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ओ ! दसरथ माँझी, ओ ! दसरथ माँझी

जियरा तू पोढ़ कइलो दसरथ माँझी |

 

जाना उस पार बीचे बाटै पहाड़

काटौ पाथर-गरब अपार  

हाथ-गोड़ लोह कइलो दसरथ माँझी |

 

सोनवा कै गाछ जग जतन के हाथ

छिनी-हथौड़, संकलपहि साथ  

तुहुँ रहिया सोझ कइलो दसरथ माँझी |

 

जिनगी मोहताज घर मौनी-अनाज

सबसे बड़-खर पेट कै आग  

मेहनत कोख कइलो दसरथ माँझी |

 

जनम रेहार करम कैसे न लिलार

करमहि बदलत जग-संसार  

धुन आपन जोत कइलो दसरथ माँझी |

 

देसवा महान भारू तबहूँ परान

परबत-पौरुष मिले न दाम  

कूवत से भोर कइलो दसरथ माँझी |

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

-- संतलाल करुण 

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Replies to This Discussion

बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय

आदरणीय वर्मा जी,

आप के मन के प्रतिक्रियात्मक भावों के प्रति हार्दिक आभार !

दशरत माझी जी को समर्पित यह कविता समाज के लोगों में सदा प्रेरणा देती रहेगी  हृदय में कठिन से कठिन कार्य को करने की प्रेरणा  प्रदान करती रहेगी  जो बहुत बड़े नेता , धर्म के ठीकेदार , धनवान भी उस कार्य को अनेक बार सोच कर भी  नहीं कर पते हैं अपने उसे अभाव के बावजूद कर दिखाया है अपनी लग्न और दृढ़ सङ्क्प के द्वारा प लिया । आपको बहुत बहुत आभार अद्रणीय वर्मा जी आपको बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो । 

आदरणीय आसरे जी,

हार्दिक आभार !

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