For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस पाठ में हम हरिगीतिका छन्द पर चर्चा करने जा रहे हैं.
यह अवश्य है कि हरिगीतिका छन्द के विधान पर पहले भी चर्चा हुई है. लेकिन प्रस्तुत आलेख का आशय विधान के मर्म को खोलना अधिक है. ताकि नव-अभ्यासकर्मी छन्द के विधान को शब्द-कल के अनुसार न केवल समझ सकें, बल्कि गुरु-लघु के प्रकरण को आत्मसात कर निर्द्वंद्व रचनाकर्म कर सकें.

चार पदों के इस छन्द में प्रचलित रूप से दो-दो पदों की तुकान्तता हुआ करती है.
हर पद २८ मात्राओं का होता है. जिसकी यति अमूमन १६-१२ पर हुआ करती है. किन्हीं-किन्हीं पदों में यह यति १४-१४ मात्राओं पर भी देखी गयी है, जोकि पद के निहितार्थ के अनुसार हुआ करती है. परन्तु, प्रचलित यति १६-१२ मात्रा के अनुसार ही होती है.
हम इस छन्द के इसी प्रचलित रूप पर अभ्यास-कार्य करेंगे.

हरिगीतिका छन्द को सरलता से समझने के लिए सूत्रवत यों लिखा जा सकता है -
हरिगीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका हरिगीतिका

यानि, ’हरिगीतिका’ की चार आवृति के शब्द-संयोजन में पद बनते हैं.

यहाँ प्रत्येक ’हरिगीतिका’ का अर्थ हुआ कि लघु-लघु-गुरु-लघु-गुरु की एक आवृति. ऐसी-ऐसी चार आवृतियों से एक पद बनेगा. स्पष्ट है कि ’हरि’ दो लघुओं का समुच्चय है.

दूसरा सूत्र यों हो सकता है-
श्रीगीतिका श्रीगीतिका श्रीगीतिका श्रीगीतिका
उपरोक्त सूत्र का अर्थ यह हुआ कि ’श्री’ एक गुरु है.

इस छन्द के प्रत्येक पद का अन्त रगण (राजभा, २१२, ऽ।ऽ, गुरु-लघु-गुरु) से हो या वाचिक रूप से रगणात्मक हो तो वाचन का प्रवाह अत्युत्तम होता है. हम भी इस परिपाटी के अनुसार चलेंगे.

एक बात और, इस छन्द के पद में चौकल बनेंगे, लेकिन, कोई चौकल जगण (जभान, १२१, ।ऽ।, लघु-गुरु-लघु) नहीं होना चाहिये.
दूसरी बात जो स्पष्ट रूप से दीखती है, वह ये कि, प्रत्येक पद में ५वीं, १२वीं, १९वीं, २६वीं मात्रा अनिवार्य रूप से लघु है. यही इस छन्द की विशेषता है.

दोनों सूत्रों में मुख्य अन्तर यह है, कि ’हरिगीतिका’ के ’हरि’ को ’श्रीगीतिका ’ के ’श्री’ से परिवर्तित किया जा सकता है. यानि ’हरिका दो लघु ’श्री’ के एक गुरु से आश्यकतानुसार परिवर्तित हो सकता है.

ऐसी अवधारणा को समझना बहुत कठिन नहीं है.
शब्द-कल’ को समझने वाले अभ्यासकर्मी समकल (द्विकल, चौकल आदि) को खूब समझते हैं. कि, दो लघुओं से बने शब्द का मात्रा-भार एकसार हुआ करता है, तो वह गुरु की तरह व्यवहृत होता है.  उदाहरण केलिए एक शब्द लें - ’समझ’.
समझएक त्रिकल शब्द है. यानि लघु-लघु-लघु का समुच्चय है.

इसका उच्चारण होता है - स+मझ.  यानि, ’’ के बाद आया मझ’ यद्यपि दो लघुओं का समुच्चय है, इसके बावजूद उसका मात्रा-भार किसी गुरु की तरह ही होता है. यानि ’समझ’ के ’मझ’ का उच्चारण ’म’ और ’झ’ की तरह न होकर ’मझ’ जैसा होता है. इसीसे ’समझ’ शब्द को उच्चरणवत ’स+मझ’ लिखा गया है.

