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सुश्री कांता रॉय जी के लघुकथा संग्रह "घाट पर ठहराव कहाँ" पर पाठकीय प्रतिक्रिया

"घाट पर ठहराव कहाँ" - लघुकथा संग्रह, 
लेखिका - सुश्री कांता रॉय
प्रकाशक - समय साक्ष्य, देहरादून, 
मूल्य : १५०/= रुपये (जन संस्करण), २०० रुपये (पुस्तकालय संस्करण)
ISBN NO.978-81-86810-31-5 
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"घाट पर ठहराव कहाँ" उदीयमान लघुकथाकारा सुश्री कांता रॉय जी का पहले पलेठा लघुकथा संग्रह है, जिसमे उनकी १२४ लघुकथाएँ शामिल की गई हैं। इस पुस्तक पर अपनी पाठकीय प्रतिक्रिया देते हुए मुझे हर्ष और गर्व की मिश्रित अनुभूति हो रही है,  क्योंकि सुश्री कांता रॉय जी भी मेरी तरह ही "ओबीओ लघुकथा स्कूल" की ही छात्रा हैं।  भले ही यह उनके प्रारम्भिक दौर की रचनायों का संग्रह है, किन्तु उसके बावजूद भी उनकी लेखनी से परिपक्वता की ओर अग्रसर होने के लक्षण साफ़ साफ़ दिखाई दे रहे है !

विद्वानों का मत है कि संक्षिप्तता, सूक्ष्मता और संयम लघुकथा की बुनयादी आवश्यकताएँ हैं, इनके बगैर रचना के रास्ता भटक जाने का खतरा बना रहता है। इस संग्रह की लघुकथाएँ पढ़ते हुए मुझे आभास हुआ है कि बहुत सी रचनाएँ  इस कसौटी पर कमोबेश खरी उतर रही हैं। लेखिका के पास एक विशेष दृष्टि है, जो चीज़ों और घटनाओं को एक से अधिक कोणों से देखने परखने में सक्षम है। लगभग एक बरस पहले लघुकथा विधा में पदार्पण करने के बाद ऐसी प्रगति को उल्लेखनीय ही माना जाना चाहिए। गलत और सही का निर्णय तो समय ही करेगा, किन्तु लेखिका की सोच में कोई भटकाव नज़र नहीं आता है। कहा जाता है कि लघुकथा लिखते समय एक लेखक को तीन बातों को सदैब याद रखना चाहिए कि उसे "क्या लिखना है", "क्यों लिखना है" और "कैसे लिखना है" I अक्सर नवोदित रचनाकार इन तीन में से किसी एक बिंदु पर चूक कर जाते हैं, फलस्वरूप एक अच्छी खासी रचना महज़ एक कथानक बन कर रह जाती है I बेहद घिसे पिटे विषय, अस्वाभाविक नाटकीयता, "आकस्मिक समाप्ति", किसी (तार्किक) निष्कर्ष पर पहुँचने की जल्दबाजी लघुकथा को बेजान और अप्रभावशाली बना कर रख देते हैं I इन सबसे बचकर नए विषयों का चुनाव कर स्वाभाविक किन्तु प्रभावशाली ढंग से यदि लघुकथा कही जाये तो बेहतर होगा I उपरोक्त कमियाँ नवोदित लघुकथाकारों की रचनायों में आम पाई जाती है I "वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन - उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा !" यह बात लघुकथा पर भी लागू होती है, किसी कहानी को यदि तार्किक निष्कर्ष तक ले जाना संभव न हो, तो एक प्रश्न-चिन्ह छोड़ देना एक सर्वश्रेष्ठ विकल्प है I ऐसा करके गेंद पाठक के पाले में डाल दी जाती है, तथा निर्णय उसके विवेक पर छोड़ दिया जाता है I   

