For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 25 की सभी रचनाएँ एक साथ

सुधिजनो,

दिनाँक 19-21 अप्रैल 2013 को सम्पन्न हुए "ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 25 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी है. इस बार के छंदोत्सव में वीर छंद, घनाक्षरी छन्द, कुण्डलिया छंद, दोहा छंद, सवैया छंद, चौपाई छंद, रोला छंद, यशोदा छंद, प्रमाणिका छंद आदि सनातनी विधाओं पर 22 रचनाकारों नें छंदबद्ध रचनाएँ प्रस्तुत कर छंदोत्सव को सफल बनाया.

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर

गणेश जी बागी 

संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक 

ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार 

*****

Saurabh Pandey

वीर छंद -

यह छंद दो पदों के चार चरणों में रचा जाता है जिसमें यति १६-१५ मात्रा पर नियत होती है. छंद में विषम चरण का अंत गुरु (ऽ) या लघुलघु (।।) या से तथा सम चरण का अंत गुरु लघु (ऽ।) से होना अनिवार्य है. इसे आल्हा छंद या मात्रिक सवैया भी कहते हैं. कथ्य अकसर ओज भरे होते हैं.

रह-रह उबले खून ताव  में, डंका  बाजे  जोरम्जोर.. 
छिपे दुबक कर कायर कोने, आँत मरोड़े चढ़ता शोर 
भर्ती  खातिर  हुई मुनादी,  ताज़ा  शोणित मांगे देश 
थाने पर  होगी तैनाती,  जवां  मर्द  अब  होवें  पेश 

चढी जवानी छल-छल छलके, समय कहो आया माकूल 
जमा हुए  सब  जत्थे-जत्थे, लहर  ताव  की  देती  हूल 
चौड़ी छाती, थल-थल जंघा, छलक रहा रग़-रग़ से जोश 
चढ़ा  मछलियाँ  भुजा-बाहु  की,  गाल बजाते खोयें होश 

तभी लपक कर सहसा कूदा, भौंचक करता एक जवान 
’आधे-लीवर’  की  काया  ले,  औचक आया सीना तान 
दावानल  संहार  हृदय में,  ज्यों  भेदन  को  तड़पे तीर 
ग़ज़ब  जोश में  जान हथेली,  लिए बढ़ा  वो ’बावन वीर’ 

लगे चटक कर तड़ित स्वयं ही, लप-लप करती आयी आज
पेट-पीठ  के मध्य  न सीमा,  नापे  नभ  मन  की परवाज  
ककड़ी-ककड़ी  पसली  दिखती,  तनी रीढ़  ज्यों चढ़ी कमान 
व्योम-वज्र के लिए समझ लो, लगा दधिचि को आयी जान 

माथे  पर  माटी का जज़्बा, या  बोलो  धरती का कर्ज़ 
पर जब्बर है आग पेट की, वही  सिखाती रखना फ़र्ज़ 
भूखे बच्चे,  आँगन रूखा,  पत्नी  बेबस,  जी जंजाल 
तभी उपट कर  देख   छटंकी,  बना नमूना बेसुर-ताल 
*********************************************************************************************************

Er. Ganesh Jee "Bagi" 

 

घनाक्षरी छन्द

हाथ पाँव टिटिहिरी, जैसे मुँह पीपिहिरी,
सेना मे बहाल होने, सुखी लाल आया है |

आँख-कान ठीक-ठाक, कद-काठी फिट-फाट,
खेल-कूद दौड़ मे भी, झंडा लहराया है |

हौसला बुलंद अब, दारू गांजा बंद सब,
पेट पिचकाया और छतिया फुलाया है |

शत्रु-दल उड़ाना है, खलबली मचाना है,
भाव देश प्रेम का, खींच यहाँ लाया है |

*********************************************************************************************************

गीतिका 'वेदिका' 

कामरूप छंद  जिसमे चार चरण होते है , प्रत्येक में ९,७,१० मात्राओं पर यति होती है , चरणान्त गुरु-लघु से होता है |


छातिया लेकर / वीर जवान / आय सीना तान 
देश की माटी / की है माँग / तन व मन कुर्बान 
इसी माटी से / बना है तन / इस धूरी की आन 
तन से दुबला / अहा गबरू / मन धीर बलवान

(2)

चौपाई छंद, चार चरण, प्रत्येक पद में सोलह मात्राएँ 

(बुंदेलखंड के मानक कवि श्रेष्ठ ईसुरी की बुन्देली भाषा से प्रेरित है)

                
अम्मा कत्ती दत के खा लो 
पी लो पानी और चबा लो 
सबई नाज व दालें सबरी 
करो अंकुरण खालो सगरी


सुनी लेते अम्मा की बात 
फिर तो होते अपनेइ ठाठ 
दुबरे तन ना ऐसे होते 
भर्ती में काये खों रोते

ई में अगर चयन हो जाये 
माता को खुश मन हो जाये 
फिर ना बाबू गारी देंहें 
कक्का भी हाथन में लेंहें 

*********************************************************************************************************

Dr.Prachi Singh 

कुंडलिया छंद

कठिनाई हर मोड़ पर, जीवन इक संग्राम 

रखिये हर पल हौसला, कहता पोपट राम

कहता पोपट राम, फुला कर अपना सीना 

देश की खातिर मैं, बहा दूँ खून पसीना 

कस लो ऐनक और सँभालो फीता भाई 

लिख लो तुम परिमाप, नहीं कोई कठिनाई..

*********************************************************************************************************

Rajendra Swarnkar 

मनहरण कवित्त 

मनहरण कवित्त चार चरणों में लिखा जाने वाला वार्णिक छंद है । प्रति चरण में ३१ वर्ण आवश्यक हैं । १६ , १५ पर यति का सामान्य नियम है । कई बार पूरे चरण में कहीं ठहरे बिना ३१वें वर्ण पर भी यति देखी गई है । शिल्प-सौंदर्य में वृद्धि के लिए ८, ८, ८, ७ पर यति क्रम श्रेयस्कर माना जाता है ।


(1)
देश में कानून की करेंगे रखवाली वीर 
चैनो-अम्न-शांति की व्यवस्था ये बनाएंगे !
आबरू बचाएंगे बलाओं-अबलाओं की ये
लाठियां चलाएंगे , तिरंगा फहराएंगे ! 
ख़तरा है हवा के झौंके से उड़ने का जिन्हें ,
गुंडे-बदमाशों को सबक वे सिखाएंगे !
कागज़ी-पहलवान डेढ़-पसली बेचारे 
पीटने गए जो कहीं , ...ख़ुद पिट आएंगे !

