For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य-प्रेमियो,

सादर अभिवादन.

ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक- 39 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है.

सर्वप्रथम, आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ

18 जुलाई 2014 दिन शुक्रवार  से 19 जुलाई 2014 दिन शनिवार 

विदित ही है, कि चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव आयोजन की रूपरेखा अंक-34  से एकदम से बदल गयी है.

प्रत्येक आयोजन में अब प्रदत्त चित्र के साथ-साथ दो छन्द भी दिये जाते हैं. जिनके मूलभूत नियमों पर लेख मंच के  भारतीय छन्द विधान  समूह में पहले से मौज़ूद होता है. प्रतिभागियों से अपेक्षा रहती है कि वे प्रदत्त चित्र तथा उसकी अंतर्निहित भावनाओं को दिये गये छन्दों के अनुसार शब्दबद्ध करें.

अबतक निम्नलिखित कुल दस छन्दों के आधार पर रचनाकर्म हुआ है -

अंक 34 – दोहा           तथा   रोला

अंक 35 – चौपाई        तथा   कुण्डलिया

अंक 36 - छन्नपकैया  तथा   कह-मुकरी

अंक 37 – चौपई         तथा   कामरूप

अंक 38 – गीतिका      तथा   उल्लाला

इस बारका आयोजन अबतक दिये गये उपरोक्त दसों छन्दों में से पाँच छन्दों पर आधारित है.  यानि प्रस्तुत आयोजन अबतक सीखे गये छन्दों पर ही पुनर्अभ्यास के तौर पर होगा.

(चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से लिया गया है)

इस बार के आयोजन के लिए उपरोक्त दस छन्दों में से पाँच छन्द निम्नलिखित हैं :

रोलाचौपाईछन्नपकैयाकह-मुकरीगीतिका

चौपाई, छन्नपकैया में रचनाकर्म करना है तो इनके पाँच से अधिक छन्द न हों.

रोला, कह-मुकरी, गीतिका में रचनाकर्म करना है तो इनके तीन छन्द से अधिक न हों.

आयोजन सम्बन्धी नोट :

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 18 जुलाई 2014 दिन शुक्रवार से 19 जुलाई 2014 दिन शनिवार यानि दो दिनों के लिए खुलेगा.

रचना और टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा. केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

विशेष :

यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

 

अति आवश्यक सूचना :

  • आयोजन की अवधि के दौरान सदस्यगण अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक के हिसाब से पोस्ट कर सकेंगे. ध्यान रहे प्रति दिन एक प्रविष्टि, न कि एक ही दिन में दो प्रविष्टियाँ.
  • रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  • सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
  • आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  • इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  • रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  • रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 10211

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय सत्यनारायण  भाई,

प्रदत्त चित्र पर  कह मुकरी की बहुत ही सुंदर प्रस्तुति , हार्दिक बधाई।

रचना को पसंद कर मान बढ़ाने के लिए सादर धन्यवाद आदरणीय अखिलेश जी 

वाह वा ! बहुत सुन्दर कह मुकरियों की रचना की है आपने , आदरणीय सत्यनारायण जी , आपको बधाई ।\

अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय गिरिराज जी 

आदरणीय सत्यनारायण जी, बहुत सुन्दर प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!

हालांकि इस मंच के सुधी जनों द्वारा आपकी रचना अनुमोदित कर दी गई है इसलिए मेरा कुछ कहना उचित तो नहीं फिर भी एक बात कहना चाहता हूँ कि इस रचना में जिस तरह के तथ्यों या गुणों को आधार बनाया गया है और जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है उसमें सर्कस और साजन की तुलना मुझे उचित नहीं लगी. सर्कस, वस्तु भी नहीं, एक आयोजन है और साजन एक जीवित व्यक्ति. दोनों में क्या तुलना?

 यह मेरी व्यक्तिगत राय है, हो सकता है आप या अन्य लोग इससे सहमत न हों.

सादर!

आदरणीय बृजेश जी आपको यह मेरा प्रयास सुन्दर लगा यह जानकर मुझे ख़ुशी हुई.

//हालांकि इस मंच के सुधी जनों द्वारा आपकी रचना अनुमोदित कर दी गई है इसलिए मेरा कुछ कहना उचित तो नहीं फिर भी एक बात कहना चाहता हूँ कि इस रचना में जिस तरह के तथ्यों या गुणों को आधार बनाया गया है और जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है उसमें सर्कस और साजन की तुलना मुझे उचित नहीं लगी. सर्कस, वस्तु भी नहीं, एक आयोजन है और साजन एक जीवित व्यक्ति. दोनों में क्या तुलना?

 यह मेरी व्यक्तिगत राय है, हो सकता है आप या अन्य लोग इससे सहमत न हों.///

सीखने के दृष्टिकोण से रचना पर आपके  विचारों का सदैव स्वागत है  आदरणीय रही बात सहमती की तो इस पर सुधी  जनों की  राय जानना उचित होगा. सादर धन्यवाद 

उपमा-उपमेय के मानवीकरण से काव्य-इतिहास भरा पड़ा है, आदरणीय सत्यनारायणजी.

काले घने बादल क्या नैचुरल फेनोमना नहीं हैं ?  या फिर, उनके आने के महीने ?

