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'चित्र से काव्य तक' प्रतियोगिता अंक -१   

नमस्कार साथियो !

चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक-१७ में आप सभी का हार्दिक स्वागत है |

इस प्रतियोगिता हेतु  इस बार कुछ ऐसा चित्र प्रस्तुत किया जा रहा है जिसका अंदाज़ पिछले सभी चित्रों से एकदम हटकर है, यह चित्र आदरणीय प्रधान सम्पादक श्री योगराज प्रभाकर जी द्वारा मेरे पास प्रेषित किया गया है;  अब आप सभी को इसका मर्म चित्रित करना है !

नफरत का उठता धुँआ, मुट्ठी में अंगार.

सीचें इसको प्यार से, शीतल हो संसार. 

तो आइये, उठा लें अपनी-अपनी लेखनी, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण, और हाँ.. आपको पुनः स्मरण करा दें कि ओ बी ओ प्रबंधन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि यह प्रतियोगिता सिर्फ भारतीय छंदों पर ही आधारित होगी, कृपया इस प्रतियोगिता में दी गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों से पूर्व सम्बंधित छंद के नाम व प्रकार का उल्लेख अवश्य करें | ऐसा न होने की दशा में वह प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार की जा सकती है | 

प्रतियोगिता के तीनों विजेताओं हेतु नकद पुरस्कार व प्रमाण पत्र  की भी व्यवस्था की गयी है जिसका विवरण निम्नलिखित है :-

"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता हेतु कुल तीन पुरस्कार 
प्रथम पुरस्कार रूपये १००१
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali
A leading software development Company 

 

द्वितीय पुरस्कार रुपये ५०१
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali

A leading software development Company

 

तृतीय पुरस्कार रुपये २५१
प्रायोजक :-Rahul Computers, Patiala

A leading publishing House

नोट :-

(1) १७ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १८  से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट हेतु खुला रहेगा |

(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत है, अपनी रचना को "प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करें | 

सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना मात्र भारतीय छंदों की किसी भी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक कृतियां ही स्वीकार किये जायेगें | 

विशेष :-यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें|  

अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-१७ , दिनांक १८ अगस्त  से २० अगस्त  की मध्य रात्रि १२ बजे तक तीन दिनों तक चलेगी, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन पोस्ट ही दी जा सकेंगी साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |

मंच संचालक: अम्बरीष श्रीवास्तव

 

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Replies to This Discussion

दिनेश जी अति सुंदर कुंडलिया ,बधाई 

अति सुंदर कुंडलिया ,हार्दिक बधाई रविकर जी

खुजलाये कर-चर्म, कर्म की है बीमारी ।

वाह वाह , रविकर जी, बेहतरीन सन्देश , बहुत ही सुन्दर रचना, बधाई स्वीकार हो |

बहुत सुंदर कुंडलिया है दिनेश जी, बधाई स्वीकारें

वाह! वाह! क्या बात है आदरणीय रविकर जी... अलग ही रंग, अलग ही अंदाज में बड़ी मारक कुण्डलिया प्रस्तुत किया है आपने... वाह! सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय.

वाह वाह वाह, आपने बिलकुल विलक्षण अंदाज़ में चित्र को परिभाषित किया है आद रविकर जी, बधाई स्वीकारें.

भाई दिनेश रविकरजी, वाह वाह वाह ! नयी सोच, नयी कहन. 

हार्दिक बधाई .. ..

                छप्पय

(१) बहुत हुआ रे अधम, छोड़ ये अपना खेला,
हिये दबी है आग, भड़कने की है बेला |
फैल रही है गंध, हवा में कह के जैसे,
निश्चित तेरा अंत, कहीं तू भागे भय से ||
गरज गगन को गुँजित करते, चले वीर विकराल हैं |
भय-पाप के शमन के लिए, हम बने महाकाल हैं ||
 
(२) रोक सके अब कौन, क्रोध के जलते शोले,
हर दिल है बेचैन, खड़ा कब दागे गोले |
नहीं बचा जो सहन, करे अब इसकी ज्वाला,
माथे चढ़ के बोल, रही है मानो हाला ||
शस्त्रों से सजधज के चली, ये सेना संग्राम को |
ले के प्रण मिटाने जड़ से, दानवता के नाम को ||

प्रिय कुमार गौरव जी,  सुन्दर छप्पय छंद रचने के लिए बहुत-बहुत बधाई मित्र .......

छप्पय से सम्बंधित रोले तो ठीक हैं परन्तु  उल्लाला पर कृपया एक दृष्टि डाल लें .....

//गरज गगन को गुँजित करते, चले वीर विकराल हैं |

भय-पाप के शमन के लिए, हम बने महाकाल हैं ||//

मिल गरज गगन गुँजित करें , चले वीर विकराल हैं |

प्रभु शमन पाप औ भय करें, कालों के हम काल हैं

//शस्त्रों से सजधज के चली, ये सेना संग्राम को |

ले के प्रण मिटाने जड़ से, दानवता के नाम को ||//

सब शस्त्रों से सजधज चली, ये सेना संग्राम को |

मिल करें प्रतिज्ञा नष्ट कर, दानवता के नाम को ||    सस्नेह

आदरणीय अग्रज अम्बरीश जी.....आपका हार्दिक आभार........आपके सुझावों का सहर्ष स्वागत है.........अग्रज का तो दायित्व ही अनुज को निरंतर मार्गदर्शन देते हुए निखारना है......थोड़ी जानकारी उल्लाला के बारे में ये चाहिए थी की उसके पहले और तीसरे चरण जो की पंद्रह मात्राओं का होता है, उसमें तेरहवीं मात्रा का लघु होना तथा  दूसरे और चौथे चरण में ग्यारहवीं मात्रा का लघु होना क्या अनिवार्य नहीं है? 

प्रिय अनुज  कुमार गौरव जी ! आप संभवतः विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी द्वारा भारतीय छंद विधान में पोस्ट की गयी  उल्लाला और रोला  की परिभाषा पढ़कर ऐसा प्रश्न कर रहे हैं | भाई जी ! मेरे विचार में ये सारे बंधन छंदों में सटीक गेयता लाने के लिए ही होते हैं..... फिर भी  जितने सारे बंधन होंगें छंद उतना ही बेहतर होगा !

उल्लाला छंद के अनेक प्रकार होते हैं ! आमतौर पर इसमें लघु गुरु के लिए कोई विशेष नियम नहीं होता पर छंद प्रभाकर के जगन्नाथ प्रसाद भानु के अनुसार १३-१३ व १३-१५ मात्राओं वाले उल्लाला में ११ वीं मात्रा लघु होती है ! १५-१३ मात्राओं वाले उल्लाला या 'चंद्रमणि' के लिए ऐसा कोई प्रामाणिक नियम मुझे नहीं मिल सका है  ! सस्नेह

आदरणीय अम्बरीष जी,  यहाँ इस बात को भी साझा कर लेना श्रेयस्कर होता कि अनुज विंध्येश्वरीजी द्वारा लिखा रोला छंद पर उक्त असहज पोस्ट हटा लिया गया है.

सादर

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