(2)

हौसले-हिम्मत और जज़बे के साथ ; एक 
लाठी के सहारे पूरे देश को संभाला है !
देश को जगाता दिन-रात ख़ुद जाग कर 
देश का सिपाही , देश का ये रखवाला है !
इसने समाज-रक्षा-हित अपराधियों के 
डाल’ हथकड़ी-बेड़ी-फंदा प्रण पाला है !
अंधेरी-काली गुनाह-ज़ुर्म वाली दुनिया में 
सूरमा-जियाला यह करता उजाला है !

*********************************************************************************************************

बृजेश कुमार सिंह (बृजेश नीरज) 

(1)

घनाक्षरी

चौड़ी नहीं छाती मोरी, हौसला तो बुलन्द है

मुझको भी सेवा में अवसर दिलाइए

निर्धन गरीब हूं मैं, दुबला शरीर मेरा

इस कारण से न अवसर छुड़ाइए

खाकी मुझे मिल जाय फिर कोई चिन्ता नहीं

खाऊं पीयूं, मोटा होऊं, मौका वो दिलाइए

पास पड़ोस सभी हैं बहुत सताते मुझे

रौब मैं गांठ सकूं अवसर दिलाइए

(2)

अवधी भाषा में घनाक्षरी

 

सिखावा रे हमहूं का, अइसा जतन कछु

हम होइ जाई अब, पास ई भरती मा।

मोट ताज लोग सब, आय तो इहां बाटेन

कइसे होइ पइबै, पास ई भरती मा।

जाने किता चैंाड़ चाहे, सीना पुलिस खातिर

थक गय फुलाय के, छाती ई भरती मा।

तनि गय शरीर ई, तीर कमान जइसे

तबहूं न ई भइले, खुश ई भरती मा।

 

राम जाने कौन गति, होइहै हमार इहां

धुपवा झुराय डारे, तन ई भरती मा।

नाप जोख करै वाले, सब ई मोटान अहां

भूलि गयन आपन, दिन ई भरती मा।

इक बार हमहूं का, मिल जात वरदी तो
शेखी तोे बघरतेन, आगे ई भरती मा।
खाय खाय मोट भई, दुनिया जहान सारी
हम सुखाय गइन, आस ई भरती मा।

(3)

वीर छंद 

भरती खातिर आये लल्ला, सीना झट से दिया फुलाय

नाप सको तो नापो सीना, पसली पसली दिया दिखाय

 

पेट पीठ सब एक हो गयी, दम ऐसा कुछ दिया लगाय

प्रत्यंचा सी देह तन गयी, तन कुछ ऐसा दिया लचाय

 

गर्दन अकड़ी सीना फूला, पाछे हाथ दिया फैलाय

चेहरा ज्यों आम हो चूसा, भीतर आंख लिया धंसाय

 

सरपट झटपट दौड़ेगा वो, क्या दौड़े सब पेट फुलाय

दुर्बल इसको समझ रहे जो, थुलथुल काया नहीं सुहाय

*********************************************************************************************************

Ashok Kumar Raktale 

(1)

 दोहे

वक्ष विन्यास नापती, चश्मे से सरकार |

प्रष्ट दिखे समतल यहाँ,पीछे बढ़ा अपार ||

 

रोजगार की आस है, होती हरदिन होड़ |

काया तो सीधी खडी, दिखते हैं पर मोड़ ||

 

फीता भी छोटा पड़े, रख कर मन में भाव |

तन को ताने चाप सा, कोई आव न ताव ||

 

सीना तो धक-धक करे, फिरभी रहा फुलाय |

अंधी इस सरकार को, कोई नेत्र लगाय ||

 

नग्न देह सब कुछ कहे, चुभते मन में तीर |

यौवन में यह हाल है, कृपा करें बलवीर ||

(2)

कुण्डलिया  (दोहा+रोला)

मन में राखे जोश जो, लड़का वही महान,

चाहे सीना नाप लो, या फिर ले लो जान |

या फिर ले लो जान, होय नित मातम घर में,

बिना काम इंसान, सोय कब तक बिस्तर में,

दिल के सारे घाव, छुपे हैं निर्बल तन में,

मिल जाए भगवान, लालसा पद की मन में ||    

 

खाकी की अब चाह है, होते युवा अधीर |

वर्दी पाते चार जन, बाकी लेते पीर ||

बाकी लेते पीर, दौड़ कर थकते सारे,

दूर दूर से आय, सभी किस्मत के मारे,

खुश किस्मत रह जाय, लौटते सारे बाकी,

हे भगवन मिल जाय, सभी बच्चों को खाकी ||

 

(3)

"यशोदा" छंद

यह बहुत ही लघु एक वार्णिक छंद है. प्रयेक चरण में पांच वर्ण जगण और दो गुरु अर्थात ISI SS. 

