For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-91 (विषय: कालचक्र)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-91 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय है 'कालचक्र', तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
:  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-91
"विषय: कालचक्र''
अवधि : 30-10-2022 से 31-10-2022 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

Views: 988

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

स्वागतम

तोताराम की आत्मकथा

मैं तोताराम,एक तोता परिवार से हूँ। मेरे होश संभालने के वक्त मेरा देश फिरंगियों के अधीन था।सुनने में आया कि पराधीनता के  पहले वहाँ सोने-चाँदी, हीरे-जवाहरात प्रचुर मात्रा में थे। वह सोने की चिड़िया कहा जाता था। आततायियों के द्वारा वह सम्पदा सैकड़ों वर्षों तक लूटी गई।

फिर आजादी के लिए जनता में सुगबुगाहट शुरू हुई। जननी की बेड़ियों को काट डालने की कसमें ली गईं। जान न्योछावर करने का पन लिए आजादी के दीवाने जत्थों में निकलते। देशभक्ति के गाने गाते। मैं भी उन जत्थों में शामिल होता। मेरा स्वर मधुर था। इसलिये मुझे जत्थे में आगे-आगे गाने को कहा जाता। मैं गाता। इस तरह मैं देशभक्ति के गीतों के लिए मशहूर हुआ। गोरे सत्ताधारियों की नजर में चढ़ा। गिरफ्तार हुआ।

लंबे अरसे तक मैंने कैद की यातना सही। वहाँ और भी कैदी थे।मैं वहाँ भी देशभक्ति वाले गाने गाता। पिटता। भूखों रहना पड़ता। फिर मुझपर सत्ता-पक्ष के गुणगान के गीत गाने के लिए दबाव पड़े। मैं नहीं माना। बदले में यतनाएं बढ़ा दी गईं।पंखे नुचे। गले में सूइयाँ चुभोई गईं। मुझे एक-एक बूँद पानी के लिए तरसना पड़ा। बहुतों को फाँसी दी गई। मुझे जिंदा रखा गया कि शायद कभी उनके पक्ष में गाऊँ।  

फिर समय ने पलटा खाया। वतन आजाद हुआ। सारे स्वाधीनता सेनानी रिहा हुए। मैं भी हुआ। अब आजादी के गीत और जोर पकड़ने लगे। मैं फिर गाने लगा। मुझे प्रसिद्धि मिली।मैं फिर पकड़ लिया गया। अबकी बार मुझे देशभक्ति के गाने गाने के इनामस्वरूप पकड़ा गया। सजे-सजाये पिंजड़े रखा गया हूँ। अच्छा खाना मिलता है। भलीभाँति देखभाल होती है। बस उड़ने की छूट नहीं है। वैसे देश आजाद है। मैं भी आजाद हूँ।

कौवे तब भी थे। अब भी हैं। पर, वे कभी कैद नहीं हुए। गुलामी के दौर में कांव कांव करते, तो आजादी के इच्छुक दीवानों की मंडली समझती कि वे उनकी हाँ में हाँ मिला रहे हैं। उनके साथ हैं। और जब गोरों की पुलिस स्वतंत्रता सेनानियों को मारती-पीटती, यातना देती; तो इनका कांव कांव उनके समर्थन में समझ लिया जाता। और ये काले कौवे खुले घूमते रहे। आज भी घूमते हैं। मैं तब भी कैद था। अब भी हूँ।सब समय-समय की बातें हैं।”

'मौलिक एवं अप्रकाशित

 

हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। आपने आज के लघुकथा कार्यक्रम का आग़ाज़ बहुत सुन्दर लघुकथा से किया।प्रतीकों के माध्यम से काल चक्र को बेहतरीन शब्दों से वर्णित किया है।

आदरणीय तेजवीर सिंह जी,आपका आभार।लघुकथा आपको पसंद आई,यह मेरे लिए हर्ष का विषय है।

बहुत ही शानदार लघुकथा से गोष्ठी का आग़ाज़ किया है आपने आदरणीय मनन जी। रचना प्रदत्त विषय से पूर्णतः न्याय कर रही है। शीर्षक भी आकर्षक है। प्रतीकात्मक शैली में लिखी गई इस उम्दा प्रतिरोधात्मक लघुकथा हेतु दिल से ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए।
1. पन = प्रण, यतनाएँ = यातनाएँ, पंखे = पंख
2. पिंजड़े रखा = पिंजड़े में रखा
3. //सब समय-समय की बातें हैं।// इस पंक्ति को हटा देना बेहतर होगा क्योंकि लघुकथा में यह बात स्वयं उभर कर सामने आ रही है।

आपका हार्दिक आभार आदरणीय महेंद्र जी।सलाह हेतु शुक्रिया।वैसे 'पन' "प्रण" के लिए इस्तेमाल में है।

आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। प्रतीकात्मक शैली में उत्तम लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।

