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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – January 2014 Archive (4)

मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

तुम कोमल कमसिन लता नवीन और विजन में खड़ा विटप मैं ।

चाहो तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।

वात झूमती चलती जब भी, मौन मेरा भी वाणी पाता ।

लेकिन इसका लाभ कहो क्या, कौन विजन में गुनने आता ।

भाग में मेरे लिखा दिवाकर, तरस तनिक जो कभी न खाता ।

तूफानों से हुआ जो नाता, गिरने का भय डँसता जाता ।



निभर्य स्नेहिल जीवन जी लूँगा, मुझसे यदि नाता जोड़ो ।

चाहो तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।

मेरे सूने जीवन की…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 26, 2014 at 8:46pm — 19 Comments

कहो तुम चाँद से इतना (ग़ज़ल ) - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1222 1222  1222 1222



हमारी प्यास ले जाओ, जरा सूरज घटाओं तक

समय इतना नहीं बाकी, खबर भेजें हवाओं तक



तुम्हारी कोशिशें थी नित, यहाँ केवल दवाओं तक

हमारा भाग भा खोटा, न जा पाया दुआओं तक



कहाँ से भेजता रब भी, मदद को रहमतें अपनी

पहुचनें ही न पायी जब, सदा मेरी खलाओं तक



कहो तुम चाँद से इतना, सितारों रोशनी मकसद

रहा मत कर सदा इतना, सिमटकर तूँ कलाओं तक



सुना है हो गये हो अब, खुदा तुम भी मुहब्बत के

हमारी हद सहन तक ही,…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2014 at 7:30am — 12 Comments

आत्मकथन

आत्मकथन



जब जब बनाना चाहा

शब्दों को मिसरी

कुछ पूर्वाग्रह

घोल गये कड़ुवाहट

नहीं बना पाया मैं

खुद को मधुमक्खी

तब कैसे होते मधु

मेरे कहे गये शब्द

मैंने चाहा दिखना

बगुले सा धवल

तब कहां से आती

कोयल सी मधुरता

काक होकर भी

कहां निभा पाया

काक का धर्म

बस जमाये रखी

गिद्ध दृष्टि  

हर जीवित-मृत पर

समझ सकते हैं आप

कितना तुच्छ जीव

बनकर रह गया हूं मैं…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2014 at 6:00am — 18 Comments

ये मासूम सनम मेरा (ग़ज़ल )

सभी सम्माननीय पाठकवृंदों को नववर्ष कि शुभकामनाओं सहित

**************************************************************

1222 / 1221 / 1212 / 1222

*******************************



सुबह उसकी  महक लेकर , हवा मेला सजाती  है,

उदासी जुल्फ से उसकी  , चुरा के  शाम  लाती  है



वो जब  काँपती अंगुली , मेरी लट  में फिराती  है

यादे  बूढ़ी  माई की , वो फिर से  मन जगाती  है



पहुचता हूँ जो उस तक मैं , गुजरती साँझ बेला को

वो दिन भर की कथा…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 2, 2014 at 8:00am — 6 Comments

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