कमाल देखो/

जमाल देखो/

जवान ऐसा/ पतंग जैसा //१//

गरीब लागे/

शरीफ लागे/

तभी खडा है/ वहीँ अडा है//२//

बिना लिए श्री/

बिना दिए श्री/

मिले न खाकी/रहो न बाकी//३//

 

मत्तगयन्द सवैया         

चाह रही मन पोलिस होकर रौब दिखात फिरूँ तगरा के,

नाप लिए अरु तोल किये तन लागत गर्दन हो गगरा के |

काम नहीं जस सोचत हो तुम छैल छबील बनो सगरा के,

आध लिए तुम लीवर कैसन तोंद फुलाय सको पगुरा के ||

*********************************************************************************************************

vandana tiwari 

हरिगीतिका छन्द

श्रम के पगों की तोड़ बेड़ी, दायित्व-संग कीजिए।
यह जिन्दगी-संग्राम लड़कर, जीत-कर गह लीजिए।।
गगन में टंगी खुशहालियां, कर्म की मोहताज हैं।
संघर्ष,उद्यम और पौरुष, भाग्य के सरताज हैं।।

*********************************************************************************************************

Kewal Prasad 

(1)
कुण्डलियां
भर्ती होती पुलिस की, अफसर हु परेशान।
परीक्षार्थी नंग रहे, तेज धूप हैरान।।
तेज धूप हैरान, डटे अभ्यर्थी सब हैं।
धूल धुन्ध अस करें, छिपाए मानक सब है।।
हवा ठगी पगलाय, आफिसर झाड़त वर्दी।
साधो नाम लिखाय, होय जाधव की भर्ती।।

किरीट सवैया
दौड़त भागत नापत जोखत, डांटत पूंछ रहे सब नायक।
दौड़ करावत हांफन छूटत, पोलिस बारमबार दहाड़त।।
अन्दर बाहर जात पुकारत, धूप जरावत धूल उड़ावत।
फाइल चाल चले मटकावत,सुन्दर साफ सजी मन भावत।।1

साहब बोल रहे झपसी झट, मोहर ठोंक जरा न रूकावहि।
मंत्रिगण अस फाइल देखत, भांपत हैं जस फूटत गोलहि।।
अन्दर सुन्दर सेट करावत, घूमि फिरै निज दामन थामहि।
बाहर शोर बड़ा लफड़ा भय, पोलिस दण्ड दनादन भाजहि।।2

मंत्रिगण सब भाग खड़े भय, बंद हुआ परिछा तब सांसत।
दूसर रोज छपा अस पेपर, औचक रोक लगा परिछा गत।।
जांच चले समिती लटकावत, सांच रिपोट बनाय छिपावत।
कोरट मा जब केस चला तब, साजिश जांच वकील बतावत।।3

सांच जबै जज भांप लियो तब, नाप दियो समिती इति पावत।
ढाक जने तिन पात सदा सुन, आंधर रेवडि़ आपहि बांटत।।
दीन समाज दबे कुचले सत, हाय सुराज गरीब मिटावत।
सत्यम बात सुभाय तभी जब, हीन समाज विकास दिखावत।।4

(2)

!!! कुण्डलियां !!!
दाता अब सहाय करें, बहुत हॅसी रस लीन्ह।
मोटे-तगड़े सब खड़े, हम निम्मन को चीन्ह।।
हम निम्मन को चीन्ह, बहुत है पूजा कीन्हा।
सत्य नरायन कथा, सुन है आशीष लीन्हा।।
बहुत कठिन समय में, जपा मैंने जय माता।
अब कुछ जादू करो, बनूं पोलिस हे दाता।।


माया है नप तोल का, चश्मा गय करियाय।
वर्दी मा गांठत रहे, हनक सनक हड़काय।।
हनक सनक हड़काय, जरा न दया करते है।
आय - सम्पत्ती के, फार्म अन्दर भरते हैं।।
बदन छरहरा दिखे, जब नपवाय है काया।
अव्वल नम्बर मिले, प्रभू की सुन्दर माया।।

*********************************************************************************************************

अरुन शर्मा 'अनन्त' 

दोहा 

भीतर से घबरा रहा, मन में जपता राम ।
किसी तरह से हे प्रभू, आज बना दो काम ।।

दुबला पतला जिस्म है, सीना रहा फुलाय ।
जैसे तैसे हो सके, बस भर्ती हो जाय ।।

डिग्री बी ए की लिए, दुर्बल लिए शरीर ।
खाकी वर्दी जो मिले, चमके फिर तकदीर ।।

सीना है आगे किये, भीतर खींचे साँस ।
कर लगते ज्यों सींक से, पाँव लगे ज्यों बाँस ।।

इक सीना नपवा रहा, दूजा है तैयार ।
खाते जैसे हैं हवा, लगते हैं बीमार ।।

खाकी से दूरी भली, कडवी इनकी चाय ।
ना तो अच्छी दुश्मनी, ना तो यारी भाय ।।

बिगड़ी नीयत देखके सौ रूपये का नोट ।
भोली सूरत ले फिरें, रखते मन में खोट ।।

********************************************************************************************************* 

rajesh kumari 

(1)

घनाक्षरी छंद

लेके होंसलो के पंख जीतूँ जिन्दगी की जंग, 

लक्ष्य जिसकी नोक पे  तीर वो चलाऊँगा।    

जज्बा है  दिल में ख़ास खींच लाउँगा उजास,

कोशिशों की  ताब लेके   दीप मैं जलाऊँगा।  

नैय्या  मजधार  होगी डरूं नहीं हार होगी, 

 उम्मीदों का चप्पू थामे  पार कर जाऊँगा।    

 सांस रोक लूँ मैं पूरा पीठ बने तानपूरा,  

 भर्ती पुलिस की है छाती खूब  फुलाऊँगा। 

(2)

कुण्डलिया 

 

कहना है कहते रहो ,सीकिया पहलवान 

भर्ती होने के लिए ,आया हूँ श्री मान 

आया हूँ श्रीमान ,छुडा दूं सबके  छक्के 

देख मेरी कमान ,रहें सब  हक्के बक्के 

दूँ  छाती का नाप ,नहीं  पीछे   रहना है

हूँ मैं भी जाँ बाज ,मुझे बस ये कहना है 

********************************************************************************************************* 

SANDEEP KUMAR PATEL 

(1)

घनाक्षरी

देश प्रेम कूट कूट के भरा पड़ा हुजूर 

छोड़ मोह लोभ बेटा, भरती में आया है 

सबका है धर्म यही, राह अपनाए सही  

आज वो करे अता जो, दिन रात खाया है

मौका मिला आज उसे, देश सेवा करने का

हौसला सभी को आज , उसका ये भाया है

तन को न देखिये जी, देखिये ये मन को जो 

हड्डी हड्डी फूल पड़ी, सीना यूँ फुलाया है 

(2)