विश्वास है कि, उपरोक्त कहे का आशय स्पष्ट हो गया होगा.

इसी तर्ज़ पर ’श्रीगीतिका’ तथा ’हरिगीतिका’ के क्रमशः ’श्री’ तथा ’हरि’ को समझने की आवश्यकता है. ’हरिवस्तुतः ’लघु-लघु’ ही है तथा ’श्री’ एक दीर्घ यानि गुरु ही है. परन्तु, ’हरि’ पर स्ट्रेस (मात्रा-भार) होने के कारण ’हरि’ के ’’ तथा ’रि’ अलग-अलग उच्चारित न हो कर एक ही मात्रा-भार से उच्चारित होते हैं. जैसेकि ’श्री’ अपने दीर्घ (या, गुरु) के अनुसार उच्चारित होता है.

इसके अलावा, उपरोक्त सूत्रों के ’हरिगीतिका’ या ’श्रीगीतिका’ का ’गी’ तथा ’का’ भी इसी अनुसार दो लघुओं में परिवर्तित हो सकते है. बशर्ते, उन लघुओं के मात्रा-भार एकसार हों. या तदनुरूप व्यवहृत हों. यानि, ’गी’ तथा ’काके स्थान पर दीर्घ अक्षर आपरूप ही आते हैं और मान्य हैं. लेकिन, एकसार मात्रा-भार के दो लघु भी मान्य होंगे. जैसा कि उदाहरण में ’समझ’ शब्द का ’मझ’ है.  

उपरोक्त तथ्य को समझने के लिए उदाहरणार्थ एक छन्दांश लेते हैं जो कि मैथिलीशरण गुप्त रचित है -
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है
वह नर नहीं नर-पशु निरा है और मृतक समान है

इन दोनों पदों को सूत्र की आवृति के अनुसार समझा जाय तो -
जिसको न निज - हरिगीतिका - यहाँ ’निज’ समान मात्रा-भार का है और हरिगीतिका सूत्र के ’का’ के स्थान पर है.
गौरव तथा - श्रीगीतिका - यहाँ ’गौ’ ’श्री’ के स्थान पर है. ’रव’ ’गी’ के स्थान पर है जो एकसार मात्रा-भार के दो लघुओं ’र’ और ’व’ से बना है.  
निज देश का - हरिगीतिका - विशेष व्याख्या की आवश्यकता नहीं है.
अभिमान है - हरिगीतिका - यहाँ भी विशेष व्याख्या की आवश्यकता नहीं है.
इस पद का अन्त ’मान है’ से हो रहा है, जो रगण वर्ण में है. यह भी नियमानुसार है. यहाँ रगण का शब्द या शब्द-समुच्चय वाचिक रगणात्मक भी हो सकता है.  

अब छन्दांश का दूसरा पद -
वह नर नहीं - हरिगीतिका - यहाँ ’नर’ सूत्र के ’गी’ के स्थान पर आये एकसार मात्रा-भार वाले दो लघुओं से निर्मित है.
नर-पशु निरा - हरिगीतिका - यहाँ भी ’पशु’ सूत्र के ’गी’ के स्थान पर आया है. अन्य स्पष्ट है.
है और मृत - श्रीगीतिका - ’है’ तथा ’औ’ सूत्र के ’श्री’ और ’गी’ की जगह पर हैं. ’मृत’ सूत्र के ’का’ की जगह आया है जो एकसार मात्रा-भार के दो लघुओं से निर्मित है.
क समान है - हरिगीतिका - विशेष व्याख्या की आव्श्यकता नहीं है.
तुकान्तता के अनुसार इस पद का अन्त भी ’मान है’ से हो रहा है जो कि रगण वर्ण में है.

एक और उदाहरण से उपरोक्त तथ्य को समझने का प्रयास किया जाय. उदाहरणार्थ ’रामचरित मानस’ में प्रयुक्त इस छन्द के एक

पद को लेते हैं -  
करुना निधान सुजान सील सनेह जानत रावरो ..
उपरोक्त पद को सूत्र के अनुसार चार आवृतियों में बाँट दिया जाय - करुना निधा / न सुजान सी / ल सनेह जा / नत रावरो
करुना निधा - हरिगीतिका
न सुजान सी - हरुगीतिका
ल सनेह जा - हरिगीतिका
नत रावरो - हरिगीतिका
साथ ही पदान्त ’रावरो’ से होने के कारण पदान्त का रगण से होना भी निश्चित हो रहा है.

