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1222 1222 122

तिजारत हुक्मरानी हो गई है।
कहीं गुम शादमानी हो गई है।।

न अब गांधी न शास्त्री से हैं रहबर।
शहादत उनकी फ़ानी हो गई है।।

तेरा तो हुश्न ही दुश्मन है नारी।
कठिन इज्जत बचानी हो गई है।।

लगी जब बोलने बिटिया हमारी।
वो घर में सबकी नानी हो गई है।।

हमीं से चार लेकर एक दे कर।
'नमन' सरकार दानी हो गई है।।


मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 5, 2017 at 6:35pm
आ0 राजेश कुमारी जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद। आ0 समर कबीर जी ने इशारा भी किया था पर मैं समझ नहीं पाया कि इस मिसरे में कहाँ लय भंग हो रही है।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 5, 2017 at 6:30pm
आ0 राजनवादवी जी बहुत आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 5, 2017 at 11:27am

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आद० बासुदेव जी .शास्त्री को आपने हिंदी छंद के अनुसार २२ में बांधा है जबकि ग़ज़लों में शास्त्री दोस्ती आदि २१२ में बांधे जाएंगे --न अब हैं शास्त्री गांधी से रहबर ---ऐसे कर सकते हैं 

आपको बहुत बहुत बधाई 

Comment by राज़ नवादवी on October 4, 2017 at 7:28pm

आदरणीय बासुदेव अग्रवाल नमन जी, ग़ज़ल का सुन्दर प्रयास हुआ है, बधाई स्वीकार करें, सादर. 

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 4, 2017 at 12:45pm
जनाब अफ़रोज़ जी आपका बहुत आभार।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 4, 2017 at 12:44pm
आ0 समर साहिब आपका बहुत आभार।
Comment by Afroz 'sahr' on October 3, 2017 at 4:07pm
आद० वासू देवजी अच्छी ग़ज़ल है बधाई आपको गुणी जनों के सुझाव पर गो़र करें सादर,,,,
Comment by Samar kabeer on October 3, 2017 at 3:09pm
जनाब बासुदेव अग्रवाल'नमन'जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
दूसरे शैर का ऊला मिसरा लय में नहीं है,देखियेगा ।

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