वीर छंद - यह छंद दो पदों के चार चरणों में रचा जाता है जिसमें यति १६-१५ मात्रा पर नियत होती है. छंद में विषम चरण का अंत गुरु (ऽ) या लघुलघु (।।) या से तथा सम चरण का अंत गुरु लघु (ऽ।) से होना अनिवार्य है. इसे आल्हा छंद या मात्रिक सवैया भी कहते हैं. कथ्य अकसर ओज भरे होते है |

कहा दरोगा ने हमसे की , दौड़ो थोड़ा जोर लगाय

हांफ हांफ के जब मैं खाँसा, दूजा देख देख घबराय

हालत ऐसी बुरी देख के, तीजा लाइन से हट जाय

हड्डी पसली एक बराबर, चौथा देख गिरे गस खाय

 

भारी क्षमता देख हमारी, डॉक्टर गुलूकोश ले आय

बोले भैया इसे पिला दो, कहीं बेचारा न मर जाय

उसकी बातें सुन हम बोले, हमें न दुर्बल समझा जाय

सभी देख के दंग रह गए, हट्टे कट्टे रहे लजाय  

 

मैं जब जब चींटी को मारूं , कुत्ते भागें पूंछ दबाय

जोर लगा के जब चिल्लाता, भैंस खडी रहके पगुराय

छत से कितनी बार गिरा हूँ, तेज अगर जो झोंका आय

लेकिन अब तक सही सलामत, वजन हमारा नापा जाय

 

सीना नापो खूब हमारा, लो अब हमने लिया फुलाय

नाडा ले लो पैजामे का, टेप अगर ये कम पड़ जाय

हड्डी पसली सारी गिन लो, एक कमी दो हमें गिनाय

हाथ पाँव ये देख हमारे, अगरबत्ति तक जल जल जाय

 

मिटटी हमने तुरत उठा के, फूंक मार के दिया उड़ाय

बोले जिसमें दम हो बेटा, वही हमारे आगे आय

हमने आगे बढना सीखा, चाहे अब पर्वत टकराय

बातें मेरी बड़ी बड़ी सुन, हवलदार खुद चक्कर खाय

 

सबने बोला इसको ले लो, इसने मिटटी दिया उड़ाय

धूल झोंकने में है माहिर, औ लेता है दौड़ लगाय

ऐसी क्षमता कहाँ मिलेगी, पर्वत से निर्भय टकराय

गुंडों के गर फस भी जाए, खुद की लेगा जान बचाय

 

पूछा हमसे क्यूँ आये हो, इस भर्ती में हड्डी राज

बिन पैसा दामों तुम आये, छोड़ छाड़ के अपने काज

पेट के भीतर आंत नहीं है, ऊंची लेकिन है परवाज

सरकारी दामाद बनोगे, अगर पास तुम हो गए आज

 

मैंने बोला हवालदार जी, खबर पढ़ी थी हमने आज

पुलिस निठल्ली सोती रहती, नारी की जब लुटती लाज

मैं हूँ बेटा अपनी माँ का, मर के भी रख लूँगा लाज  

ये भर्ती है वर्दी खातिर, इसपे नहीं गिरेगी गाज

*********************************************************************************************************

 कवि - राज बुन्दॆली 

(1)
महाभुजंगप्रयात सवैया

शिल्प = चार चरण, प्रत्यॆक चरण मॆं यगण x ८ = कुल २४ वर्ण, बारह वर्णॊं पर यति, 
 
धरा का सपूता बना दॆश दूता, तु छूता-अछूता सभी कॊ बुलाता !!
बुलाता भगाता नचाता थकाता, खिलाता-कुँदाता तु बातॆं सुनाता !!
मजा मार प्यारॆ तु खाता उड़ाता, बना है कसाई कमाई कमाता !!
जलॆ ज्वाल भूखा उँघारा खड़ा जॊ, यही दॆश प्रॆमी लहू है बहाता !! 

जरा सीख लॆ आज ईमानदारी,यही ज़िन्दगी का फ़साना बनॆगा !!
दुवामॆं मिलॆगा तुझॆ जॊ यहाँ सॆ,वही आखरी का ख़ज़ाना बनॆगा !!
दुखी माँ किसी की बुढ़ापा उठायॆ,कहॆ लाल मॆरा दिवाना बनॆगा !!
लड़ॆगा सदा दॆश  कॆ ज़ालिमॊं सॆ, लबॊं पॆ तिरंगा तराना बनॆगा !!

नहीं हाड़ मांसा जरा सा मरा सा, खड़ा है बड़ा सा लँगॊटा लगायॆ !!
दबा पॆट दाना  बना वीर बाना, चढा आ रहा  अंग सीना फ़ुलायॆ !!
नहीं साथ लाया गुणी-राम माया, बिना नॊट कैसॆ बता जॉब पायॆ !! 
भलाई इसी मॆं कही "राज" मानॊ,गुणी राम जायॆ मनी राम आयॆ !!

(2)

कुण्डलिया छन्द 

शिल्प विधान = कुल छ:चरण,प्रत्यॆक चरण मॆं २४ मात्रायॆं, प्रथम दॊ चरण दॊहा कॆ और अंतिम चार चरण रॊला छंद कॆ, साथ ही प्रथम शब्द व अंतिम शब्द का एक ही हॊना अनिवार्य है, कहनॆ का तात्पर्य, जिस शब्द सॆ छन्द शुरू हॊ अंत भी उसी शब्द सॆ हॊना चाहियॆ |


पढ़ा लिखाकर बाप नॆ, किया ज्ञान मॆं दक्ष !
पॆट कहॆ क्य़ॊं नापता, अफ़सर इसका वक्ष ॥
अफ़सर इसका वक्ष,लगा रिश्वत का फीता ।
उत्तर है  प्रत्यक्ष, आज भी  तू ही  जीता ॥
शकुनी जिसकॆ साथ,जुआँ मॆं वॊ चढ़ा बढ़ा !
आया खाली हाँथ,अभागा क्य़ॊं लिखा पढ़ा ॥

दॆखॆ अपनॆ  दॆश कॆ, पढ़ॆ लिखॆ  बॆकार ।
भूखा पॆट  कराहता, सीना  नापॆं यार ॥
सीना  नापॆं यार, जॊर लगा कर भारी ।
नाप रही सरकार, सभी कॆ बारी-बारी ॥
कहॆं राज कविराय, लगाऒ जॊखॆ लॆखॆ ।
डिग्री बगल दबाय,यही दिन हमनॆं दॆखॆ ॥


(3)
दॊहा :- शिल्प, प्रत्येक चरण मॆं कुल २४ मात्रायॆं १३ एवं ११ मात्राऒं पर यति, अंत मॆं गुरू लघु का विधान है !

