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हे भगवान ! ऐसी ही विसंगतियाँ और मानसिक क्लिष्टताएँ लघुकथाओं के होने का शायद प्रमुख कारण हो जाया करते हैं ..
आदरणीया बबिताजी हार्दिक शुभकामनाएँ
पुस्तकालय की शतरंज
“आज अभी तक कोई भी नहीं आया ताज़ी हवा भी नहीं मिली न जाने कैसा होगा आज का दिन” शारदा बोली | इति ,अक्षरा,गीता,गणिता,ज्यामिति, नीती एक स्वर में बोली “हाँ पता नहीं आज की बिसात में कौन जीतता है आज कौन किसको मात देगा” कामिनी की तरफ कुटिल मुस्कराहट बिखेरते हुए बोली|
“ठीक है आ जाओ मैदान में मुझे तुम क्या मात दोगी तुम्हें पूछता ही कौन है तुम सब तो जलना ही जानती हो जब भी कोई युवा या वृद्ध पाठक मुझे पढता है खुश होता है मैं देखती हूँ कितना धुआँ उठता है तुम सबके भीतर से” श्रृंगार से चिढती हो पर इस के बिना तुम्हारा अस्तित्व है ही क्या”? कामिनी ने उचकते हुए कहा |
“धुआँ नहीं उठता तरस आता है तुम्हारी सोच पर हमारे ज्ञान से ही रोजी रोटी मिलती है इंसान को तुमसे नहीं हमारे ज्ञान के बिना इंसान क्या है? वैसे सोचो तुम्हारे थोबड़े पर इत्ते बड़े आदमी का नाम न जडा होता तो तुम आज कहाँ होती तुम्हे कौन पूछता” शारदा ने अपना कंधा उससे अलग करते हुए ताव में आकर कहा|
“चलो अब छोड़ो कोई ताला खोल रहा है लड़ना बंद करो’ नीति ने समझाते हुए कहा|
लाइब्रेरियन के दरवाजा खोलते ही एक वृद्ध जल्दी से शेल्फ की तरफ भागा कामिनी शारदा की तरफ आँख मारते हुए उसके हाथों में कूद पडी शारदा का एक मोहरा लुढ़क गया और गणिता ने हिसाब में शून्य लिख दिया|
“ये तो हद हो गई शारदा, ये अध्यापक है न? ये भी... ऐसे कैसे जीत होगी हमारी?” गीता बोली |
“तू चिंता मत कर जीत हमारी होगी दुनिया हम से ही चल रही है” शारदा ने कहा |
शाम तक बाजी चलती रही लाइब्रेरी बंद हो गई गीता गुमसुम संध्या पूजन में लग गई ज्यामिति मुँह लटकाकर जमीन पर आडी तिरछी लकीरें खींचने लगी| कामिनी फूली नहीं समा रही थी उसे देख कर शारदा के तन बदन में आग लग रही थी वो बुरी तरह गुस्से में फड़फड़ा रही थी पंखा बंद करना भूल गए थे शायद टीचर जी|
“आज का दिन हमारे नाम होगा शारदा! अखबार में खबर पढ़ी? सामाजिक सरोकार पर निबंध प्रतियोगिता है देखते हैं कौन आज इस कमीनी की तरफ देखता है” अक्षरा ने कहा| उन सबके ठहाके से शेल्फ भी हिल गई| एक चूहा भी खीं खीं करते हुए बाहर की तरफ भागा|
लाइब्रेरी खुलते ही बच्चों की भीड़ में आज वही वृद्ध अपने बच्चे को लेकर दाखिल हुआ| बच्चे ने चारों तरफ नजर घुमाते हुए शेल्फ के उस कौने में जाकर देखा कामिनी आँखों में अनोखी चमक लिए हुए उसके हाथों में कूदने को आतुर बैठी थी जैसे ही बच्चे ने उसे छुआ कि वृद्ध ने बच्चे के गाल पर चपत जमाते हुए उसके हाथों से कामिनी को छीन कर लाइब्रेरियन की तरफ गुस्से से फेंकते हुए कहा “ ऐसी पुस्तक यहाँ किसने रखी है फेंको इसे बाहर बच्चों पे क्या असर पड़ेगा”?
शारदा कामिनी के राजा को शहमात में ढेर कर गर्वित मुस्कान के साथ बच्चे के हाथ में चली गई| इतने में एक साहित्यकार ने प्रवेश किया गिरी हुई कामिनी को उठाकर पोंछ कर, “हर पुस्तक बहुमूल्य होती है संभाल कर रखा करो” लाइब्रेरियन को हिदायत देते हुए शेल्फ में पुनः रख दिया|
कामिनी का राजा अगली बिसात के लिए पुनर्जीवित हो उठा|
मौलिक एवं अप्रकाशित
आ० उस्मानी जी ,आपको ये लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया आपका दिल से बहुत- बहुत आभार |
अद्भुत लघुकथा दीदी. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. लघुकथा पर पुनः आता हूँ. सादर
आदरणीया राजेश दीदी, प्रदत्त विषय पर इतना शानदार कथानक बुना है आपने और जिस सधे ढंग से प्रतीकात्मकता से शाब्दिक किया है, देखकर मुग्ध हूँ. बहुत ही अद्भुत रचना हुई है दीदी. इस प्रस्तुति को पढ़कर दिल खुश हो गया. कालजयी रचनाओं की श्रेणी में है यह प्रस्तुति. और क्या कहूं. मुझ नव अभ्यासी के लिए पाठशाला है यह रचना. नमन है आपको.
मिथिलेश भैया ,आपकी प्रतिक्रिया ने मेरा उत्साह कई गुना बढ़ा दिया है अभिभूत हूँ मेरा लेखन सफल हुआ आपका दिल से बारम्बार आभार |
दीदी आपके अनुमोदन से आश्वस्त हुआ. आभार.
प्रतीकों के माध्यम से पुस्तकालय की शतरंज वास्तव में अद्भुत है| विषय को सार्थक करती इस रचना हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीया राजेश कुमारी जी|
आ० चंद्रेश कुमार जी , आपको लघु कथा पसंद आई आपका दिल से बहुत बहुत आभार |
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