लघुकथा में अनावश्यक विस्तार एवँ विवरण से बचने की सलाह दी जाती है, किन्तु यह भी स्मरण रखा जाना आवश्यक है कि कोई भी बात अधूरी न छूट जाये I लघुकथा में जो "अनकहा" होता है वह अति महत्वपूर्ण होता है, किन्तु रचनाकारों को समझना होगा कि "अनकहे" और "अनलिखे" में ज़मीन आसमान का अंतर है I सादगी, सुभाषता और स्पष्टता का सुमेल ही एक कालजयी लघुकथा का निर्माण कर सकता है, अत: लयुकथाकार को पाठकों के समक्ष पहेलीनुमा लघुकथा प्रस्तुत करने से गुरेज़ करना चाहिए I   

इस संग्रह की रचनायों में विभिन्न विषयों के दर्शन होते हैं I इनमे से कुछ विषय बिलकुल आम, कुछ बेहद ख़ास और कुच्छेक लीक से एकदम हटकर हैं I विषय चुनाव में अभी लेखिका को बहुत अधिक परिश्रम करने की आवश्यकता है I इनकी रचनाओं में एक विशेष बात देखने को मिली है, वह है शीर्षक का चुनाव।  बहुत से वरिष्ठ लेखक भी इस पहलू को अनदेखा कर देते हैं, लेकिन सुश्री कांता रॉय जी इसके प्रति बेहद सावधान और सचेत लग रही हैं ! 

कथानक की धरती पर लघुकथाकार उसके ऊपर एक भव्य निर्माण की प्रक्रिया से गुजरता है I उस कथानक को अपनी कल्पना और रचनाशीलता का पुट देना आम भाषा में "ट्रीटमेंट" कहा जाता है, अर्थात उस कथानक या विचार के साथ कैसा "सलूक" किया जाता है I यहाँ एक रचनाकार को बेहद चौकन्ना और चौकस रहने की आवश्यकता होती है, क्योंकि इस अवस्था में एक छोटी सी चूक भी लघुकथा को कुरूप बना सकती हैI 

मैं निजी तौर पर लघुकथा में नारी को एक सशक्त व्यक्तित्व के तौर पर प्रस्तुत करने का हामी रहा हूँ, एक महिला होने के नाते यही अपेक्षा मुझे सुश्री कांता रॉय जी से भी थी I मुझे यह देखकर अति प्रसन्नता हुई कि इस संग्रह की कथायों में नारी को अबला या कमज़ोर रूप में पेश नहीं किया गया I इनकी लाघुकथायों में नारी गुलामी और रूढ़ियों को धत्ता बताती नज़र आती हैं I नारी के प्रश्न पर सुश्री कांता रॉय जी ने कई जगह विषय और कथानक के साथ जोखिम भी उठाया है। ऐसे जोखिम उठाने की हिम्मत हर कोई नहीं कर सकता। इस सिलसिले में उनकी दो लघुकथायों की चर्चा समीचीन होगी ! "पतिता" लघुकथा एक ऐसी महिला पर आधारित है जो स्वयं चरित्रहीनता का इलज़ाम सह रही है, किन्तु उसने इस तथाकथित चरित्रहीनता को अपने चरित्रहीन पति के विरूद्ध एक प्रतिशोध के रूप में इस्तेमाल किया है ! इसी तरह ही उनकी एक और लघुकथा "राहत" है जोकि प्रचलित लीक से हटकर कही गई एक लघुकथा है।  इसमें भी एक पीड़ित नारी द्वारा परपीडन प्रसन्नता की बात की गई है ! इस लघुकथा में एक ऐसे शराबी पति की बात की गई है, जिसके सारी जिंदगी शराब के नाम कर दी और जिसके अत्याचार पत्नी के साथ साथ उसकी बेटियों और बहुयों को भी सहने पड़े। लेकिन एक दिन पता चलता है कि उसकी किडनियाँ खराब हो गई हैं। यह जान कर पत्नी को दुःख नहीं बल्कि राहत का अनुभव होता है। इन दोनों लाघुकथायों में महिला पात्र बेबस और लाचार होकर रुदन नहीं करते, बल्कि प्रतिघात करते हैं। "गले की हड्डी" एक महिला की सूझबूझ को दर्शाती एक सुन्दर लघुकथा है। "महिला कमज़ोर नहीं" भी इसी सिलसिले की एक प्रभावोत्पादक लघुकथा है। "ममता की अस्मिता" एक ज़बरदस्त लघुकथा है, इस लघुकथा में एक माँ का बिलकुल ही अलग स्वरुप प्रस्तुत किता गया है। इस रचना में एक बहू द्वारा अपनी वयोवृद्ध विधवा सास को एक छोटे से कमरे में भेजने की साजिश की जाती है। किन्तु इस लघुकथा में सास चुपचाप नहीं सहती, बल्कि विरोध करती है। घर की मालिकन होने के नाते वह बहू बेटे को भी उस घर से निकल जाने की चेतावनी दे देती है। नारी के चरित्र का यह नारायणी वाला स्वरूप देख कर मैं गदगद हूँ !  