हरिगीतिका छन्द का एक उदाहरण -

दुर्धर्ष तम की उग्र लपटों में घिरा क्यों आर्य है
भौतिक सुखों के मोह में करता दिखे हर कार्य है
व्यवहार से शोषक, विचारों से प्रपीड़क, क्रूर है  
फिर-फिर धरा की शक्ति जीवन-संतुलन से दूर है

धरती अहंकारी मनुज की उग्रता से पस्त है
फिर से हिरण्याक्षों प्रताड़ित यह धरा संत्रस्त है
राजस-तमस के बीज से जब पाप तन-आकार ले
वाराह की या कूर्म की सद्भावना अवतार ले

फिर से धरा यह रुग्ण-पीड़ित दुर्दशा से व्यग्र है  
अब हों मुखर संतान जिनका मन-प्रखर है, शुभ्र है
इस कामना के मूल में उद्दात्त शुभ-उद्गार है
वर्ना रसातल नाम जिसका वो यही  संसार है     (छन्द के अंश ’इकड़ियाँ जेबी से’ उद्धृत)

*********************************
ज्ञातव्य :  आलेख हेतु जानकारियाँ उपलब्ध साहित्य से उपलब्ध हुईं हैं
*********************************
-सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)
*********************************

Views: 7061

Replies to This Discussion

आदरणीय गिरिराजभाईसाहब,

आपके प्रयासों से यह मंच या इस मंच के आयोजन सदा से लाभान्वित होते रहे हैं. अभी थोेड़ी देर पहले आदरणीय ख़ुर्शीद भाई के एक प्रश्न पर मैंने इस छन्द के अन्य पहलू पर भी बातें की हैं.

आप मेरी उस टिप्पणी से बहुत लाभ ले सकते हैं. फिर यह हरगीतिका छन्द भी गीतिका छन्द की तरह आपके लिए सहज और सरल हो जायेगा. .. :-))

सादर

ज़रूर आदरणीय सौरभ भाई , वो टिप्पणी भी पढ लिया हूँ , बहुत कुछ समझ में आया है , आभार आपका ।

जय हो.. :-)

आदरणीय सौरभ भाईजी ,

पाठकों के संशय और आपके जवाब से ही हरिगीतिका छंद पर  प्रायः  सभी संभावित प्रश्नों का समाधान स्वयं ही मिल गया। हृदय से धन्यवाद के साथ एक संशय भी दूर कर लेना चाहता हूँ ।.....

यति अमूमन १६-१२ पर हुआ करती है. किन्हीं-किन्हीं पदों में यह यति १४-१४ मात्राओं पर भी देखी गयी है,

दो पदों की तुकांतता में यदि एक पद में यति 16 - 12  पर हो और दूसरे में 14 - 14 पर तो क्या यह विधान के अनुसार होगा ?  या 16-12 और 14-14 में से किसी एक नियम का ही पालन ज़रूरी है। कोई प्रयास अभी किया नहीं पर 14 - 14 सरल प्रतीत होता है और मिला जुला लिखना शायद और भी सरल हो। 

सादर 

  

आदरणीय अखिलेश भाईसाहब,
किसी विधान सम्बन्धित आलेख पर पर आये प्रश्नों के माध्यम से न केवल प्रश्नकर्ता की शंकाओं का समाधान होता है बल्कि उक्त आलेख के अन्य पाठकों की शंकाओं का निवारण भी होता है. आपके प्रश्न इस अर्थ में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं और मैं हृदयतल से आभार अभिव्यक्त करता हूँ.

आदरणीय, हरिगीतिका के पदों की सामान्य यति १६-१२ की होती है. जबकि यही यति १४-१४ की भी होती है. यह प्रति पद व्यवहृत होती है. यानि, किसी एक छन्द में, जो कि चार पदों का होता है, हर पद में अलग-अलग यति बन सकती है. यतियाँ उस पद में निहित अर्थ को स्पष्ट करने के अनुसार होती है.