आपका आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई।

गुरू दक्षिणा - - लघुकथा - 

हमारे मोहल्ले का नाम "सदभावना बस्ती"  है। पता नहीं किसने और क्या सोच कर रखा  था ।पर लगभग सही और सटीक  बैठता है।सातों जाति के लोग हैं  लेकिन कोई भेदभाव नहीं है। 

अभी तक हर त्योहार सभी मिलजुल कर बड़े उत्साह से मनाते थे।पूरे मोहल्ले में राग द्वेष तथा ऊँच नीच  नाम की कोई चीज ही नहीं थी। 

लेकिन वक्त कभी एक जैसा नहीं रहता। हमारे मोहल्ले को भी किसी की बुरी नज़र लग गयी। 

दो साल पहले दिल्ली में भड़के दंगे की आँच की तपिश हमारे मोहल्ले तक भी पहुँच गई। जो लोग भी इस कांड में शामिल थे सब बाहरी थे। 

अप्रत्यक्ष रूप से कोई मुहल्ले का निवासी इसमें शामिल हो तो कह नहीं सकते। 

मोहल्ले में केवल तीन परिवार ही दूसरे धर्म के रह रहे थे। सब अपने काम से काम रखते थे। मगर दंगे की चपेट में दो परिवार तो लगभग चौपट और बर्बाद ही हो गये। ये दोनों ही परिवार काफ़ी संपन्न  थे ।दंगाईयों ने उनके घर जला दिये। उनके मर्दों को पुलिस उठा ले गई। बाकी सदस्य कहाँ चले गये आज तक पता नहीं चला। जाँच के नाम पर भी सिर्फ़ लीपा पोती होकर रह गयी। दोनों जले हुए घर आज तक वैसे ही पड़े हैं। देखने पर साफ़ लगता था कि यह किसी साज़िश  का हिस्सा था।जाँच में  आज तक कुछ खुलासा नहीं हो पाया।

जो तीसरा घर है, वह एक स्कूल मास्टर असगर अली साहब का है । वह परिवार भी पिछले दो साल से सदमे में ही है। उन लोगों को भी पुलिस बुलाती रहती है। वे लोग भी मोहल्ले से कट से गये हैं । हँसते खेलते मोहल्ले में एक अदृश्य दीवार सी खड़ी हो गई है। हर कोई दहशत में है। शक का वातावरण बन चुका है।

असगर अली साहब गणित के अध्यापक थे।मैं भी उनका शिष्य था। उनके घर शाम को ट्यूशन भी लेता था। उनकी बेटी भी मेरी क्लास में ही थी। अतः वह भी ट्यूशन के समय पढ़ने बैठ जाती थी। 

इसी दरम्यान कॉपी किताब का आदान प्रदान शुरू हो गया।पता ही नहीं चला कि कब इन कॉपी किताबों में खत भी आने जाने लगे। लेकिन यह सिलसिला अधिक नहीं चल पाया क्योंकि असगर अली साहब की पारखी नज़रें यह माजरा ताड़ गईं। और इस सब पर पाबंदी लग गई। साथ ही मेरा ट्यूशन भी बंद हो गया। लेकिन जितना पढ़ा था उसके सहारे परीक्षा पास कर ली। अफ़सोस की बात ये थी कि असगर अली साहब ने बेटी की पढ़ाई बंद करा दी। मुहल्ले में यह राज खुल गया और बहुत दिन तक चर्चा भी चली। 

दंगे के दौरान दंगाई असगर अली साहब के घर को भी निशाना बनाना चाहते थे। जब वे लोग उनके घर को जलाने के लिये बढ़े तो पूरे मुहल्ले में मैं ही था जो सबसे आगे असगर अली साहब की चौखट पर सीना ताने खड़ा था।सब दंगाई  लोग वापस चले गये। असग़र अली साहब का घर बच गया।

आज मुहल्ले का माहौल कुछ बदला सा लग रहा था। कुछ अजीब सी हलचल थी। और दिन के अपेक्षा चौक में चहल पहल भी अधिक थी।लोग कानाफूसी कर रहे थे। कारण जानने की उत्सुकता मुझे बाहर खींच लाई। कारण जान कर मेरे चेहरे पर एक मुस्कान तैर गई। 

पता चला कि असगर अली साहब की बेटी आज से फिर कालेज जाने लगी है। 

 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

साम्प्रदायिकता आज की ज्वलन्त समस्याओं में से एक है। इसको आधार बनाकर प्रदत्त विषय पर बढ़िया लघुकथा कही है आपने आदरणीय तेजवीर सिंह जी। इस हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। यह सच है कि समय धीरे ही सही बड़े-बड़े घावों को भर देता है।

हार्दिक आभार आदरणीय महेन्द्र कुमार जी।

कल,आज और कल को समेटती लघुकथा अच्छी बन पड़ी है, आदरणीय तेजवीर जी।बधाई लीजिए। हां,कुछ टंकण जनित त्रुटियां हैं,जो परिमार्जित हो जाएंगी।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
6 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
18 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
21 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
33 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
45 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
49 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
4 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service