लघुकथा में दृश्य निर्माण कर देना भी एक हुनर माना जाता है। दुर्भाग्य से यह लघुकथा विधा का एक और उपेक्षित पक्ष है i किन्तु इस संग्रह की कुछेक लाघुकथायों में सुश्री कांता रॉय जी ने सफलतापूर्वक यह काम किया है। "सुनहरी शाम" इसका सुन्दर नमूना है, रचना एक कविता की मंद मंद गति से आगे बढती हुई पाठक को साथ बहा ले जाती है। "व्यथित संगम" और "घाट पर ठहराव कहाँ" भी इसी कड़ी की सशक्त रचनाएँ है, जिन्हें पढ़कर रूह को सुकून पहुँचता है।

 कालजयी उपन्यासिक पात्रों को लेकर लघुकथा कहना भी एक विलक्षणता माना जाता है, किन्तु इसके लिए एक लेखक को उन पात्रों को समझना और जीना पड़ता । इस संग्रह की पहली लघुकथा "पारो की विडंबना" इसका सुन्दर उदाहरण है ! इसमें 'देवदास" के पात्रों के इर्द गिर्द एक बेहद सुन्दर लघुकथा का निर्माण किया गया है !    

लघुकथा में "क्या कहना है", "क्यों कहना है" और "कैसे कहना है चर्चा पहले कर चुका हूँ I किन्तु इसमें एक और कड़ी इस लघुकथा संग्रह को पढने के दौरान जुडी है, वह है "कहाँ कहना है।" अर्थात, किसी भी रचना को प्रस्तुत करने का सर्वश्रेष्ठ स्थान कौनसा होना चाहिए I दरअसल, पुस्तक एक एतिहासिक दस्तावेज़ होता है, जो भविष्य में नए पुराने लोगों के लिए एक उद्धरण का काम किया करता है।  अत: यह नितांत आवश्यक हो जाता है कि किसी संग्रह के लिए रचनायों का चुनाव बेहद सावधानी और गंभीरता से किया जाये I यह आवश्यक नहीं कि किसी आयोजन या इकठ्ठ में प्रशंसित रचना किसी संग्रह में स्थान पाने योग्य ही हो। इस विषय में लेखिका कोताही का शिकार हुई हैं। इस संग्रह की कम से कम २० प्रतिशत रचनाएँ ऐसी हैं, जिन्हें इस संग्रह में नहीं होना चाहिए था। २-४ पंक्तियों में सिमटी कुछ रचनाएँ, कथनी-करनी के बेहद घिसे पिटे और उबाऊ विषय पर आधारित,  कोरी लफ्फाजी या साधारण सी किस्सा गोई वाली रचनायों से इस विषय का भला होने वाला नहीं है ! यह इनका पहला प्रयास है अत: मुझे पूरी आशा है कि सुश्री कांता रॉय जी भविष्य में इसके प्रति सुचेत रहेंगी! प्रथम संग्रह होने के नाते इसकी कई गलतियाँ क्षम्य हैं, किन्तु लेखिका को समझना होगा कि पाठकों और आलोचकों द्वारा ऐसी उदारता भविष्य में शायद उपलब्ध न हो I 
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Replies to This Discussion

