For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ैर मुदर्रफ ग़ज़ल की कोशिश

ये हवा कैसी चली है आजकल
सब यहाँ दिखते दुखी हैं आजकल

दुख किसीको है अकेला क्यों खड़ा
और किसीको भीड का ग़म आजकल

है शिकायत नौजवाँ को बाप से
बाप को लगता वो बिगड़ा आजकल

मायने हर चीज के बदले यहाँ

है नहीं अच्छा बुरा कुछ आजकल

बाँटकर खाने के दिन वो लद गये

लूटलो जितना सको बस आजकल

मुल्क के ख़ातिर गँवाते जान थे

क़त्ल करते मुल्कमें ही आजकल

क़ौल के ख़ातिर गँवायें जान क्यों

कौन है वादे निभाता आजकल

ताज भी छोड़ा किसीने शान में
कौन छोड़ेगा ये कुर्सी आजकल

सिर्फ़ मसला ये नहीं लिबास का
देखना बाक़ी रहा क्या आजकल

तुम भले चाहे गँवादो जान भी
बस यही होता रहेगा आजकल

मौलिक एवं अप्रकाशित। 

Views: 916

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Kishorekant on August 11, 2018 at 5:37am

आदरणीय समर कबीरजी

आपकी सुचनाओं का ध्यान रक्खूंगा ।

OBO पर इतने सौहार्द पूर्ण वातावरणमें उचित मार्गदर्शन मेरे अहोभाग्य का विषय है !

गुणी जनों का सहयोग मिलता रहा तो कुछ न कुछ सीख ही जाऊँगा । 

आभार !

Comment by Kishorekant on August 11, 2018 at 5:31am

आदरणीय रविकान्त जी ,

आपके मार्गदर्शन का बहुत बहुत आभार ।आगके लिये ये सुचनायें काफ़ी सहायक होगी ।

Comment by Ravi Shukla on August 11, 2018 at 12:03am

आदरणीय किशाेरकांत जी  आे बी आे पर गजल की बातें एवं गजलकी कक्षा से मूल भूत जानकारी लेकर आगे बढे बहर अौर काफिया गजल का मूल भूत तत्व है इसके  बिना गजल नहीं हो सकती । अब मेरे द्वारा उठाए गये दो शब्द खािलाफत को  विरोघ के अर्थ में नहीं प्रयुक्त कियाजाना चाहिये उसके  लिए मुखालिफ लफ्ज है आेर मसला की जगह  मसअला 212 के वजन में  लियाजाएगा । सादर 

Comment by Samar kabeer on August 7, 2018 at 2:15pm

जनाब किशोर कांत जी आदाब, अव्वल तो ये ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल नहीं है,दूसरी बात ये कि ये ग़ज़ल भी नहीं है,क्योंकि बिना रदीफ़ की ग़ज़ल हो सकती है,लेकिन बिना क़वाफ़ी की ग़ज़ल नहीं होती,और आपकी इस प्रस्तुति में रदीफ़ तो है, क़वाफ़ी नहीं है,अगर ग़ज़ल विधा पर क़लम चलाना है तो उसके लिए बहुत अध्यन करना होगा,ओबीओ पर इस विधा पर बहुत से आलेख हैं,उन का लाभ लें ।

Comment by Kishorekant on August 7, 2018 at 8:32am

तस्दिक अहमद खाए साहब

हौसला अफ़्जाई का तहें दिलसे शुक्रिया । सीखने सीखाने के सिलसिलेमें आपका  सहयोग अवश्य दें ।

Comment by Kishorekant on August 7, 2018 at 8:28am

आदरणीय रवि शुक्लाजी,

'फ'के ऊपर रेफ के कारण मैंने  सि को गुरु (२) किया है  सिर्फ़ = सिर फ

  1. सिर्फ़ मसला
  2. २  १  २ २

ख़िलाफ़त में ......के स्थान पर  ........भले चाहे  .....कर दिया है ?

आपका आभार एवं  सहायता की प्रार्थना ।

Comment by Kishorekant on August 7, 2018 at 8:13am

आदरणीय नविनमणी त्रिपाठी जी,

आपका मार्गदर्शन मूल्यवान है ।

मतलेमें है और हैं (.) का भेद है ।

काफिया  निभाते नहीं बन पड़ा था इसलिये आजकल को क़ाफ़िया बनाकर   ग़ैर मुर्रदफ कहा ।क़ाफ़िये की खोजमें रचना का प्रस्तुत रूप ही  बदल जायेगा।

ईसी कहन को  स्विकार्य रूप कैसे  दे सकते हैं, कृपया मार्गदर्शन करें ।

अभी विद्यार्थी ही हूँ ।

आदरणीय रवि शुक्लाजी भी अनुग्रह करें । ख़िलाफ़त एवं मसला में सुधार कर दूँगा ।

Comment by Ravi Shukla on August 6, 2018 at 11:37pm

आदरणीय किशोर कांत जी प्रयास अच्छा हुआ है  मतले मे काफिया आैर रदीफ दोनो ही है  आैर पूरी गजल में आजकल रदीफ चल रहाहै इसलिए गैर मुरद्दफ नहीं हुई है गजल साथाही आपने अरकान भी नहीं लिखे है । लफ्ज  खिलाफत अर्थ में आैर मसला वज्न के अनुसार  फिर से देख लें ।सादर 

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 6, 2018 at 10:39pm

जनाब किशोर कान्त साहब बहुत सुंदर प्रयास है ग़ज़ल का ।ग़ज़ल गैर मुदर्र्फ कैसे हुई रदीफ़ तो आजकल है । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service