For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।
 
पिछले 73 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-74

विषय - "कतार"

आयोजन की अवधि- 09 दिसम्बर 2016, दिन शुक्रवार से 10 दिसम्बर 2016, दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान मात्र दो ही प्रविष्टियाँ दे सकेंगे. 
  • रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  • सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.


आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 09 दिसम्बर 2016, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर 
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 12888

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

हा हा हा ..... शानदार 

"चले हैं कैशलेस होने !"------ खूब मुंह बना के और हाथ मटका के बोला गया है!

:-)))

आपने ध्यान दिया होगा कि प्रस्तुत हुआ दोहा सहज और सामान्य-सा ही है, जो एक परिस्थिति विशेष को आम भाव के साथ शाब्दिक कर रहा है. लेकिन ये ज़ोर उसकी दुम का है, जिसके कारण  एक सामान्य दोहा भी विशिष्ट प्रतीत हो रहा है.

अरे हाँ.... एक दुम से एक साधारण दोहा भी विशिष्ट बन गया.....आपने दुमदार दोहे को सोदाहरण स्पष्ट कर दिया. इस साझा के लिए हार्दिक आभार आपका. 

यही दुमदार दोहों का कुल ज़मा है !
:-))

आदरणीय मिथिलेश जी,
वाह क्या कहने आपके ब्यङ्ग्यपूर्ण रचना के बारे में. इन पंक्तियों में आपने सीए और सिए का गज़ब उपयोग किया है.

सीए बोला- “सेठजी, क्यों करते हैं पाप

सीए भी कब तक सिये, ये बतलायें आप?”

आदरणीय ब्रजेन्द्र नाथ जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 

इसी प्रतिक्रिया के ऊपर आदरणीय सौरभ सर का एक शानदार दुमदार दोहा पढने से वंचित न रह जाइएगा. सादर 

उगती हुई कतारें

उगायी जा रही हैं कतारें
झरनों, पहाड़ों, झीलों
और जंगलों के बीच
शुष्क, बंजर, पथरीली
निर्मम और अँधेरी
दिखाये जा रहे हैं ख़्वाब
पगडंडियों से चल कर
आने वाली रौशनी के
जो लायेगी जीवन में
ख़ुशियों की बहार
जगायी जा रही है उम्मीद
आने वाले बेहतर कल की
जिसमें नहीं होगी कोई कमी
रोटी, कपड़े, मकान की
जिसमें मिलेगा सभी को
समान अवसर
पढ़ने, लिखने, खेलने का
होगी पूरी इच्छा
स्वस्थ और सुखी जीवन की
होगा नया निर्माण
एक चमकते देश का
जिसमें नहीं होगी जगह
किसी भ्रष्टाचार की
बस, आपको करना है तो इतना
कि इन लम्बी-लम्बी कतारों में
लग जाना है चुपचाप
बिना कोई आवाज़ किये
और कोई प्रश्न
सीमा पर खड़े
उन सैनिकों की भांति
स्कूल में पढ़ने वाले
इन बच्चों की तरह।
ये कतारें हर रूप
और रंग की हैं
विविधता से परिपूर्ण
ठीक वैसी ही
जैसी इन्हें उगाने वाला
चाहता है
अपनी ज़रूरत के अनुसार।
भूख़े, बीमारों, लाचारों
अशक्तों, निहत्थों
और मजदूरों की ये कतारें
सदियों से इसी तरह
हर मौसम, हर देश में
उगायी जा रही हैं
हर उस जगह पर
जहाँ की मिट्टी से
विकास की संभावनाओं भरी
भीनी-भीनी ख़ुशबू आती है
पर...
कौन उगाता है इन कतारों को?
कौन करता है इनकी खेती?
ये कतारें उगाने वाला आख़िर
कतारों में नज़र क्यों नहीं आता?
कहीं वह देवता तो नहीं?
तुम्हारे ही हाथों बनाया हुआ?
कहाँ जाती हैं ये
नीरस और बोझिल कतारें
मंज़िल से पहले
उन सभी को छोड़
इस्तेमाल के बाद
जो अपना सब कुछ त्याग
लगे रहे बरसों तक
इन्हीं कतारों में
तपस्या करते हुए?
क्यों लगती है इन कतारों में
दबे और कुचले
अनुशासितों की ही भीड़
जो बन चुका है मशीन
आधे से भी ज़्यादा
कतार में खड़े-खड़े?
कतारों में जान गंवाने वाले ये लोग
जो हो गए हैं शहीद
बिना किसी मुकम्मल शोर के
क्या पहुँच गए हैं स्वर्ग
बकरे की तरह यज्ञ में बलि देकर?
याद रखना...
अफ़ीम के जैसी ये कतारें
तब तक उगायी जाएँगी
जब तक बन्द नहीं कर दोगे तुम
अपनी आँखों से देखना झूठा ख़्वाब
और उनमें पलती खोखली उम्मीद!

(मौलिक व अप्रकाशित)

मुहतरम जनाब  महेंद्र कुमार   साहिब   ,  प्रदत्त विषय को परिभाषित करती  सुन्दर रचना   के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं   ---

आपका हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक़ अहमद खान जी। सादर।

आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, आपने बहुत ही प्रभावशाली कविता लिखी है. हर बात के कई पहलू होते है जिन्हें अनदेखा करते हुए केवल मुग्ध ही नहीं रहा जा सकता. कतारें बनती रहती है बस कतारें पैदा करने वाले बदलते रहते है. समसामयिक घटनाक्रम के महत्वपूर्ण पहलूओं का निर्वचन करती इस वैचारिक प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर  

आदरणीय मिथिलेश सर, आपकी विस्तृत टिप्पणी और सराहना का हृदय से आभारी हूँ। कविता आपको पसंद आयी, आपका बहुत-बहुत आभार। सादर धन्यवाद।

एक रचना में कितने सारे पहलू समो लिए भाई महेंद्र कुमार जी, आपके चिंतन का अनुपम उदाहरण है ये रचना जिस हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारेंI  

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"शुक्रिया आ. रवि सर "
33 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. रवि शुक्ला जी. //हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा मे ंअहसास को मूर्त रूप से…"
47 minutes ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"वाह वाह आदरणीय नीलेश जी पहली ही गेंद सीमारेखा के पार करने पर बल्लेबाज को शाबाशी मिलती है मतले से…"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई ग़ज़ल की उम्दा पेशकश के लिये आपको मुबारक बाद  पेश करता हूँ । ग़ज़ल पर आाई…"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय अमीरूद्दीन जी उम्दा ग़ज़ल आपने पेश की है शेर दर शेर मुबारक बाद कुबूल करे । हालांकि आस्तीन…"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय बृजेश जी ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिये बधाई स्वीकार करें ! मुझे रदीफ का रब्त इस ग़ज़ल मे…"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"वाह वाह आदरणीय  नीलेश जी उम्दा अशआर कहें मुबारक बाद कुबूल करें । हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा…"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय  गिरिराज भाई जी आपकी ग़ज़ल का ये शेर मुझे खास पसंद आया बधाई  तुम रहे कुछ ठीक, कुछ…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. गिरिराज जी मैं आपकी ग़ज़ल के कई शेर समझ नहीं पा रहा हूँ.. ये समंदर ठीक है, खारा सही ताल नदिया…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अजय जी "
3 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"बहुत बेहतरीन ग़ज़ल। एक के बाद एक कामयाब शेर। बहुत आनंद आया पढ़कर। मतले ने समां बांध दिया जिसे आपके हर…"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब जब मलाई लिख दिया गया है यानी किसी प्रोसेस से अलगाव तो हुआ ही है न..दूध…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service