पहला दॆता माप अरु, दूजा करॆ विचार !
इसकॆ बाद है मॆरी, गरदन पर तलवार !!१!!

पढ़ा लिखा कर बाप नॆं,कीन्हॊं बुद्धि सुजान !
खॆत बिकॆ थॆ फ़ीस मॆं, बॆंचॊ  आज मक़ान !!२!!

कलयुग तॆरॆ काल मॆं, रिश्वत की पहचान !
नज़र उठा वह दॆखती, नज़र झुकायॆ ज्ञान !!३!!

सीना चौड़ा  गर्व सॆ, कहता  लॆ लॆ माप !
पॆट रीढ़ सॆ कर रहा, जैसॆ भरत मिलाप !!४!!

उँघरा बदन  निहारतीं, तॆरी आँखॆं चार !
मॆरी आँखॆं  दॆखतीं, तॆरॆ मन  कॆ पार !!५!!

तॆरॆ मॆरॆ  बीच मॆं, तीस साल का फॆर !
पीछॆ मुड़कर दॆखलॆ, बीतॆ दिन कॊ टॆर !!६!!

दॆकर कितनी गड्डियाँ, फॆंका तूनॆ जाल !
वसूली हमसॆ कर रहा,क्यॊं वर्दी कॆ लाल !!७!!

भाग्य लिखा ही भाग है, वर्ना भागम-भाग !
मैं किसान का लाल हूं, श्रम ही मॆरा राग !!८!!

बैठा  बैठा  दॆखता, वह दुनिया कॆ खॆल !
उसका फीता जब उठॆ, सबकॆ फीतॆ फॆल !!९!!

लॆ अफ़सर फीता लगा,बढ़ा चढा कर माप !
ऊपर  बैठा  दॆखता, सारॆ  जग  का बाप !!१०!!

*********************************************************************************************************

Laxman Prasad Ladiwala 

दोहे

अर्जी लिख लिख कलम घिसी, आँखों में भर नीर 

पाँव  थके  चिपका  उदर,  पोर  पोर  में  पीर ।

घिसती जाए जूतियाँ, मन में है विश्वास, 

ढूंढ रहे है नौकरी, लिए ह्रदय में आस |

दफ्तर के जब द्वार में , रोक रहा दरबान,

दुःख में खोते जिन्दगी, हत्या करे जवान |

साँस भरो, सीना फुला, किया मुझे मजबूर,

दौड़ दौड़ कर थक गया,  फिर भी मंजिल दूर ।

रोजगार की खोज में, शिक्षित कई हजार, 

क्यूंकि मेरे देश में,  व्यापा भ्रष्टाचार ।

ढूंढ रहे क्यो  नौकरी, कला हाथ में साध,

रिश्वत दे के नौकरी, लेना है अपराध |

(2)

कुंडलियाँ छंद 

ढेढ़ पसली ना समझे, सीने को तो माप,

खारिज न करना मुझको,मेरे माई बाप |

मेरे माई बाप, कमजोर मुझे न समझे,

मौका देवे आप,मुझको सभी फिर बूझे |

मै भारत की नाक, सपूत समझना असली,

मोटु करे क्या खाक,करता जो ढेढ़ पसली | 

 

(3)

कुंडलिया छंद 

 

जीरों ले अफसर बने, तब भी है सरताज ,

सीना सबका नापते, इसमें क्या है राज । 

इसमें क्या है राज, फिर भी जांचे होंसला,

पूंछे मौखिक बात, जज्बे से ही हो भला । 

छवि सुधरे इसबार,पूलिस कहलाये हीरो 

हो सब पानीदार,  नहीं कहलाये जीरो |

*********************************************************************************************************

manoj shukla 

कुंडलियाँ
सीना नापा जा रहा, लेकर फीता आज
पुलिस बनाए जा रहे, सरकारी है काज
सरकारी है काज, किसे यश आज मिलेगा
आवेदन कर रहे, सोचते राज मिलेगा
कहत सदा कविराय, होत विष जैसा पीना
दस लोगों के बीच, नंग हो तानो सीना

(2)

कुण्डलिया
सीना ताने हैं खडे, ले लो मेरा नाप
चापलूस यह कह रहे, तुम हो माई बाप
तुम हो माई बाप, आप दाता कहलायें
भरा रहे धन धान्य, जगत मे फले फुलायें
चापलूस की बात, किसी ने एक ना गीना
एक मिली फटकार, फुलाओ अपना सीना

(3)

रोला [11,13 पर यती]
भरती है आरम्भ, पुलिस की सुनो जवानो
डिग्री लेकर हाथ, चलो अब हार न मानो
पूरा हो विशवास, तनिक न शंका जानो
करना है संग्राम, कमर अब कसो जवानो
----
सौ मीटर का रेस, कदम अब तेज चलाओ
लम्बी जो हो कूद, पवन सा उडते जाओ
खा केले पी दूध, वजन अब और बढाओ
कर बाधा को दूर, विजय पा वापस आवो
----
समझायेंगे बहुत, दलीलो से वादों से
बचके रहना मगर, दलालों की बातों से
बनता है ना काम, सिफारिश या नोटों से
करते हम बस आज, निवेदन यह छोटों से
----
बस यह राखो ध्यान, ह्रदय मे यही बसाओ
तन से हो कमजोर, तो किस्मत न अजमाओ
दुबले पतले लोग, नही सेना मे जाते
रचकर के साहित्य , कवी बन फर्ज निभाते

