For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७७

2122 2122 2122 212

बाग़पैरा क्या करे गुल ही न माने बात जब
शम्स का रुत्बा नहीं कुछ, हो गई हो रात जब //१

बाँध देना गाँठ में तुम गाँव की आबोहवा
शह्र के नक्शे क़दम पर चल पड़ें देहात जब //२

दोस्त मंसूबा बनाऊं मैं भी तुझसे वस्ल का

तोड़ दें तेरी हया को मेरे इक़दमात जब //३

इक किरन सी फूटने को आ गई बामे उफ़ुक़
रौशनी की जुस्तजू में खो गया ज़ुल्मात जब //४

देखिए फिर से समंदर अब्र कब पैदा करे
आसमां में क्या मिले वो हो चुकी बरसात जब //५

किसलिए बीते दिनों की हाय तौबा कीजिए
हाल में ख़ुद हों नुमायाँ माज़ी के असरात जब //६ 

करवटें कर लीजे अपनी लुत्फ़े फ़र्दा की तरफ़
ख्व़ाब में आके डराये चेहरा-ए-माफ़ात जब //७ 

क्या करें घोड़े प्यादे, क्या करें अब फ़ील भी
खा चुके शतरंज की बाज़ी में शह और मात जब //८ 

है हमारी ज़िंदगानी गर्दिशे अय्याम सी
वस्ल का इम्काँ भी क्या, हों हिज्र में दिन रात जब //९  

ख़ुद में पैदा कीजिए इक कैफ़ियत तस्लीम की
शौक़े दिल का साथ न दें बेवफ़ा हालात जब //१० 

जान लेने की क़सम थी जान देने के लिए
कर न तू वादा खिलाफ़ी हो गई है बात जब //११

हो इशाअत हम पे भी नज़रे करम ए हुस्न की
राज़ की हाज़िर जवाबी से मिटें ख़द्शात जब //१२  

~ राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

बाग़पैरा- माली, बाग़ की देखभाल करने वाला; शम्स- सूर्य; इक्दामात- अग्रसरता, पहल; बामे उफ़ुक़- क्षितिज के छज्जे पर; ज़ुल्मात- अँधेरे; गुज़राने गम- दुःख का आगमन; नुमायाँ- प्रकट; फ़र्दा- आने वाला कल; माफ़ात- जो व्यतीत हो हो; गर्दिशे अय्याम- दिन रात का चक्कर; वस्ल- मिलन; इम्काँ- संभावना; तस्लीम- स्वीकार करना; इशाअत- प्रकटन; ख़द्शात- शंकाएँ

Views: 588

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on December 5, 2018 at 9:53pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत और सुखन नवाज़ी का दिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 5, 2018 at 9:31pm

आ. भाई राज नवादवी जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by राज़ नवादवी on December 5, 2018 at 2:39pm

आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. ग़ज़ल में आपकी शिरकत और इस्लाह का तहे दिल से शुक्रिया. सुझाए गए बदलाव के साथ रेपोस्ट करता हूँ. सादर. 

Comment by TEJ VEER SINGH on December 5, 2018 at 2:16pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राज नवादवी जी।बेहतरीन गज़ल।

खैर मख्दम के सिवा गुज़राने गम का हो भी क्या 
क्या करें हो घर के दरवाज़े खड़ी बारात जब //६ 

Comment by Samar kabeer on December 5, 2018 at 11:29am

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'  हम भी मंसूबा बनाएँ दोस्त तुझसे वस्ल का 
तोड़ दें तेरी हया को मेरे इक्दामात जब '

इस शैर के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,और शैर में शुतरगुरबा दोष भी,इस शैर को यूँ कर लें, दोनों ऐब निकल जाएँगे:-

'दोस्त मंसूबा बनाऊं मैं भी तुझसे वस्ल का

तोड़ दें तेरी हया को मेरे इक़दमात जब'

 '  रौशनी की जुस्तजू में खो गए ज़ुल्मात जब'

इस मिसरे में "ज़ुलमात" एक वचन है,इसलिये 'खो गए' को "खो गया" करना उचित होगा ।

'  खैर मख्दम के सिवा गुज़राने गम का हो भी क्या'

इस मिसरे में सहीह शब्द है "ख़ैर मक़दम" ।

मक़्ते के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,और ऊला का शिल्प भी कमज़ोर है ।

Comment by राज़ नवादवी on December 5, 2018 at 9:24am

आदरणीय राहुल डांगी साहब, ग़ज़ल में शिरकत और सुखन नवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 4, 2018 at 11:14pm

अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई विशेष तौर पर 2 व 11 वें शे'र के लिए वाह 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
35 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
36 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
36 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
37 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
38 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
39 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
54 minutes ago
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
3 hours ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
3 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
3 hours ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
3 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service