For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सिन्धु सी नयनों वाली (रोला गीत) भाग-२

लिपट चंद्रिका चंद्र, करें वे प्रणय परस्पर।
निरखें उन्हें चकोर, भाग्य को कोसें सत्वर।।
हाय रूप सुकुमार, कंचु अरुणाभा वाली।
स्वर्ग परी समरूप, सिन्धु सी नयनों वाली॥

व्याकुल हुए चकोर, मेघ चंदा को ढक ले।
रसधर सुन्दर अधर, हृदय कहता है छू ले।।
सीमा अपनी जान, लगे सब रीता खाली।
स्वर्ग परी समरूप, सिन्धु सी नयनों वाली॥

रहे उनीदे नैन, सजग अब निरखे उनको।
देख देख हरषाय, तृप्त करते निज मन को।।
हुए अधूरे आप, नहीं वह मिलने वाली।
स्वर्ग परी समरूप, सिन्धु सी नयनों वाली॥

उडगन छुपते भोर, सूर्य जब चमके नभ में।
धरा जगी चहुंओर, सचल जीवन हो जग में।
हुये अस्त कविराय, उदित वह होने वाली।
स्वर्ग परी समरूप, सिन्धु सी नयनों वाली॥

जिसमें ढूढ़ा काव्य, नहीं वह काव्य हमारी।
जहां काव्य मौजूद, पहुंच न दृष्टि हमारी।
नहीं उभरते भाव, शब्द आडम्बर खाली।।
स्वर्ग परी समरूप, सिन्धु सी नयनों वाली॥

अहा कपासी रूप, भीत छूने से लगता।
कहीं लगे न मैल, प्रदूषित बने धवलता।।
फीका लगे तुषार, सार आगारों वाली।
स्वर्ग परी समरूप, सिन्धु सी नयनों वाली॥

निरभ्र रूप आकाश, वही है उतरा मानो।
द्वय रवि उसके नैन, तेज है बिखरा जानो।।
उर के भीतर उतर, रही है उसकी लाली।
स्वर्ग परी समरूप, सिन्धु सी नयनों वाली॥


मौलिक व अप्रकाशित

जिन्दगी की जद्दोजहद में कुछ इस तरह उलझा कि एक लम्बे समय तक इस मंच से दूर रहा। जिन्दगी की दुश्वारियों को कुछेक कदम पीछे छोड़ते हुए एकबार पुनः इस सम्मानित मंच पर आना हुआ है। आप सब गुरुजनों से पूर्ववत् आशीर्वाद और स्नेह की आकांक्षा है। इसी क्रम में पूर्व में लिखी एक रचना "सिन्धु सी नयनों वाली" का अगला भाग आप सबके चरणों में समर्पित करता हूं। इस गीत को मैंने अपने एक अनन्य मित्र विनय कुमार पाठक की प्रेरणा से लिखा है। अतः इसे उन्हें समर्पित करता हूं।
******************************

Views: 700

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 26, 2017 at 10:55pm

आदरणीय लक्ष्मन सर, सादर नमन. हाँ सर कैरियर सम्बन्धी अनिश्चितता और लक्ष्य की प्रतिबद्धता को लेकर काफी व्यस्तता के कारण इस सम्मानित और प्रिय मंच पर आना नही हो पा रहा था. अतः प्रतिभागिता कम ही हो पा रही थी. मैं स्वयं भी आप सब सुधी गुनी जनो के रचना अधययन लाभ से वंचित ही था. पुनः आगमन हुआ है तो अच्छा लग रहा है.

रचना में रह गयी कमियों को दूर करता हु.

सादर

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 26, 2017 at 10:47pm

आदरणीय गोपाल सर! सादर नमन. रचना की सराहना के लिए आपका आभार. वस्तुतः यह कविता नायिका को संबोधित है. अतः मैंने काव्य हमारी लिखा है.

हाँ मात्रा की अधिकता को देखता हूँ कैसे कम कर सकते हैं.

सादर

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 24, 2017 at 11:25pm

आदरणीय विजय निकोर सर आपका हार्दि‍क आभार

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 24, 2017 at 11:23pm

अादरणीय Samar kabeer जी नमस्‍कार

रचना पर आपकी सराहना से मन गदद हैा अापका बहुत बहुत आभ्‍ाार

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2016 at 1:06pm

जिसमें ढूढ़ा काव्य, नहीं वह काव्य हमारी।------------काव्य हमारी या काव्य हमारा ---- निरभ्र रूप आकाश में एक मात्रा अधिक हुयी है .  . आपकी रचना  अछ्ही है  तत्सम शब्दों का बेहतरीन उपयोग हुआ है .   सादर .

Comment by vijay nikore on December 2, 2016 at 3:38pm

आपकी रचना पढ़ कर आनन्द आया। भधाई।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 1, 2016 at 4:13pm

सुंदर सटीक और मनोहारी रोला छंद में गीत रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी | बहुत समय बाद आपकी रचना पढ़कर अच्छा लगा -

जिसमें ढूढ़ा काव्य, नहीं वह काव्य हमारी।
जहां काव्य मौजूद, पहुंच न दृष्टि हमारी।
नहीं उभरते भाव, शब्द आडम्बर खाली।।
स्वर्ग परी समरूप, सिन्धु सी नयनों वाली॥ - प्रथम दोनों पंक्तियों में "हमारी " शब्द है | प्रथम पंक्ति में बदलाव हो सके तो देखे |

 

Comment by Samar kabeer on November 30, 2016 at 5:17pm
जनाब विंधियेश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी आदाब,अच्छा लगा आपका रोला गीत,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
19 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
19 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
19 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
19 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
20 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
20 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
20 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
20 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई जयनित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई संजय जी, अभिवादन एवं हार्दिक धन्यवाद।"
20 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service