कर जाते हो

झील की लहरों पे चाँद

लहर लहर मुस्कुराता है

मेरी बेबसी को गुनगुनाता है

सबा मेरे गेसुओं से लिपट

मेरी ख़्वाहिशों को बार बार ज़िंदा कर जाती है

तुम्हारे मुहब्बत में डूबे लम्स

मेरे लबों पे कसमसाते हैं

मगर तड़प के इन अहसासों को तुम न समझोगे

तुम क्यों नहीं समझते

मेरे तमाम…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 29, 2014 at 1:00pm — 20 Comments

हर पतझड़ को ……

हर पतझड़ को ……

ज़िंदगी को ..हर मौसम की जरूरत होती है

उजालों को भी ...अंधेरों की जरूरत होती है

क्यों सिमटे नहीं सिमटते वो बेदर्द से लम्हे

चश्मे अश्क को .खल्वत की ज़रुरत होती है

रात के वाद-ऐ-फ़र्दा पे ..यकीं भला करूँ कैसे

यकीं को भी इक समर्पण की जरूरत होती है

मिट गयी सहर होते ही वो रूदाद-ऐ-मुहब्बत

रूहे- मुहब्बत को आगोश की जरूरत होती है

हिज़्र की सिसकियों से है नम रात का दामन

सोहबते -लब को…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 20, 2014 at 1:00pm — 20 Comments

प्यार भी करते हो …

प्यार भी करते हो …



प्यार भी करते हो तो शर्तों पे करते हो

लगता है तुम शायद मुहब्बत के अंजाम से डरते हो

क्यों मुड़ मुड़ के अपने निशां तका करते हो

क्यों ज़माने के खौफ को दिल में रखा करते हो

कभी इकरार से तो कभी इंकार से डरते हो

न, न

ऐसे तो प्यार न हो पायेगा

पानी के बुलबुले सा ये प्यार

वक्त की लहरों में खो जाएगा

अहसास कभी शर्तों में समेटे नहीँ जाते

शर्त और सौदे तो बाज़ारों में हुआ करते हैं

समर्पण बाज़ारों में कहां हुआ करते हैँ

इससे…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 15, 2014 at 4:00pm — 8 Comments

नैन समर्पण ....

नैन समर्पण ....

नैन कटीले होठ रसीले
बाला ज्यों मधुशाला
कुंतल करें किलोल कपोल पर
लज्जित प्याले की हाला
अवगुंठन में गौर वर्ण से
तृषा चैन न पाये
चंचल पायल की रुनझुन से मन
भ्रमर हुआ मतवाला
प्रणय स्वरों की मौन अभिव्यक्ति
एकांत में करे उजाला
मधु पलों में नैन समर्पण
करें प्रेम श्रृंगार निराला

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on May 6, 2014 at 5:30pm — 18 Comments

किसका साया ……

किसका साया ……

किसका साया मुझे जीने कि सज़ा देता है

कफ़स में आरज़ू की .रूह को क़ज़ा देता है

पेशानी पे बहारों की .अलम लिखने वाली

कौन मेरी आँखों को नमी की क़बा देता है

थी जब तलक साथ तो ज़िंदगी हसीन थी

अब दर्दे हिज़्र मुझे .हर लम्हा रुला देता है

मेरे ख्वाबों के शबिस्तानों में ..रह्ने वाली

बेवफा लौ मेँ पतंगा .खुद को जला देता है

बेवजह मेरे अश्कों की ..वज़ह बनने वाली

कौन मुझे कफ़न मेँ साँसों की दुआ देता…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 5, 2014 at 5:36pm — 14 Comments

मुहब्बतों की ज़मीन पर ....

मुहब्बतों की ज़मीन पर ....

वो जागती होगी

यही सोच हम तमाम शब सोये नहीं

चुरा न ले सबा नमीं कहीं

हम एक पल को भी रोये नहीं

वो रुख़्सत के लम्हात,वो अधूरे से जज़्बात

बंद पलकों की कफ़स में कैद वो बेबाक से ख्वाब

क्या वो सब झूठ था

क्यों पल पल के वादे हकीकत की धूप में

हरे होने से पहले ही बेदम हो कर झरने लगे

अटूट बंधन के समीकरण बदलने लगे

खबर न थी कि हमारी खुद्दारी

हमें इस…

Continue

Added by Sushil Sarna on May 1, 2014 at 12:30pm — 14 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
7 seconds ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
20 seconds ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
1 minute ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
18 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
23 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
35 minutes ago
Sushil Sarna posted blog posts
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"ओह!  सहमत एवं संशोधित  सर हार्दिक आभार "
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"जी, सहमत हूं रचना के संबंध में।"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"शुक्रिया। लेखनी जब चल जाती है तो 'भय' भूल जाती है, भावों को शाब्दिक करती जाती है‌।…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, नए अंदाज़ की ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service