For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Nidhi Agrawal's Blog – March 2015 Archive (7)

ग़ज़ल - खबर बन गयी

२१२ २१२ २१२ २१२

ज़िंदगी किस कदर इक सफ़र बन गयी

अनलिखी ये कहानी खबर बन गयी

 

बात छोटी सही सबके मुह जो चढ़ी

बात खींची गयी फिर रबर बन गयी

 

राह चलते हुये बज उठी सीटियाँ

सादगी कामिनी की ज़हर बन गयी

 

बेवफाई मिली आग दिल में जली

बेअदब आज मेरी नज़र बन गयी

 

चाह हमने रखी रोशनी की अगर

आरज़ू ही हमारी कबर बन गयी

 

ईश्क की इक नज़र कैद में जो मिली

हथकड़ी टूटकर इक तबर बन…

Continue

Added by Nidhi Agrawal on March 23, 2015 at 1:00pm — 14 Comments

दिल की बातें

212 212 212 212

 

आज दिल की कहानी छुपा ले गयी

आँख से नींद, यादें चुरा ले गयी

 

कैस खुद को भुलाए कोई तू बता  

फिक्र तेरी ज़हन को बहा ले गयी

 

तू नहीं जिंदगी में ये ग़म है मुझे

दूरियां दर्द का भी मजा ले गयी

 

शीत की ये लहर टीस बन कर उठी

हाय दिल की अगन को बढ़ा ले गयी

 

हसरतें अब ये दिल से जुदा हो न हो

मौत की ये रवानी खुदा ले गयी

 

वक्त की चाल का क्या पता ऐ “निधी”

आस जीवन…

Continue

Added by Nidhi Agrawal on March 20, 2015 at 3:30pm — 10 Comments

श्रृंगारिक ग़ज़ल - कमसिन उमरिया

212 212 212 212

 

कैसे कमसिन उमरिया जवां हो गयी

दिल से दिल की मुहोबत बयां हो गयी

 

ख्वाब आँखों से अब मत चुराना कभी 

नींद सपनों पे जब मेहरबां हो गयी

 

फूल बन के खिली गुलबदन ये कली 

आरजू फिर महक की जवां हो गयी

 

प्यार की बात हमने छुपाई बहुत

लोग सुनते रहे दासतां हो गयी

 

होंठ जबसे मिले होंठ ही सिल गए

कैसे चंचल जुबां बेजुबां हो गयी

 

दोस्त आगोश में आशना ऐ “निधी”

आज मन की…

Continue

Added by Nidhi Agrawal on March 18, 2015 at 1:30pm — 32 Comments

मिलन की आस - मुक्त कविता

तुझसे मिलन के इंतज़ार में 

बसाया था बलम

तेरी छवि को यादों में

तेरी प्रीत को ख्वाबो में

करवटों को बाँहों में 

और

सिलवटों को रातों में

 

तुझको पाने की प्यास में

सीखा था सनम

गीतों को गाना

नृत्य को जीना

शराब को पीना

और

ज़ख्मों को सीना

 

तुझसे मिलन की आस पिया 

और सजाया था

कजरा आँखों में

गजरा बालों में

नखरा गालों पे

और

मदिरा होठों…

Continue

Added by Nidhi Agrawal on March 17, 2015 at 11:42am — 11 Comments

जीवन - एक गीतिका

पद भार : २४ मात्रा 

जीवन की सरिता नीर बहाने लगती है

मुझसे जब मेरे तीर छुड़ाने लगती है

 

बोझ उठा कर इन जखमों का जब थक जाती

सागर की लहर मुझे समझाने लगती है

 

छिप जाती हूँ मैं जब दुनिया से कोने में  

वो मुझ को सहेली बन सताने लगती है

 

आंसू मेरे जब छिपने लगते आँखों में

वो मुझ पर जीभर प्यार लुटाने लगती है

 

भागती हूँ जीवन से मैं तोड़कर सब कुछ

अपने अधिकार मुझ पर जताने लगती…

Continue

Added by Nidhi Agrawal on March 16, 2015 at 7:30pm — 13 Comments

ज़िन्दगी और कविता

मैं तो शब्द पिरो रही थी यूँ ही

सोच रही थी ख्यालों में खोकर

क्या ऐसे ही चलती है ज़िन्दगी

जैसे अनजाने बनती हैं कवितायें

झरने की तरह प्रवाह सी बहती

बस हर शब्द बरसता है बूँद सा

टपकता है मन के बादलों से कही

और जुड़ जुड़ कर बनता जाता है

एक मिसरा..एक शेर..एक मतला

कभी दर्द में डूबा हुआ सियाह लफ्ज़

कभी खुशी की चाशनी में डूबा हुआ.

कभी मिलन की आस में शरमाया हुआ

कभी विरह की तड़प में टूटता हुआ शब्द

एहसासों की चादर में…

Continue

Added by Nidhi Agrawal on March 13, 2015 at 9:30am — 10 Comments

मेरी पहली कोशिश

जिंदगी की कहानी सुनाता रहा

दर्द दिल के सभी मै छिपाता रहा

प्यार था या नहीं ये पता ही नहीं

बात क्या थी जिगर में दबाता रहा

जज़्ब होते रहे अश्क भीगे अधर

मुसकुरा कर  निगाहें चुराता रहा

तोड़कर वो चली पारसा दिल मेरा

आइना कांच…

Continue

Added by Nidhi Agrawal on March 12, 2015 at 1:00pm — 22 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service