For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 129वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब हसरत मोहानी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"ख़ुशी ऐसी भी होती है अलम ऐसा भी होता है "

1222               1222         1222             1222

 मुफ़ाईलुन      मुफ़ाईलुन      मुफ़ाईलुन      मुफ़ाईलुन

बह्र:  हजज़ मुसम्मन सालिम

रदीफ़ :-  ऐसा भी होता है
काफिया :- अम( कलम, सितम, करम, ग़म, सनम, बहम  आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 26 मार्च दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 27 मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 26 मार्च दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 10043

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

बहुत बहुत धन्यवाद महोदय चेतन प्रकाश

जलन कुछ तो रही है, सर कलम ऐसा भी होता है !

खुशी  देने  की  होती  पर हरम ऐसा  भी होता  है !!

जिओ खुद और जीने  दो, पुराना राग है भैया !

वो औसत लोग हैं सुन ले, भरम ऐसा भी होता है !

बहुत अच्छा प्रजातंत्र है पर वो भीड़ का शासन,

अराजक  वो  हुआ तो है करम ऐसा भी होता है !

रक़ीबों की है आयी मौज होती, खूब होली है,

वो लहराए हैं परचम देख दम ऐसा भी  होता है !

वो है मानिन्द दुर्घषु वीर पद्मावत का जानें क्या?

उलट देगा अभी  बाजी, धरम ऐसा भी होता  है !

वो  'चेतन' गाँठ  का पूरा सनम भरपूर  जीता है,

हमेशा मान गुरुवर का चरम ऐसा  भी होता  है !

है हर कोई भी मालिक ज़िन्दगी अपनी जहाँ या रब !

खुशी  ऐसी  भो होती  है अलम ऐसा  भी होता  है ! !

मौलिक एवम्  अप्रकाशित

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन । गजल का प्रयास अच्छा है । हार्दिक बधाई।

आदरणीय, भाई, लक्ष्मण सिंह मुसाफ़िर, आपने मेरी, ग़ज़ल को अपना बहूमूल्य समय दिया, आपका ह्रदय से आपका आभारी हूँ! 

जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आयोजन में सहभागिता के लिये धन्यवाद ।

आप आयोजन में सिर्फ़ अपनी ग़ज़ल पोस्ट करते हैं,दूसरों की ग़ज़लों पर टिप्पणी नहीं करते,ये अच्छी बात नहीं है ।

  1. नमन, श्रद्धेय समर कबीर साहब, आपने जो कहा, शत- प्रतिशत सच है, परिवार के सदस्य के नाते मुझे वही करना चाहिए, जिस की अपेक्षा आपने की है! और, आदरणीय, अंग्रेजी साहित्य चवालीस वर्षों तक अनवरत उच्चतम स्तर पर शिक्षण किया है, अत: काव्य साहित्य की समीक्षा मेरे लिए, श्रद्धेय, आनंद और सतोष का विषय है! परन्तु सद्भावना वश भी सच्ची समीक्षा कुछ सदस्य पचा नहीं पाये, यहाँ तक अभद्रता भी हुई! परिणाम स्वरूप मैं ने साथी सदस्यों की रचनाओं पर अपना समय देना, उचित नहीं जान पड़ा! आपकी स्वीकृति, आदरणीय, मिल गयी है, पालना होगी ! साभार  ! 

आदरणीय चेतन जी, अच्छा प्रयास हुआ. 

मतले का भाव स्पष्ट नहीं है.

3 ऊला की बहर प्रजातंत्र पर टूट रही है. 

3, 4, 5, 6 शेर के भाव मुझे स्पष्ट नहीं हो पाये .

आदाब, संजय शुक्ल साहब, , मतला' आपको स्पष्ट नहीं हुआ, धैर्य रखें, काव्य, बंधुश्रेष्ठ, अनुशीलन कर्ता से शब्द- ज्ञान के अतिरिक्त थोड़ा समय के प्रति दान की अपेक्षा भी करता है! वैसे, भी अधिकांश गजल, स्वयं आप के मतानुसार समझ से परे है! तथापि आप ने मेरी ग़ज़ल को समय दिया! आपका आभारी हूँ, आदरणीय! 

आदरणीय चेतन जी, निश्चय ही मेरे समझने में कुछ कमी है क्यों कि अन्य सदस्यों ने आप की ग़ज़ल की सराहना की है.

संजय जी, ऐसा नहीं है, आपने बिल्कुल सहीह टिप्पणी की है, आजकल ओबीओ के बहुत से सदस्य बिना पढ़े ही ग़ज़लों की तारीफ़ कर के निकल जाते हैं,आप इसी आयोजन में देखें कि जिन ग़ज़लों पर मैंने विस्तार से कमियों को इंगित किया है भाई लोग उन्हें भी अच्छी और बहतरीन  कह कर दाद देकर निकल गए,उन्होंने मेरी टिप्पणी पढ़ना भी गवारा नहीं की ,आजकल यही हो रहा है क्या कर सकते हैं,लेकिन हमें अपना फ़र्ज़ बहरहाल निभाना है ।

आ. भाई समर जी, कई बार मुझ जैसे लोग रौं में पढते समय गलतियाँ नहीं पकड़ पाते केवल भाव देखकर ही टिप्पणी कर जाते हैं । आप सही मायने में परिवार के वरिष्ठजनों का दायित्व नभा रहे है । इसलिए आपकी उपस्थिति के बिना अपनी कोई भी रचना मैं पूर्ण नहीं समझता। सादर..

भाई लक्ष्मण जी, आपकी महब्बत है ।रौ में टिप्पणी करना वैसे भी ओबीओ की परिपाटी नहीं है,मैं तो पहले ग़ज़ल ध्यान से पढ़ता हूँ,फिर उस पर आई टिप्पणियों को पढ़ता हूँ फिर अपनी टिप्पणी देता हूँ,और ऐसी ही उम्मीद बाक़ी सदस्यों से भी करता हूँ ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
44 minutes ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
2 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service