*********************************************************************************************************

arun kumar nigam 

वीर छन्द : छत्तीसगढ़ी में 

//वीर छंद या आल्हा सजता, अतिशयोक्ति से बड़ा नफीस 

मात्राओं की गणना इसमें, सोलह-पन्द्रह कुल इकतीस  ॥ //

 

महूँ पूत हौं भारत माँ  के, अंग-अंग मा भरे  उछाँह 

छाती का नापत हौ साहिब, मोर कहाँ तुम पाहू थाह ॥ 

देख गवइहाँ झन हीनव तुम, अन्तस मा बइठे महकाल  

एक नजर देखवँ  तो तुरते,  जर जाथय बइरी के खाल  ॥ 

सागर-ला छिन-मा पी जाथवँ,  छर्री-दर्री करवँ पहार 

पट-पट ले दुस्मन मर जाथयँ, मन-माँ लाववँ  कहूँ बिचार ॥  

भगत सिंग के बाना दे दौ, अंग-भुजा फरकत हे मोर 

डब-डब  डबकय लहू लालबम, अँगरा हे आँखी के कोर ॥ 

मयँ हलधरिया सोन उगाथवँ, बखत परे धरिहौं बन्दूक ॥ 

उड़त चिरैया  मार गिराथवँ, मोर निसाना बड़े अचूक ॥    

बजुर बरोबर हाड़ा-गोड़ा, बीर दधीची के अवतार 

मयँ अर्जुन के राजा बेटा, धनुस -बान हे मोर सिंगार ॥ 

चितवा कस चुस्ती जाँगर-मा, बघुआ कस मोरो हुंकार 

गरुड़ सहीं मयँ गजब जुझारू, नाग बरोबर हे फुफकार ॥  

अड़हा अलकरहा दिखथवँ मयँ, हाँसव झन तुम दाँत निपोर 

भारत-माता के पूतन ला, झन समझव साहिब कमजोर ॥

शब्दार्थ : महूँ = मैं भी, उछाँह = उत्साह, मोर = मेरा, पाहू = पाओगे, हीनव = उपेक्षित करना, जर जाथय = जल  जाती है, अँगरा = अंगार,  छर्री-दर्री करवँ पहार = पर्वत को चूर चूर करता हूँ, बजुर = वज्र, चितवा = चीता, जाँगर = देहयष्टि, मोरो = मेरी भी, अड़हा = गँवार, अलकरहा = विचित्र -सा, दाँत निपोर = दाँत दिखा कर हँसना, झन = मत 

*********************************************************************************************************

ram shiromani pathak 

(1)

घनाक्षरी छंद

हड्डी ज्यादा कम खाल ,पिचका हुआ था गाल, 

जोखू राम को देखिये ,सीना भी फुलाता है !!
पैर दिखे मोमबत्ती,हाथ था अगरबत्ती !
नौकरी की आस लिए,देखो चला आता है !!


पतला हूँ तो क्या हुआ ,हौसला बुलंद मेरा !
मै भी हो जाऊंगा पास,सबको बताता है !!
तन मन धन सब ,देश सेवा में लगा मै !
नाम कमाऊँगा फिर ,यही बोले जाता है !!

(2)

(दोहा)

जब भी संकट में पड़ा, मातृभूमि का मान!
वीर सपूतों ने दिया,तन मन धन बलिदान!!१

वीरों को प्रिय प्राण से, मातृभूमि सम्मान!
ये हँसकर देते सदा,निज प्राणों का दान!!२

करने सेवा देश की , मन में लिए उमंग!
ऐसे खड़े कतार में ,अभी लड़ेंगे जंग!!३

मै भी पीछे क्यूँ रहूँ ,हूँ माई का लाल!
सेवा करने के लिए , हिय में शक्ति विशाल !!४

दुबला हूँ तो क्या हुआ,मन में है यह आस !
अवसर मिलना है मुझे ,इतना है विश्वास !!५

*********************************************************************************************************

कल्पना रामानी 

  

(1)

छंद का नाम कुण्डलिया

 

कुंडलिया दोहा और रोला के संयोग से बना छंद है.इस छंद के 6 चरण होते हैं तथा प्रत्येक

चरण में 24 मात्राएँ होती है.इसे यूँ भी कह सकते हैं कि कुंडलिया के पहले दो चरण दोहा

तथा शेष चार चरण रोला से बने होते है.दोहा के प्रथम एवं तृतीय चरण में 13-13 मात्राएँ

तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं.रोला के प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ

होती है.रोला में यति 11वी मात्रा तथा पादान्त पर होती है.कुंडलिया छंद में दूसरे चरण का

उत्तरार्ध तीसरे चरण का पूर्वार्ध होता है.

 

जन-सेवक ये देश के, नए लक्ष्य के साथ।

कर्म क्षेत्र में आ जुटे, थामा श्रम का हाथ।

थामा श्रम का हाथ, कष्ट सहने को तत्पर,

जग से नाता जोड़, रहेंगे प्रहरी बनकर।

धन-सुख औ यश-नाम, मिलेगा इनको बेशक,

सकल देश की शान, कहाते ये जन सेवक।

 

नव-जीवन की राह पर, निकले वीर जवान।

कुछ समाज सेवा करें, इनका है अरमान।

इनका है अरमान, निबल हैं चाहे तन से,

भाव भावना श्रेष्ठ, और है प्रेम वतन से।

कहनी इतनी बात, खास है दृढ़ता मन की,

निकले वीर जवान, राह पर नव-जीवन की।

(2)

दोहे---दोहे में दो पद और चार चरण होते हैं इसके प्रत्येक  पद में २४ मात्राएँ होती हैं ।हर पद दो चरणों में बंटा होता है ...और उसके  पहले और तीसरे चरण में १३-१३ मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं ।

 

निकले हैं नव राह पर, लिए अटल विश्वास।

होना है हर हाल में, इम्तिहान में पास।

 

हड्डी पसली एक है, लेकिन मन में चाह।

पंख पहनकर उड़ चलें, आसमान की राह।

 

पद की रखना लाज अब, करके मद का त्याग।

लगने ना पाए कभी, इस वर्दी पर दाग।

 

सदा सकारक सोच से, कर्म क्षेत्र को जीत।

मानुष जन्म मिला तुम्हें, व्यर्थ न जाए बीत।

 