फिर भी, सावन तो ’लुभाता’ है, ’चिढ़ाता’ है ! बादल ’तरसाते’ है ! .. आदि-आदि..

है न ? ऐसा क्यों ?

हम यथार्थवादी कवियों से प्रभावित हो कर उनकी कविताओं के मजे लें. न कि हर तरह की पद्य-शैली को उसी कसौटी पर कसने की कवायद करने लगें. अन्यथा, कोई फूल काव्य जगत में भी कोमलता पर्याय न हो कर अपने विभिन्न अवयवों का समुच्चय मात्र नज़र आयेगा, जैसा कि बोटैनी के छात्रों के लिए हुआ करता है.

यह अवश्य है कि रचना के मर्म के अनुरूप ही बिम्ब होते हैं और शब्दों का ढंग बनता है.

संस्कृत भाषा के मर्मज्ञ गोसाईंजी जब पूरे मानस में ’श’ का प्रयोग नहीं करते हैं तो किसी को आश्चर्य नहीं होता.

शैली के अनुरूप ’कह-मुकरियाँ; यथार्थवादी कविताओं की अनुगामिनी नहीं बल्कि लोकपक्ष के देसज भाव का हामी हुआ करती हैं.

तभी सुधीजनों ने भी इस प्रस्तुति में कर्कश शब्द के कर्कस  हो जाने पर अधिक ध्यान नहीं दिया.

लेकिन यह भी सत्य है कि पद्य के भाव अनुरूप कतिपय शब्दों की अक्षरी बिगाड़ कर लिखने से ऐसा कोई नियम नहीं बन जाता या रचनाकारों को ऐसा कोई अधिकार नहीं मिल जाता कि वे कह-मुकरी में प्रयुक्त हर तरह के शब्द की अक्षरी बिगाड़ने लगें.    

सादर

आदरणीय सौरभ जी,

कल थोड़ी देर के लिए ही बिजली की सुविधा मुझे मिल सकी इसलिए नेट से दूर ही रहना पड़ा. आज सुबह से भी बाहर था इसलिए आयोजन में अपनी उपस्थिति नहीं दे सका.

सत्यनारायण जी की रचना पर मेरी टिप्पणी उनके प्रयास को कमतर आंकने की कोशिश नहीं थी बल्कि कहन को लेकर एक चर्चा का प्रयास था, जो शायद इस तरह के आयोजनों का उद्देश्य भी हुआ करता था. लेकिन शायद मेरी टिप्पणी को गलत नज़रिए से देखा गया. कम-से कम आपने मेरी टिप्पणी के प्रत्युत्तर में आदरणीय सत्यनारायण जी को सम्बोधित करते हुए जो टिप्पणी की है उससे मैंने तो यही अर्थ निकाला.

यह सच है कि उपमा-उपमेय के मानवीकरण से काव्य इतिहास भरा पड़ा है. यह भी सच है कि काले घने बादलों का मानवीकरण हुआ है लेकिन यह भी सच है कि बादल और सर्कस में अंतर है. बादल एक चीज़ है, वस्तु है, पदार्थ है. और सर्कस? और वह भी तब, जब साजन से तुलना में कहा जा रहा हो-

//अजब गजब करतूत दिखाये,

ओठों पर मुस्कान खिलाये,

बात कहे वह कभी ना कर्कस,

क्यों सखि साजन ? ना सखि सर्कस!//...........सर्कस यह सब करता है या उसमें सम्मिलित नट या नटी? सर्कस एक आयोजन का नाम है. मेरी छोटी समझ इसे उस तरह से स्वीकार नहीं कर पाई जिस तरह से आप विद्वजनों ने कर ली.

अपनी टिप्पणी में मैंने यह भी कहा था कि यह मेरी व्यक्तिगत राय है लेकिन यह भी स्पष्ट कर दूँ कि उक्त टिप्पणी कहीं से यथार्थवादी कविता से प्रभावित होकर नहीं की गयी बल्कि अपनी सीमित क्षमताओं के साथ छंदों की रहस्यमय दुनिया को समझने की यह कोशिश मात्र थी.

कोई भी पद्य शैली हो, कहन की एक मर्यादा तो होती ही है. छंदों की भी शायद होती हो. बात को कहा किस तरह जा रहा है यह बहुत महत्वपूर्ण होता है और वही आगे के मानकों के निर्धारण का आधार भी होता है. मैं छंद का जानकार न सही, लेकिन पाठक के तौर पर कहन पर अपनी राय रखने का अधिकार जरूर रखता हूँ लेकिन यदि टिप्पणी को सही अर्थों में न लेकर यथार्थवादी कविता के नाम पर ख़ारिज ही किया जाना है तो शायद इन आयोजनों में उपस्थिति का कोई औचित्य नहीं.    

 वाह ! चित्रानुसार बहुत सुन्दर और सार्थक कह्मुकरिया रची है | बहुत भुत बधाई श्री सत्यनारायण सिंह जी 

अनुमोदन के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लडिवाला जी 

बहुत ही सुंदर कह-मुकरियां कही आपने आदरणीय सत्यनारायण जी, हार्दिक बधाई आपको

ह्रदयतल से आभार आ० जीतेन्द्र  जी!

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
19 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service