For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हिंदी क्यूँ ऐसे लगती ज्यूँ वृदाश्रम की माई है ;अलका 'कृष्णांशी'

समीक्षार्थ.........छंद-- तांटक  (एक प्रयास)

*******

हिन्दी का घटता रुझान पर , भाषा में गहराई है
हिंदी क्यूँ ऐसे लगती ज्यूँ वृदाश्रम की माई है

.

नव पीढ़ी ने हिंदी में अब, लिखना पढ़ना छोड़ा है
परिवर्तन ऐसा आया दिल ,अंग्रेजी से जोड़ा है
निज भाषा का परचम लहराने का करते हैं दावा
मंचों से ही है चिंतन अंग्रेजी पर बोलें धावा

.
अंग्रेजी स्टेटस सिंबल है, हिंदी दिखती काई है
हिंदी क्यूँ ऐसे लगती ज्यूँ वृदाश्रम की माई है

.
साहित्य दर्पण समाज का फिर भी इसे उखाड़ा है
हिंदी दिवस मनाकर के बस पल्ला सबने झाड़ा है
ब्रांड बनाते हैं अपना फिर, चकाचोंध में गाते है
अंतहीन शोहरत की भूख, का दमखम दिखलाते है 
.

गौरवशाली साहित्य पर पेंशन की परछाई है

हिंदी क्यूँ ऐसे लगती ज्यूँ वृदाश्रम की माई है

.

कालखंड की भाषा शैली , अवधि औ ब्रज की बोली
खड़ी बोली और मैथिलि ने ,कानों में मिसरी घोली
शब्दशास्र की बूढी डंडी से गर सबको हांकेंगे
रचनाकार बदल के रस्ता अंग्रेजी में झांकेंगे
.

दीप प्रज्वलन माल्या अर्पण, परिचर्चा की खाई है

हिंदी क्यूँ ऐसे लगती ज्यूँ वृदाश्रम की माई है

.

कुदरत का बदलाव नियम है ,क्लिष्ट न होने दो भाषा
पाठकगण के मन भी जागे,सरल सहज की अभिलाषा
सन्नाटों को गुंजित कर दे,शंखनाद रचनाओं का
हरसिंगार हिंदी का हो ज्यूँ ,सन्निपात उल्काओं का
.

मातृभाषा ये अपनी है अपनों की बड़ी सताई है

हिंदी क्यूँ ऐसे लगती ज्यूँ वृदाश्रम की माई है

*******

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 978

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 1, 2017 at 12:50pm

आदरणीय नन्दकिशोर दुबे जी ,बहुत धन्यवाद कि आपको मेरी रचना पसंद आई।  आभार।  सादर ।

Comment by नन्दकिशोर दुबे on September 24, 2017 at 2:27pm
वास्तव में बहुत सुन्दर व् यथार्थपरके रचना ।
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 18, 2017 at 3:26pm

आदरणीय  Samar kabeer जी बहुत धन्यवाद कि आपको मेरी रचना पसंद आई,  आभार  सादर ।

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 18, 2017 at 3:25pm

आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी बहुत धन्यवाद कि आपको मेरी रचना पसंद आई,  आभार  सादर ।

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 18, 2017 at 3:24pm

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी बहुत धन्यवाद कि आपको मेरी रचना पसंद आई।  आभार।  सादर ।

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 18, 2017 at 3:23pm

आदरणीय  गिरिराज भंडारी जी बहुत धन्यवाद कि आपको मेरी रचना पसंद आई , अंग्रेजी वाले  शब्दों में मुझे भी लगा पर कुछ और सूझ नहीं रहा , फिर भी कोशिश करती हूँ. . मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार।  सादर ।

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 18, 2017 at 3:21pm

आदरणीय   शिज्जु "शकूर"  जी बहुत धन्यवाद कि आपको मेरी रचना पसंद आई , आभार सादर ।

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 18, 2017 at 3:20pm

आदरणीय  पंकजोम " प्रेम "  जी बहुत धन्यवाद कि आपको मेरी रचना पसंद आई , आभार सादर ।

Comment by Samar kabeer on September 17, 2017 at 11:20pm
मोहतरमा अलका जी आदाब,अच्छा गीत हुआ,बधाई ।
Comment by नाथ सोनांचली on September 17, 2017 at 11:39am
बहुत सुन्दर सरस और सारगर्भित रचना हुई आदरणीया..हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service