For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-93

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 93 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब जोश मलीहाबादी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"दुनिया ये बदलने वाली है, किस चीज़ पे तू इतराता है "

221    1222    22   221   1222    22

मफ़ऊलु मफ़ाईलुन फेलुन मफ़ऊलु मफ़ाईलुन फेलुन 

(बह्र: हज़ज़ मुसद्दस अखरब महजूफ असलम मुदाएफ़ )

रदीफ़ :- है  
काफिया :- आता (इतराता, आता, जाता, घबराता, लहराता, शर्माता आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 23 मार्च दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 24 मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 23 मार्च दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 9755

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय निलेश जी, 

मेरे ख़याल से ग़ज़ल की बहर ठीक है. जोश साहब की ग़ज़ल 'मुतदारिक मुसम्मन मख़्बून मुस्सकिन मुज़ाइफ़' में है. और इस लिहाज़ से इस ग़ज़ल को देंखें तो बहर का कोई दोष इस में नहीं है.

जिन लोगों ने '221    1222    22   221   1222    22' के अरकान पर इसे निभाया है वो और अधिक दाद के हकदार है क्योंकि उन्होंने वो काम किया है जो आज तक कभी नहीं हुआ. इन अरकान को निभाने वाली ग़ज़ल उर्दू शायरी में आज तक मेरी नज़र से नहीं गुज़री. 

सादर  

यानी जिन्होंने स्टैण्डर्ड डिडक्शन न कटवाते हुए और 80c का लाभ न लेते हुए जबरन आयकर भर दिया वो छूट लेने वालों से अधिक देशभक्त हैं?

ग़ज़ब लॉजिक है साहब।।। 

सादर

जी नहीं इस लिए कि यह भी एक जायज़ बहर है लेकिन इसके मुज़इफ़(दोगुना) रूप में उर्दू में शेर नहीं मिलते .

इस की मूल बहर है  'हज़ज मुसद्दस अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़' जिसके अरकान हैं : मफ़ऊलु  मफ़ाईलु  फऊलुन(221 1221 122)

इन अरकान पर जब तख्नीक का अमल होता है तो सूरत ये हो जाती है : 

221  1221  122 =  221  1221+1  22  =  221 1222 22 = मफ़ऊलु  मफ़ाईलुन  फेेलुन    -    इन अरकान का नाम होगा  'हज़ज मुसद्दस अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़ मुखन्नक' यही वो बहर है जिसका मुज़इफ़(दोगुना ) रूप तरही के लिए दिया गया है :

मफ़ऊलु  मफ़ाईलुन  फेेलुन // मफ़ऊलु  मफ़ाईलुन  फेेलुन (221 1221 22 221 1221 22)

इसके मूल रूप का ज़िक्र मेरी बहरो की लिस्ट में भी है :

http://www.openbooksonline.com/group/kaksha/forum/topics/5170231:To...

इसलिए जिन्होंने इन अरकान पर लिखा है वो भी अरूज़ी तौर पर जायज़ है. 

सादर 

आ. अजय जी,
आप बहरों के लम्बे लम्बे नाम भी    लिखेंगे तो भी   यह रहेगी एक प्रकार की मात्रिक बहर ही..
फिर पढ़िए....
१) कोई भी ग़ज़ल मतले से प्रारंभ होती है.
२) मतले का ऊला मिसरा यह तय करता   है कि बहर के अरकान क्या होंगे और उसमें क्या छूट मिलेगी.
३) अगर ग़ज़ल के अन्य मिसरे मतले की  बहर में नहीं हों और कोई छूट भी न मिलती हो तो वो ख़ारिज माने जायेंगे.
अब लौटते हैं इसी    ग़ज़ल के मतले   पर ...और तक्तीअ कर के देखते हैं ...
.
अप ने में जो अब भूले से कभी राहत का तक़ाज़ा पाता है
  २   २ १   १   २   २ २  १ १ २    २ २   १  १  २  २  २ २  २ 
.
अब देखते हैं एक अन्य ग़ज़ल    के   मतले का ऊला मिसरा ..
.
कुछ दूर हमारे साथ चलो हम   अपनी   कहानी कह देंगे ..
 २    २ १ १ २ २  २ १ १  २  २       २  १   १  २  २  २    २ २ 
अब मात्रा फिर लिखते हैं ,,
.
अ)  २   २ १   १   २   २ २  १ १ २    २ २   १  १  २  २  २ २  २ 
ब)   २   २ १   १   २   २ २  १ १ २    २ २   १  १  २  २  २ २  २ 
---------------------------------------------------------------------------- में से घटाने पर जो बचा वो है .....
       ०   ० ०  ०    ०   ०  ० ०  ० ०    ० ०   ० ०  ०  ०  ०   ० ०     
अत: ये दोनों एक ही बहर के मिसरे हुए ...
अब इस बहर को आयोजन ४९ (लिंक संलग्न) में (बह्रे मुतदारिक की मुजाहिफ सूरत) कहा गया है जो १००% सही है .
http://www.openbooksonline.com/forum/topics/49?commentId=5170231%3A...

अत: आपसे निवेदन है कि मंच को और अधिक भ्रमित न करें...
सादर 
.

आदरणीय नीलेश जी खूबसूरत गज़ल के लिए मुबारकबाद स्वीकारें ... ज्ञानवर्धक परिचर्चा से यकीनन लाभ हुआ साथ में  पसीने भी छूटने  लगे हैं ......

शुक्रिया आ. नादिर खान साहब,
अगर   सभी लोग चर्चा में हिस्सा लेते तो मंच को और  भी बहुत कुछ हासिल होता ..
सादर 

चर्चा में शामिल होने के लिए विषय का ज्ञान भी आवश्यक है, जिसकी बहुत कमी महसूस कर रहा हूँ ... मंच का सबसे कमज़ोर विद्यार्थी मै ही हूँ  आदरणीय ....

इसी लिये ओपेन बुक्स आन लाइन एक सार्थक मंच है जिस पर बहूत कुछ सीखा जाता है। आज की परिचर्चा से मेरा भी ज्ञान वर्धन हुआ । मैं आदर्णीय समर कबीर साहब आदर्णीय अजय तिवारी जी आ० नीलेश जी व अन्य सभी को धन्यवाद देता हूँ ।

आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन। बहुत बढ़िया ग़ज़ल के माध्यम से आपने कार्यक्रम की शुरुआत की। हरेक शैर बेहतरीन। और इन सबसे बेहतरीन इस ग़ज़ल के हवाले से हुई चर्चा। उससे हम नए लोगों को सीखने को बहुत कुछ है।बहुत बहुत बधाई आपको ग़ज़ल कहने और चर्चा को सार्थक बनाने के लिए।

शुक्रिया आ. सुरेन्द्रनाथ जी,
 

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन । सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई । बहरहाल गजल के साथ साथ रोचक बहस से आनंद कई गुना बढ़ गया । सभी गुणी जनों का आभार ।

धन्यवाद आ. भाई लक्ष्मण जी 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
8 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
13 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service