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बहुत बढ़िया प्रतिक्रिया आदरणीय ओमप्रकाश जी
वाह, कानुनो का दुरुप्योग का उप्योग सुन्दर कथा
"हुंह !! साले प्यादे कहीं के...." इस पंक्ति में केवल किसना ही नहीं देश के कितने ही लोग समाये हुए हैं आदरणीय बड़े भ्राता बहुत सारे मुंह में राम बगल में छुरी सरीखे लोगों की पोल खोल रही है यह रचना| नमन आपको अग्रज|
व्यवस्था पर सीधा कटाक्ष करती हैं आपकी लघु कथा आदरणीय रवि प्रभाकर जी, कमजोर वर्ग के लिए सरकारी नीतियां इसलिए ही कारगर नहीं होती है! सादर बधाई स्वीकारे
नेता जी और ठाकुर जी की बिछाई बिसात में फंसते भोले भाले ग्रामीण ..यही तो अक्सर होता है चुनाव को लेकर अच्छे मुद्दे पर लिखी लघु कथा प्रदत्त विषय शतरंज को सार्थक करती हुई |हार्दिक बधाई आपको आ० रवि प्रभाकर जी |
जिस कुटिलता से ठाकुर साहिब ने अपने मोहरे चले, उसी कुशलता से आपने उसकी चालों को उजागर किया. दरअसल ठाकुर, किसना, चुनाव और पंचायत आदि सब रूपक हैं जिनका कैनवास बहुत विशाल है. कथानक अच्छा है. प्रस्तुति का ढंग परिपक्व है और लघुकथा के अंत में ठाकुर की हिकारत अनूठी है. कुल मिलाकर एक उत्कृष्ट लघुकथा हुई है, ऐसी रचना से आयोजन के शुभारम्भ हेतु मेरी हार्दिक बधाई और प्रशस्तिवाद स्वीकार करें भाई रवि प्रभाकर जी.
प्रदत्त विषय पर एक सार्थक लघु कथा कही है आपने ,हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय रवि प्रभाकर जी
शानदार शुरुआत सर .शायद बिना शतरंज कोई राजनीति मे सफल नही हो सकता.
bde lakshy ko sadhne ke liye pyadon ka istemal...wah bahut khoob aadrniy ravi prbhakar ji..hardik bdhai ji
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