यतियों के होने का मूल मकसद (कारण) यही हुआ करता है कि लम्बे-लम्बे पदों को पढ़ने के क्रम में भाव के अस्पष्ट होने का खतरा हुआ करता है. यतियों के माध्यम से वाचन प्रवाह को रोकने का काम किया जाता है, ताकि पद को दो भागों में बाँट दिया जाये और पद का अर्थ स्पष्ट हो.

विश्वास है, आपकी शंका का निवारण हो पाया.
सादर

परम आदरणीय सौरभ पांडे सर, अत्यंत सरल शब्दों में सटीक छंद विधान समझाने तथा अमूल्य ज्ञानवर्धन के लिए आपका बहुत बहुत आभार धन्यवाद 

बहुत ही सुंदर जानकारी। काव्य रचना नियमानुसार होने पर ही अलंकृत होती है यह मात्र एक उदाहरण देखने से पता चल गया…बहुत बहुत धन्यवाद व आभार…

आदरणीय सौरभ सर, हरिगीतिका छ्न्द को विस्तार से समझाने के लिये आपका हार्दिक आभार । आदरणीय खुर्शीद सर को दिए जवाबों में और भी बातें स्पष्ट हो गई. सादर, नमन 

अवश्य ..सही कहा आपने आदरणीय मिथिलेशजी, भाई खुर्शीद खैराड़ी के साथ हुए संवाद में बहर के लिहाज से भी हरिगीतिका छन्द को समझने का प्रयास हुआ है.

नमन श्रद्धेय सौरभ सर!बहुत् ही महत्वपूर्ण जानकारी एवं उम्दा उदाहरण साँझा की है आपने।सादर हार्दिक आभार।हम भी प्रयास करते हैं हरिगीतिका/श्रीगीतिका छ्न्द पर कुछ रचनाकर्म का।सादर

हरिगीतिका छंद (२२१२,२२१२,२२१२,२२१२ )पर हम सबने यहीं मंच पर बहुत गंभीर रचनाएँ की हैं.. और आगे भी करते रहेंगे 

आदरणीय सौरभ जी,  २१२२, २१२२, २१२२, २१२२ ये वार्णिक क्रम कौन से छंद का है, क्या इस बारे में आप जानकारी दे सकते हैं ??

सादर 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-96 (विषय: अनुभव)
"आदाब। गोष्ठी का भावपूर्ण रचना से आग़ाज़ करने हेतु हार्दिक बधाईआदरणीय अजय गुप्ता 'अजेय' जी।…"
4 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-96 (विषय: अनुभव)
"खोज 15 साल के किशु ने सारा घर सर पर उठा रखा है। कभी रो रहा है, कभी चिल्ला रहा है, कभी इधर जाने की…"
7 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-96 (विषय: अनुभव)
"आयोजन में आप सभी का स्वागत है ।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

हमें यूँ न रंगीन सपने दिखाओ - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२२*अँधेरों से जब जब डरी रोशनी हैबड़ी मुश्किलों में पड़ी जिन्दगी है।१।*कहीं आदमी खुद लगे…See More
15 hours ago
PHOOL SINGH posted a blog post

सम्राट अशोक महान

चन्द्रगुप्त का पौत्र, जो बिन्दुसार का पुत्र थाबौद्ध धर्म का बना अनुयायीजो धर्म-सहिष्णु सम्राट…See More
Tuesday
मनोरमा जैन पाखी left a comment for मनोरमा जैन पाखी
"धन्यवाद आद. योगराज प्रभाकर सर जी"
Sunday
मनोरमा जैन पाखी updated their profile
Sunday
Manoj Misran is now a member of Open Books Online
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"बहतर है शुक्रिया आपका अमित जी सादर"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय Mahendra Kumar जी  1. मतला ग़ज़ल का पहला शे'र और सबसे अह्म हिस्सा होता है। उसे…"
Saturday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
""ओबीओ लाइव तरही मुशाइर:" अंक-153 को सफल बनाने के लिए सभी ग़ज़लकारों और पाठकों का हार्दिक…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
" जी ठीक है हमको फ़ुर्सत ही नहीं कार-ए-जहाँ से जानाँ "आपके मिलने का होगा जिसे अरमाँ…"
Saturday

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service