काश! हमारे देश में, जन्में ऐसे पूत,

जो समाज को दे सकें, श्रम अनमोल अकूत।

 

बहरे मूक समाज से, पूछ रही तस्वीर।

कब बदलेगी देश में, दीनों की तकदीर। 

(3)

वर्णिक छंद

प्रमाणिका—8 वर्ण

जगण+रगण+लघु+गुरु

 

आज इम्तिहान है

 

नवीन राह कर्म की।

नई नई जिजीविषा।

नई उमंग लक्ष्य की।

नई हवा नई दिशा।

नई नई उड़ान है।

कि आज इम्तिहान है।

 

डरो नहीं डटे रहो।

झुको नहीं कमान से।

प्रयास में जुटे रहो।

तने रहो गुमान से।

समर्थ का जहान है।

कि आज इम्तिहान है।

 

लगाव हो सुराज से।

शुभत्व का प्रवेश हो।

जुड़ाव हो समाज से।

उदारता विशेष हो।

मनुष्यता महान है।

कि आज इम्तिहान है।

********************************************************************************************************* 

Satyanarayan Shivram Singh 

(1)

कुण्डलिया छन्द

सबके मन को भा गया, सिंघम का किरदार।

सिंघम जैसा मैं बनूं, जीवन में इकबार।।

जीवन में इकबार, ठान यह मन में अपने।

लगी युवा में होड़, चले प्रतियोगी बनने।।

कहे सत्य कविराय, इरादे जिनके पक्के।

 नव सिंघम आदर्श, बनें जीवन में सबके।।

(2)

 कुण्डलिया छन्द...

जीवन में संघर्ष का, अपना है अस्तित्व।

मिले सफलता जीव को, अनथक हो व्यक्तित्व।।

अनथक हो व्यक्तित्व, भूमिका सार्थक करता।

अपना हर दायित्व, निभा जन के दुःख हरता।।

कहे सत्य कविराय, ललक सात्विक हो मन में।

मुश्किल हो आसान, मिले मंजिल जीवन में।।

*********************************************************************************************************

AVINASH S BAGDE 

कुण्डलिया छंद 

टेप नहीं  छोटा पड़े  ,छाती रहा फुलाय .

हवलदार को देखिये ,आज पसीना आय 

आज पसीना आय ,हजारों जन हैं आये 

रंगरूट बनने को, सारे गबरू इतराये  

कहता है अविनाश ,ये जांबाजों की शेप 

छाती चौड़ी करे ,चिपकाये  मुह पर  टेप 

********************************************************************************************************* 

विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय 

दोहा + चौपाई छंद [ दोहा- 13 (अंत में लघु गुरु या 3 लघु)+11 (अंत में गुरु लघु) मात्रा के साथ प्रति चरण 24 मात्रायें तथा चौपाई में प्रति चरण 16 मात्रायें (अंत में 2 गुरु या 4 लघु या 1 गुरु व 2 लघु)]
***********************************
दोहा-
भर्ती होती पुलिस की, आये बहुत जवान।
ग्राम देव का पुत्र भी, आया सीना तान॥1॥

चौपाई-
सुन्दर छरहर पतली काया।
दस सहस्र गज सम बल पाया॥
सीना इसने ताना ऐसे।
शम्भु चाप शर ताने जैसे॥


नस नस से है ओज झलकता।
रोम- रोम से तेज चमकता॥
मत समझो दुबला पतला है।
महाबली यह अलबेला है॥


दूध दही घी से तन गाठा।
गांव कि माटी का है पाठा॥
ग्राम देवता का वर पाया।
इसीलिये भर्ती में आया॥


"वक्ष माप मेरा कर लीजै।
एक बार मौका दे दीजै॥
खाकीधारी होकर जाऊँ।
गुण्डों को मैं मार भगाऊँ॥


जग में रोशन नाम करूँगा।
दुश्मन से मैं नहीं डरूँगा॥
साथ गरीबी छूटे मेरी।
वर्षों की मुराद हो पूरी॥

तन सेवा के साथ ही, सेवा करूँ समाज।
अभिलाषा मन ले यही, आया भर्ती आज॥2॥

********************************************************************************************************* 

shashi purwar 

दोहा --

दोहा  एक मात्रिक छंद है , इसमें चार पद होते है . इसके विषम  ( प्रथम , तृतीय )पद में 13-13 एवं सम पद ( द्वितीय , चतुर्थ ) में 11-11 मात्राएँ होती है , सम  चरणों के अंत में दीर्घ और लघु आना आवश्यक है .

जीवन बहता नीर सा , राही चलता जाय 

बीती रैना कर्म की , फिर पीछे पछताय .

 

सीना चौड़ा कर रहे , सभी बाँके जवान 

देश प्रेम के लिए है , हाजिर अपनी जान .

 

सीना ताने मै खड़ा , करे धरती पुकार 

आखिर कतरा खून का ,तन मन देंगे वार .

 

कुण्डलियाँ ---

कुण्डलियाँ दोहा और रोला  के योग से बनती है , कुण्डलियाँ शब्द का आरम्भ और अंत एक ही शब्द , या शब्द समूह से होता है . रोला के अंत में दीर्घ आना आवश्यक है .

 

सीना चौड़ा कर रहे ,वीर देश की शान 

हर दिल चाहे वर्ग से ,करिए इनका मान 

करिए इनका मान , हमें धरती माँ प्यारी  

वैरी जाये हार , यह जननी है हमारी 

दिल में जोश उमंग ,देश की खातिर जीना 

युवा देश की शान ,कर रहे चौड़ा सीना .

