For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"'s Blog – March 2019 Archive (4)

ये कौन आया है महफ़िल में चाँदनी पहने------पंकज मिश्र

1212 1222 1212 22

.

अदा में शोखियाँ मस्ती गुलाबी रंग धरे

ये कौन आया है महफ़िल में चाँदनी पहने

ये हुस्न है या कोई दरिया ही चला आया

है दिल डुबोने को गालों पे इक भँवर ले के

ठुमकने लगते हैं सपने सलोने सरगम पर

वो खिलखिला के हँसे तो लगे सितार बजे

नज़र उसी पे ही सबकी टिकी है महफ़िल में

ये बात और है उसकी निगाहें बस मुझ पे

ज़रा सा छू ने पे छुई मुई समेटे ज्यूँ खुद को

नज़र पड़े तो वो खुद को समेटती…

Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 17, 2019 at 7:30pm — 4 Comments

तेरे रुखसार हैं या दहके गुलाब-------ग़ज़ल

1222 1222 2121

तेरे रुख़्सार हैं या दहके ग़ुलाब

ये तेरी ज़ुल्फ़ है या तेरा हिज़ाब

हटा के ज़ुल्फ़ का पर्दा, उँगलियों से

बिखेरो चाँदनी मुझ पर माहताब

करीब आ तो, निगाहों के पन्ने पलटूँ

मैं पढ़ना चाहूँ तेरे मन की किताब

महज़ चर्चा तुम्हारा, बातें तुम्हारी

इसे ही सब कहें, चाहत बे-हिसाब

ज़माना तुहमतें चाहे जितनी भी दे

ग़ज़ल पंकज की, है तुझको इंतिसाब

===============================

कठिन शब्दों के…

Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 8, 2019 at 8:24am — 2 Comments

क्यूँ जाने लोग कुछ अपने ही जल गए---ग़ज़ल

1212 1222 1212

हमारे वार से जब अरि दहल गए
क्यूँ जाने लोग कुछ अपने ही जल गए

ख़बर ख़बीस के मरने की क्या मिली
वतन में कईयों के आँसू निकल गए

वो बिलबिला उठे हैं जाने क्यूँ भला
जो लोग देश को वर्षों हैं छल गए

नसीब-ए-मुल्क़ पे उँगली उठाए हैं
सुकून देश का जो खुद निगल गए

मिलेगा दण्ड ए दुश्मन ज़रु'र
वो और ही थे, जो तुझ पर पिघल गए

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 5, 2019 at 4:30pm — 2 Comments

मीडिया भारत का या तो वायरस इक बन गया---ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

मीडिया भारत का या तो वायरस यक बन गया

दीमकों के साथ मिलकर या के दीमक बन गया

मीडिया का काम था जनता की ख़ातिर वो लड़े

किन्तु वो सत्ता के उद्देश्यों का पोषक बन गया

दोस्तों टी वी समाचारों का चैनल त्यागिए

क्योंकि उनके वास्ते हर दर्द नाटक बन गया

क्या दिखाना है, नहीं क्या क्या दिखाना चाहिए

कुछ न, जाने मीडिया, सो अब ये घातक बन गया

ज़ह्र भर कर शब्द में, वो वार जिह्वा से…

Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 3, 2019 at 10:00pm — 9 Comments

Monthly Archives

2022

2021

2019

2018

2017

2016

2015

1999

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
5 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
9 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service