आदरणीय साथिओ,
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वाह वाह बहुत सुन्दर आपने अपनी कल्पना से इतिहास कथा को जीवंत कर दिया . सादर
मुह्तरम जनाब वीरेंदर साहिब ,प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुंदर लघु कथा
के लिए , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ - -
वाह वाह एक अलग ही तरह की लघुकथा पढने को मिली. बधाई वीर जी
आदरणीय वीरेंदर जी, प्रदत्त विषय के अनुरूप भारत के इतिहास में शायद ही कोई दूसरा वाकिया होगा. आपने इतिहास के उस पन्ने को खंगाला है, उस चरित्र को उठाया है जो वास्तव में "ढहते किले के दर्द" का प्रतीक है. आपने बहादुर शाह ज़फर जैसे शासक का कथा नायक के रूप में चयन कर न केवल प्रदत्त विषय को सार्थक किया है, बल्कि अपनी कल्पनाशीलता का भी परिचय दिया है. यह चयन ही दर्शाता है कि आपका रचनाकर्म कितनी उच्च कोटि का है. आपकी लघुकथा पढ़ते हुए बहादुर शाह जफ़र नाम के ढहते किले का दर्द याद आ गया और याद आ गए उनके दो शेर -
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहां है दिल-ए- दाग़दार में
कितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीं भी मिल न सकी कू-ए-यार में
आपने आयोजन के प्रदत्त विषय को सार्थक कर दिया. इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई और साधुवाद.
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