Views: 4896

Replies to This Discussion

ek saath padhne ka anand alag hi hota hai bahut si rachnaye padhne se vanchit rah gaye the , ab pura anand liya . badhai safal sayongan ki...

saurabh ji kya systam ho gaya hai , post karte raho khali hi dikhta hai box ............ :) , sari mehanat post karne me hi chali jaati hai

आभार आदरणीया, ओ बी ओ परिचालन मे आपको क्यों समस्या हो रही है, यह मैं समझ नही पा रहा हूँ, कृपया कुछ प्रश्नों का उत्तर आप मेरे ओ बी ओ इन बॉक्स मे भेज दें, शायद कुच्छ सहयोग कर सकूँ |

  • आप नेट किस सर्विस प्रोवाइडर का चलाती है और नेट किस प्रकार का है, टू जी, थ्री जी, ब्रॉड बैंड, जीपीआरएस ?
  • क्या यू ट्यूब वीडियो बिना रुके चलता है ?
  • ब्राउज़र कौन सा है ?
  • क्या आप समय समय पर ब्रावजींग हिस्ट्री कुकीज़ आदि हटाती रहती है ?
सादर आभार आपका एडमिन जी, सभी रचनायें एक साथ कर देने से हम जैसे नये लोगों को सभी काव्य पढने तथा उनसे सीखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ

सराहना हेतु आभार मनोज शुक्ला जी, लाइव और इनटरेक्टिव आयोजन का आनंद ही कुछ और है, काश आप आयोजन मे बने रहते, फिर देखते !!! 

आदरणीय गणेश जी सभी की रचनाओं को एक मंच पर सुशोभित करने का त्वरित श्रम साध्य कार्य हेतु साभार हार्दिक बधाई कल अचानक बाहर जाना पड़ा महोत्सव में पूर्णतः भाग नहीं ले सकी बहुत सी रचनाएं पढने से छूट गई अब पढ़ी हैं हालांकि महोत्सव में उपस्थित रहकर सब को  पढना और प्रतिक्रिया देने का अपना अलग मजा है फिर भी यह मंच भी इस कमी को दूर करने में काफी हद तक सहायक है सभी ने एक से बढ़कर एक लिखी हैं कुछ नए रचनाकार जैसे कल्पना रमानी जी ,वंदना जी ,शशि पुरवार जी की रचनाये अभी पढ़ी बहुत ही बढ़िया लिखी हैं राजेंद्र स्वर्णकार जी जैसे जाने माने रचनाकार की रचना भी अभी पढ़ रही हूँ शानदार प्रस्तुति है आप सभी को  हार्दिक बधाई। 

रचनाओं को संकलित करने का कार्य श्रम साध्य के साथ साथ दुरूह भी है, रचनाएं विभिन्न फारमेटिंग मे होती हैं जिन्हे साधना टेढ़ा काम होता है और खूब समय भी लेता है, पर रचनाओं को इकट्ठा पढ़ने का मोह यह सब करा लेता है, मैं आभार व्यक्त करता हूँ डा. प्राची जी का जो पिछ्ले दिनों से यह दायित्व संभाल रही हैं, इसबार उनके अवकाश मे रहने के कारण मुझे यह दायित्व निभाना पड़ा | 

सराहना हेतु आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी ।

आदरणीय बागी जी सादर नमन! महोत्सव की तरह इसबार यह छंदोत्सव भी सम्भवत: विगत आयोजनों की अपेक्षा आशातीत सफल रहा, इसमें आप सब गुरुजनों की छत्रछाया में हमने अनेकश: महत्तवपूर्ण ज्ञानार्जन किया। कई चर्चायें बेहद ही ज्ञानवर्द्धक रहीं। इस छंदोत्सव में यशोदा और प्रमाणिका जैसे दो छंदों से हमारा प्रथम परिचय हुआ। आयोजन में आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी तथा संदीप भाई जी के वीर-छंद ने मनमोह लिया। सम्प्रति यह आयोजन बेहद कामयाब रहा। आयोजन की सफलता के लिये मंच-संचालक श्री सौरभ पाण्डेय जी तथा सभी रचनाओं के संकलन के लिये आपको कोटिश: बधाई।

प्रिय विंधेश्वरी भाई, निश्चित ही यह आयोजन कई कई मायनों मे बहुत ही सफल रहा, आप सभी ने आयोजन मे चार चाँद लगा दिया, बहुत बहुत आभार |  

आदरणीय बागी जी सादर, छ्न्दोत्सव-अंक२५ की सफलता के पश्चात तुरंत ही सभी रचनाओं का संकलन इस द्रुत गति से किये गए कार्य के लिए बहुत बहुत बधाई. जैसा की प्रतियोगिता को छ्न्दोत्सव नाम देते वक्त ही लगा था यह छन्दों की कार्यशाला साबित होगा. वैसा ही हो भी रहा है. मुझे लगता है मेरे साथ ही सभी प्रतिभागियों  को छ्न्दोत्सव में बहुत आनंद आया होगा. कुछ कटु क्षणों के लिए खेद है. सादर. 

आयोजन की सभी रचनाएँ एक स्थान पर पढना एक   संकलित सम्पादित  पुस्तक पढने के सामान सुखद है । इस प्रकार ओपन बुक्स ओन लाइन अपनी सार्थकता और उपस्थिति अत्यंत सधे  सटीक और सशक्त तरीके से प्रस्तुत कर रहा है  । आयोजन दर आयोजन रचनाओं की मेयार बढती ही जा रही है समूची ओ बी ओ टीम और रचनाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !!

आदरणीय गणेश जी,

छन्दोत्सव के त्वरित संकलन के लिए बहुत बहुत आभार... यह श्रम साध्य कार्य आपने इतनी शीघ्रता के साथ किया इस हेतु आपको साधुवाद.

छंदोत्सव इस बार बहुत सफल रहा और सभी सदस्यों नें बहुत उत्साह से इसमें प्रतिभागिता दर्ज कराई यह तो ११३ पृष्ठ और १३४८ रीप्लाईज से ही स्पष्ट हो गया. तीन दिन चले आयोजन की रचनाएँ एक साथ पढ़ना हमेशा बहुत ही अच्छा लगता है...और इस बार तो यह विशेष रूप से खास लग रहा है.

वीर रस, हास्य रस और करुण रस प्रधान इस जोशीले संकलन के लिए हार्दिक बधाई. सादर.

सारी रचनाओं को एक साथ पढ़वाने के लिए आभार। जो लोग विभिन्न कारणों से आयोजन में शामिल नहीं हो पाते उनके लिए ये पोस्ट एक वरदान है।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service