बधाई आपको कांता जी आपको ,की आपकी पुस्तक को आदरणीय श्री योगराज प्रभाकर जैसे वरिष्ठ लघुकथाकार ने समीक्षा प्रदान की और सीढ़ी दर सीढ़ी का अनुभवी मार्गदर्शन किया जिससे भविष्य में पुनः वे गलतियां ना दोहराई जाय।पुनः हार्दिक बधाई आपको।
आदरणीय श्री योगराज प्रभाकर जी,आपके निस्वार्थ मार्गदर्शन की मै भी कायल हो गयी।कोई कहे या नाकहे इसमें आपके मार्गदर्शन का अतुलनीय योगदान हैं ।इससे अधिक आपके लिए मैं नहीं लिख पाऊँगी।आप यूँ ही लघुकथा के क्षेत्र में मील का पत्थर नहीं हैं बल्कि यह आपकी मेहनत का नतीजा ही हैं ।हार्दिक बधाई सर जी आपको ।सदैव आपका आशीर्वाद बना रहे यही कामना।
कांता जी आपकी पुस्तक की सुंदर समीक्षा आ.योगराज जी ने की सो आपको हार्दिक बधाई हो। आप इसी तरह लघकथाओ के लेखन में आगे बढ़ती रहे।शुभकामनाऐ।
आ.योगराज प्रभाकरजी आपकी यह सुंदर समीक्षा नवोदित लघुकथा रचनाकारों के मार्गदर्शन में 'मिल का पत्थर' साबित होगी। बहुत बहुत आभार।
आदरणीय योगराज सर नमन है आपकी द्रष्टि को जो कही गहरे में जाकर न केवल रचना की समीक्षा करती है वरण उस रचनाकार की समीक्षा मे भी कोई कसर नही छोड़ती। आदः कांता राय जी के लेखन के बारे मे समय समय पर की गयी आप की प्रतिक्रिया आज इस पुस्तक के रूप मे साक्षात प्रमाण बनकर सामने है और भविष्य में भी आपकी बाते सही सिद्ध होगीं ऐसा पूर्ण विश्वास है सादर बधाई रचना कार कांता जी को और आपको इस सुन्दर और निस्वार्थ सार्थक समीक्षा के लिये।

मेरे जैसे नवांकुर की पहली पुस्तक पर , आप जैसे वरिष्ठजन के हाथों इतनी सुंदर मार्गदर्शनयुक्त समीक्षा मेरे लिए अनमोल है ।
मै कमियों को दिल से स्वीकार करती हूँ और आगे के लेखन और प्रकाशन के लिए सदा सचेत रहने का प्रयास करूँगी ।
किसी भी नवांकुर की पहली पुस्तक की समीक्षा इतनी आसान कार्य नहीं होता है। लेकिन हमारे सर जी ने कब आसान रास्ता चुना है?
आपकी इस समीक्षा ने साबित किया है कि वरिष्ठजनों में अभिभावकीय भाव से ही नवांकुरों के लेखन को सम्बल और सही तराश मिलती है ।
मेरे जैसे नवांकुरों के लेखन के सम्बल है आप । आपने लघुकथा लेखन को एक विस्तार दिया है ,जो किसी की सोच से परे था ,आपने वो काम किया है । हजारों में लोग प्रेरित हुए है हिन्दी साहित्य की ओर लघुकथा-लेखन के माध्यम से । एक नई क्रांति का संचार हुआ है आपके द्वारा । ये हिन्दी साहित्य में पहले कभी इतने व्यापक पैमाने पर किसी भी विधा के लिए नहीं हुआ था । आपको हिन्दी साहित्य में इस प्रवाह के लिए , इस नव संचार के लिए सदा याद किया जायेगा ।
कितनी कृतज्ञ हूँ , मै बयान नहीं कर सकती हूँ इसे शब्दों में । ये मेरे जीवन का सबसे अनमोल और अनुपम उपहार है ।
बारम्बार नमन आपको सर जी ।

