For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये मान सरोवर का पंकज, आँखों में ढूंढे है पानी- पंकज मिश्रा की गजल

22 22 22 22 22 22 22 22

कब रात हुई कब सुब्ह हुई, इस पत्थर ने कब है जानी
जब ताप चढ़ा ग़म का बेहद, तब धड़कन ने की मनमानी

चिंगारी पैदा होनी है, इस पत्थर से मत टकराओ
शोला ए इश्क़ ही भड़केगा, ग़र तूने बात नहीं मानी

वो सभी कथानक कल्पित हैं, जिनमें प्रियतम से मिलन हुआ
इस देवदास की प्यास अमिट, जो साथ घाट तक है जानी

ले जाना है तो ले जाओ, ये कुंडल कलम व ग़ज़ल कवच
इतिहास भला कैसे बदले, हर युग में कर्ण परम् दानी

इस दर पर लक्ष्मण का स्वागत, लेकिन वो चरण शरण आये
हे राम अवध में कहीं नहीं, पंडित रावण जैसा ज्ञानी

नज़रें नीची रख कर मिलना, इस ओर उठाना प्रतिबंधित
ये मान सरोवर का पंकज, आँखों में ढूंढे है पानी

मौलिक अप्रकाशित

Views: 1061

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 13, 2017 at 12:59pm
आदरणीय गिरिराज सर नें तो मेरा काम ही असान कर दिया है, सादर आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 13, 2017 at 12:58pm
आदरणीय रवि सर, गिरिराज सर तथा रामबली सर आप् सभी के सुझावों पर विचार के लिए समय नहीं निकाल सका, अब फुर्सत में हूँ, शीघ्र ही सुधार होगा
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 13, 2017 at 12:57pm
आदरणीय गोपाल सर सादर प्रणाम
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 13, 2017 at 12:55pm
आदरणीय बाऊजी सादर आभार, बहुत दिनों बाद उत्तर दे पा रहा हूँ, क्षमा निवेदन है

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 16, 2017 at 4:57pm

आदरणीय पंकज भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ ! ग़ज़ल पर चर्चा भी खूब हुई है , मुझे भी लगता है , आनी काफिया तर लें तो और बेहतर -- उला पर आ. राब बली भाई जी ने सलाह दी है , सानी पर मै प्रयास कर रहा हूँ , देखियेगा - सही लगे तो ?

कब रात हुई कब सुब्ह हुई, इस पत्थर ने कब है जानी

जब ताप चढ़ा ग़म का बेहद , तब धड़कन ने की मनमानी   ....

Comment by Ravi Shukla on February 16, 2017 at 11:52am

आदरणीय पंकज जी आंनद आया आपकी गजल पढ़ कर  बधाई स्‍वीकार करें । मतले पर हमारा भी विचार राम बली जी से मिलता हुआ है अभी उला का ही शब्‍द केवल काफिया का तुकांत मिलाने के लिये ही लग रहा है अगर ई का‍फिया ही रखें तो सुझााव है इसी मिसरे में उतरार्द्ध और पूर्वाद्ध को बदल सकते है जिससे ही शब्‍द का अटकाव नहीं लगेगा पर आनी का कफिया इसे और बहतर बना सकता है । इसके बाद आदरणीय गोपाल नारायण जी का कथन सर्वोपरि है कि शायर का‍ अपना अलग नजरिया  है

ले जाना है तो ले जाओ, ये कुंडल कलम व ग़ज़ल कवच
इतिहास भला कैसे बदले, हर युग में कर्ण परम् दानी  ये शेर हमें बहुत पसंद आया इसके लिये सराहना अलग से लीेजिये ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 15, 2017 at 8:17pm

आ० पंकज जी , बेहतरीन गजल हुयी है , मुझे आ० रामबली जी की बात भी ठीक लगती है . पर गजलकार का  अपना नजरिया है . .

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:28pm
आदरणीय रामबली सर आपका सुझाव सर्वथा उचित है इस पर भी अभ्यास किया जाएगा सादर प्रणाम
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:27pm
आदरणीय मोहम्मद आरिफ सर ग़ज़ल की तारीफ करने के लिए हृदय से आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 14, 2017 at 7:27pm
आदरणीय सुरेंद्र नाथ सर बहुत-बहुत आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
6 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
6 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
7 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आ० अमित जी…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, आदरणीय…"
10 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service