For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-134

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 134वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा जनाब अज़हर इनायती साहब की गजल से लिया गया है|

"मुझे वो दे गया इक ख़्वाब देखने के लिए"

   1212        1122         1212               112

 मुफ़ाइलुन      फ़इलातुन           मुफ़ाइलुन             फ़इलुन/फेलुन

 बह्र:  मुज्‍तस मुसम्मन् मख्बून मक्सूर

रदीफ़ :-  देखने के लिए
काफिया :- आब( ख़्वाब, महताब, शादाब, सैलाब,  आब, ताब, तेज़ाब, असबाब, बेताब, आदाब, सुर्खाब, अहबाब आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 अगस्त दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 28 अगस्त  दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 अगस्त दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 6464

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

शिकारा ले चले ग़र्क़ाब देखने के लिए !
ख़िजा में चल दिये शादाब देखने के लिए !!

कि इस उल्फ़त में कुछ ऐसे दिवाने हो गये हैं !
अमावस को जगे मेहताब देखने के लिए !!

खड़े रहते हैं आपनी बाम की दीवारों पर !
कई अरसे से हैं बेताब देखने के लिए !!

मोहब्बत का ख़ुमार सर से उतरता ही नहीं !
रखी रहती है बस शराब देखने के लिए !!

खयालों में उन्हें लाकर यूँ ही सफ्हे उलटते हैं !
लिए  बैठे  हैं  हम  किताब देखने के लिए !!

आगाज़-ए-ग़मे-इश्क पर इतने परेशां हैं !
अभी तो और हैं अज़ाब देखने के लिए !!

मुकम्मल हो नहीं सकता मगर आँखों में रहता है !
मुझे  वो  दे  गया  एक  ख़्वाब  देखने के लिए !!

हमें भटका रही है तिश्नगी इस दश्त-ओ-सहरा में !
कहाँ  मिलता  है  यहाँ  आब  देखने के लिए !!

बसर तन्हा सफर तन्हा उमर तन्हाई में काटी !
ये  सारे  हैं  मेरे  अहबाब  देखने के लिए !!

कि ऐ रक्षा ! कभी दस्तक तो दो आके ठहरने को
मेरे  दिल  में  है  क्या  ये  बाब  देखने के लिए !!

(मौलिक व अप्रकाशित)

मुहतरमा रक्षिता सिंह जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, मगर मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल बह्र से ख़ारिज है, आपने मेहनत की है, आयोजन में शामिल हुईं, इसके लिये बधाई स्वीकार करें।  सादर। 

मुहतरमा रक्षिता सिंह जी आदाब, ग़ज़ल अभी बहुत समय चाहती है, मुशाइर: में सहभागिता के लिए आपका धन्यवाद ।

आदरणीया रक्षिता जी, ग़ज़ल के अच्छे प्रयास की बधाई स्वीकार करें। बहर और वज़न पर और मेहनत की ज़रूरत है।

आदरणीया रक्षिता जी,

सादर अभिवादन

ग़ज़ल के अच्छे प्रयास की बधाई स्वीकार करें

आदरणीया रक्षिता जी, नमस्कार

ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार कीजिए

गुणीजनों से सहमत हूँ।

सादर।

आदरणीया रक्षिता सिंह जी नमस्कार! ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

1212 1122 1212 22 / 112

1

तू सो रहा है फ़क़त ख़्वाब देखने के लिए

जगा ले ख़ुद को ज़फ़र-याब देखने के लिए

2

झपकनी भूल गए अपनी हम सर-ए-मिज़्गाँ

उठाई आँख जो महताब देखने के लिए

3

निकल के बेहिसी की क़ैद से कभी तो कर 

इशारा तू दिल-ए-बेताब देखने के लिए

4

जहाँ की नज़रों से छिपते छिपाते आए वो

नशीली आँखों के मय-नाब देखने के लिए

5

उड़ा दीं कितनी ही रातों की नींदें हमने भी

तुम्हारे चेहरे का ख़ुश-आब देखने के लिए

6

बहाना कुछ भी कोई भी बना के आ जाना 

हमारे रुख़ की तब-ओ-ताब देखने के लिए 

7

बहा दे अपने पसीने का क़तरा क़तरा तू

लिखे नसीब में अलक़ाब देखने के लिए

*8

मैं लौट आती हूँ बचपन में आज भी "निर्मल" 

गली में खेलते अहबाब देखने के लिए 

9

बढ़ा के पींग महब्बत की जाते जाते कल

"मुझे वो दे गया इक ख़्वाब देखने के लिए"

मौलिक व अप्रकाशित

आदरणीया रचना जी, अच्छी ग़ज़ल की बधाई स्वीकार करें।

आदरणीय संजय शुक्ला जी हौसला बढ़ाने के लिए आभार।

आदरणीया Rachna Bhatia जी
सादर अभिवादन

बढ़िया तरही ग़ज़ल कहने के लिए हार्दिक बधाइयाँँ स्वीकार करें.गुणीजनों की इस्लाह अपेक्षित है. 

आदरणीय सालिक गणवीर जी, हौसला बढ़ाने के लिए बेहद शुक्रियः। 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

munish tanha replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"चुपके से याद आ कोई सहला गई मुझेमहबूब ये शराब तो बहका गई मुझे वाहेगुरु मुआफ़ करे आपकी खताइक सोच सिर्फ…"
32 minutes ago
munish tanha replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"चुपके से याद आ कोई सहला गई मुझे महबूब ये शराब तो बहका गई मुझे वाहेगुरु मुआफ़ करे आपकी खता इक सोच…"
39 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"देखा जो ध्यान से उसे वो भा गई मुझे चलना था साथ- साथ ही जतला गई मुझे थी ख़ानदानी जन्म से समझा गई…"
40 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, तरही मिसरे पर ख़ूबसूरत मक़्ते के साथ ग़ज़ल मुकम्मल हुई है, "फिर से…"
1 hour ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"सुप्रभात सर्।"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"अपनी ही रौशनी में वो नहला गई मुझे  इक चाँदनी थी चाँद-सा चमका गई मुझे  काँधे पे मेरे…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आदरणीय Sanjay Shukla जी आदाब  अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।  इतनी सी बात थी कि…"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"उस्ताद-ए-मुहतरम आदरणीय समर कबीर साहिब को मेरा सादर चरणस्पर्श "
9 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"221 2121 1221 212 फिर से गुनाहगार वो ठहरा गई मुझे क्या जाने किस की आह थी जो खा गई मुझे /1 इतनी सी…"
10 hours ago
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"स्वागत है"
10 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"स्वागतम"
10 hours ago
Euphonic Amit commented on Balram Dhakar's blog post ग़ज़ल: अगर कोशिश करेंगे आबोदाना मिल ही जाएगा।
"आदरणीय बलराम धाकड़ जी आदाब  ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है।  कुछ बिंदुओं से अवगत करवाना…"
10 hours ago

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service