For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पुस्तक समीक्षा – ‘’सच का परचम’’ ( ग़ज़ल संग्रह – अभिनव अरुण ) - समीक्षक - ज़हीर कुरैशी - भोपाल

पुस्तक समीक्षा – ‘’सच का परचम’’ ( ग़ज़ल संग्रह – अभिनव अरुण )  - समीक्षक
- ज़हीर कुरैशी - भोपाल

      आज जबकि पुस्तक प्रकाशन एक व्यवसाय मात्र होकर रह गया है और महँगी होती पुस्तकें पाठकों से दूर होती जा रही हैं अंजुमन प्रकाशन , इलाहाबाद ने साहित्य सुलभ संस्करण के अंतर्गत मात्र बीस रुपये में ११२ पेज की पुस्तकों के प्रकाशन का स्तुत्य एवं स्वागत योग्य कार्य प्रारंभ किया है | इस योजना के अंतर्गत ही अभिनव अरुण के ग़ज़ल संग्रह ‘’ सच का परचम ‘’ का प्रकाशन किया गया है | ‘’सच का परचम’’ फहराने की ज़िद करने वाले ग़ज़लगो अभिनव अरुण निःसंदेह ग़ज़ल – संसार में एक विरल उम्मीद जगाते हैं | अभिनव अरुण की ग़ज़लें समकालीनता की शर्तें पूरी करती हैं और उन्हें हम मुक्त कंठ से समकालीन ग़ज़लें कह सकते हैं | अच्छी ग़ज़ल कहने के लिए ‘अरूज’ के स्तर पर जिस तरह की तैयारी होनी चाहिए वह अभिनव के पास है | अरूज के बाद कथ्य के स्तर पर हमारी वर्तमान जटिल ज़िन्दगी की पड़ताल बखूबी उनके शेर करते हैं | मानवीय रिश्ते उनकी शायरी का प्राण तत्व हैं | उनके शेरों के ‘ शेड्स ‘ बहुआयामी हैं | अगर उनके शेर वर्तमान राजनीति के गिरते स्तर पर कटाक्ष करते हैं  , तो हमारे घर आ घुसे बाज़ार पर भी उनकी नज़र है | वे आधुनिक टेक्नोलॉजी के प्रभाव को भी सलाहियत से अपने शेरो में समाहित करते हैं तो अंतर्राष्ट्रीयता के संकेत भी उनकी शायरी में मिलते हैं | 

      वे महत्वाकांक्षी पतंगों की आत्म – मुग्धता को जानते हैं और उनको धरती पर लाने की हिमायत करते हैं –

आसमां जाकर पतंगें भूल जाती हैं धरा ,
आपके हाथों में उनकी डोर होनी चाहिए |

      उन्हें पता है कि सबको अपने अपने युद्ध लड़ने ही पड़ते हैं अभिनव का एक शेर –

हालात सिखा देते हैं कुहराम मचाना ,
ख़ामोश मिज़ाजी से गुज़ारा नहीं होता |

        अभिनव अरुण की शायरी में फ़िक्र के जुगनू चमकते हैं | आज के मसाइल पर उनकी गहरी नज़र है और हालात को बदलने का जज़्बा उनके पास है | उनके अशआर में एक नयापन है ताज़गी है और इस दुनिया को और खूबसूरत बनाने का स्वप्न उनकी आँखें निरंतर देखती रहती हैं | अभिनव हमेशा आदमी बने रहना चाहते हैं, तभी तो कह पाते हैं –

कभी आरज़ू ये नहीं रही कि फरिश्तों सी हो ये ज़िन्दगी ,
बनूँ आदमी तो वो आदमी जो नज़र से अपनी गिरा न हो |

कुल मिलाकर ‘ सच का परचम ‘ ग़ज़ल संग्रह के बहाने अभिनव अरुण पहली ही नज़र में भा जाने वाले विरल ग़ज़लकार के रूप में रेखांकित किये जा सकते हैं |समीक्षित कृति – ‘’सच का परचम’’ ( ग़ज़ल संग्रह )
रचनाकार         –  अभिनव अरुण
प्रकाशक           –  अंजुमन प्रकाशन ,942 आर्य कन्या चौराहा ,
                             मुट्ठीगंज , इलाहाबाद -211003.
मूल्य                –   20 रुपए (साहित्य सुलभ संस्करण )


समीक्षक           –  ज़हीर कुरैशी ,
                            108 , त्रिलोचन टावर , संगम सिनेमा के  सामने ,
                             गुरुबक्श की तलैया ,स्टेशन रोड, भोपाल – 462001 ,

Views: 1010

Replies to This Discussion

भाई अरुणजी ,आप एक हस्ताक्षर बनकर उभरें और समय के गोरे गाल पर चमकते काले तील जैसी पहचान हो आपकी |अनेक लोग आपको इस पुस्तक के माध्यम से पढ़ें -जानें और आपके प्रस्तुति की अंतर से सराहना करें ,शुभकामनाएँ
आभार आदरणीय श्री विजय जी , ह्रदय से !!

अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद की साहित्य सुलभ योजना के अंतर्गत प्रकाशित और लोकार्पित पुस्तक ’सच का परचम’ के ग़ज़लकार आदरणीय अभिनव अरुणजी के लिए ग़ज़ल की नई शैली के पुरोधा आदरणीय ज़हीर क़ुरेशी द्वारा यह कहा जाना बहुत मायने रखता है - अच्छी ग़ज़ल कहने के लिए ‘अरूज’ के स्तर पर जिस तरह की तैयारी होनी चाहिए वह अभिनव के पास है. अरूज के बाद कथ्य के स्तर पर हमारी वर्तमान जटिल ज़िन्दगी की पड़ताल बखूबी उनके शेर करते हैं.

इस ग़ज़ल-संग्रह के लिए प्रबुद्ध ग़ज़लकार आदरणीय अभिनव अरुणजी को हार्दिक बधाई. आपसे हिन्दी साहित्य के पाठकवर्ग को बहुत आशाएँ हैं.
शुभ-शुभ

 आभा र आदरणीय श्री मैं और मेरी कलम सच्चाई और नेकी की राह पर मानवता सेवा में रत रहें यही प्रयत्न रहेगा।    

badhai sir ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service