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२२ २२ २२ २२ २२ २

आओगे जब भी तुम मेरे ख्वाबों में
उन लम्हो को रख लूँगी मैं यादों में

और नही कुछ चाहूँ तुमसे मेरी जां

दम टूटे मेरा बस तेरी बाहों में

मेरा जीवन इस गुलशन के फूलों जैसा

घिरा हुआ है मगर बहुत से काँटों में


तुमको में रूदाद सुनाऊं क्या अपनी
मेरा हर लम्हा बीता है आहों में

देख रही हो मुझको तुम जैसे "रौनक"
जी चाहे मैं डूब मरूँ इन आँखों में



मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 25, 2017 at 10:46am

वाह आदरणीया कल्पना दी, बहुत ही खूबसूरत गज़ल कही है| सादर बधाई स्वीकार करें|

Comment by sunanda jha on September 25, 2017 at 9:02am
आदरणीया बहुत प्यारी ग़ज़ल हुई है पर मुझे एक शुब्हा है जो गुणी जत्न दूर करेंगे ,आपकी ग़ज़ल के तीसरे शेर में तुकाबले रदीफ़ दोष आ रहा है तो इस मिसरे को ' मेरा जीवन इस गुलशन के फूलों जैसा ' यूँ करें तो ?
Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 25, 2017 at 8:53am

आदरणीया कल्पना जी दिल की आवाज़ शब्दों में ढली तो खूब सूरत ग़ज़ल बन गई , वाह वाह , बधाई  आपको 

Comment by santosh khirwadkar on September 25, 2017 at 8:23am
वाह्ह्ह आदरणीय ताई, सुंदर ग़ज़ल हुई!!!
बधाई /अभिनंदन!!
Comment by sunanda jha on September 25, 2017 at 8:02am
हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना जी बहुत प्यारी ग़ज़ल हुई ।'रौनक'बहुत प्यारा उपनाम ।
Comment by नाथ सोनांचली on September 25, 2017 at 4:56am
आदरणीया कल्पना भट्ट जी सादर अभिवादन, बहुत ही अच्छी ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 24, 2017 at 6:15pm

धन्यवाद आदरणीय सलीम रज़ा जी | जी मैं जां कर दूंगी | पुनः धन्यवाद |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 24, 2017 at 5:51pm

धन्यवाद जनाब मोहम्मद आरिफ साहब आपको ग़ज़ल अच्छी लगी जानकार ख़ुशी हुई सार्थक हुआ मेरा प्रयास | जी मैं भी इंतज़ार कर रही हूँ मार्गदर्शन के लिए | सादर |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 24, 2017 at 5:49pm

धन्यवाद आदरणीय अमित जी |

Comment by SALIM RAZA REWA on September 24, 2017 at 12:22pm
आ. कल्पना जी ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई,
और नही कुछ चाहूँ तुमसे मेरी जान,
जान की जगह " जां " होना चाहिए ,

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