आदरणीय योगराज जी आप ने आ कान्ता रॉय जी की पुस्तक"घाट पर ठहराव कहाँ" की समीक्षा जिस बेबाकी और सूक्ष्मता से की है वह काबिलेतारीफ है . इस कई जितनी प्रशंसा की जाए उतनी ही कम है . बधाई आप दोनों को .

एक एक पंक्ति पढने और समझने  योग्य  है, दो-तीन बार पढने  के  बाद  भी लगता है अभी पूरा पढ़ नहीं पाया|


"घाट पर ठहराव कहाँ" जैसे लघुकथा  संग्रह की विभिन्न श्रेणियों की लघुकथाओं पर आदरणीय योगराज जी सर,  (मेरी राय में) आपकी प्रतिक्रिया  और समीक्षा वास्तव में केवल नवांकुरों के लिये ही नहीं वरन स्थापित लेखकों के लिये भी मार्गदर्शन हेतु मील का पत्थर हैं|

नमन आदरणीय सर !!

 हार्दिक बधाई आदरणीय कान्ता जी!आपकी पुस्तक "घाट पर ठहराव कहॉ"मैंने भी पढी!कुछ रचनायें बहुत सुन्दर हैं!हम लोग लगभग एक ही साथ इस क्षेत्र से "नया लेखन नये दस्तखत" के माध्यम से जुडे हैं!लेकिन कांता जी हम सबको पीछे छोड गयीं!इसका मुख्य श्रेय कांता जी की मेहनत,परिश्रम,लगन,अनुशासन और दूरदृष्टि को जाता है!इसके अलावा एक सक्षम मार्ग दर्शक का होना भी अनिवार्य है!और वह कार्य किया हमारे आदरणीय श्री योगराज प्रभाकर जी ने! मुझे आश्चर्य होता है कान्ता जी की दिनचर्या के बारे में सुनकर!एक गृहणी, एक व्यवसायी,एक लेखिका,एक समाजसेविका,कई सारे ग्रुपों की सक्रिय सदस्य,कई ग्रुप की एड्मिन भी हैं!कैसे कर लेती हैं इतना सब कुछ!विश्वास ही नहीं होता!मगर दोस्तो, सफ़लता के आकाश को वही लोग छू पाते हैं जिनकी नज़र केवल और केवल अपने उद्देश्य या टार्गेट पर होती है!रात दिन एक करना पडता है!भूख,प्यास ,नींद सब गंवानी होती है!"नया लेखन नये दस्तखत" के सभी सदस्यों की तरफ़ से मैं आदरणीय कान्ता जी को बधाई देता हूं!हम सभी को आदरणीय  कांता जी की उपल्ब्धि पर गर्व है!सभी सदस्यों की ओर से मैं उनको और भी उज्ज्वल भविष्य के लिये शुभ कामनायें देता हूं!हम सबकी आशा है कि आदरणीय कान्ता जी दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करें! साथ ही ग्रुप  और गुरु दौनों का नाम रौशन करें!

 हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज प्रभाकर जी, आपने प्रमाणित कर दिया कि आप लघुकथा और  लघुकथाकारों के लिये अपना सर्वस्व प्रदान करने को सदैव तत्पर रहते हो!आपकी निष्ठा, आपकी विद्वता,आपके आदर्श,आपकी सहयोगिता को कोटि  कोटि नमन!

जिंदगी निरन्तर गतिमान है। यहाँ ठहराव कहाँ मिलता है। जिंदगी एक से दूसरे दूसरे से तीसरे रूप बदलती रहती है। अवसान ही ठहराव दे सकता है। आदरणीया बधाई।

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