For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहुत बार जी चाहता है

बहुत बार जी चाहता है कुछ ऐसा- ऐसा 
की ये सब कुछ जो है अलग- विलग 
विसंगत असंगत अखरता वैसा -वैसा 
इस सब को मिटा कर  
जड़ मूल से हटा  कर 
धरा के सपाट माथे को नहला डालूँ 
रगड़ रगड़ कर  धो -धुला कर  
प्रचलित को पूर्णतया मिटा कर 
नई इबारत  खुदवा   डालूँ
श्रम बूंदों से  छलछलाएं समंदर 
 जगती संग  इन्ही से नहा  डालूँ 
बादल की कूचियों पर नई रेखा बना डालूँ 
इसी  से परिचालित हो सम्पूर्ण  धरा 
खोटा भी रहे   बस हो जाए खरा 
क्यों  हो मालिक कोई किसी का
क्यों हो कोई  किसी का गुलाम 
इंसान हो तो  केवल इंसान
क्यों  रहे कोई सिंह सा  डराता
 क्यों कोई भीगी  बिल्ली सा डरा 
डर के डर से न नजर  बचा  डालूँ 
बादल की कूचियों पर नई रेखा बना डालूँ 
यही रेखा बने धरा की भाग्य रेखा 
विश्व बने ऐसा जो ख्वाबों में देखा 
वामन के सब  अवतारों से 
सपनों के  सौदागारों  से 
मुक्त बने खलिहान यहाँ 
बस ऐसे हो बलवान यहाँ  
कि मंडी मुक्त  बाज़ार रहें 
मात्र ऐसे  कारोबार रहें 
जो कोई बोये बस वही बांटे 
न कोइ छीने न कोइ  छांटे 
सीधा सरल सा  संविधान सजा  डालूँ 
बादल की कूचियों पर नई रेखा बना डालूँ 
सीमाएं लहूलुहान न हों 
कहीं पे कोई  तूफ़ान न हों 
आंधियां हो ऐसी जो  उड़ा ले के जाए
कहीं पर   कुछ भी असंगत सा पाए
न चर्म-रंग किसी का किसी को गिराए 
न भुजबल यूं  ही  किसी को उठाये 
 मुक्त धरा हथियारों  से हो 
कूटनीति के  बाज़ारों से हो 
धरती का कहीं कोई  भी कोना  हो 
किसी को कभी न कुछ भी खोना  हो 
अनुपालन  का  प्रावधान पलवा   डालूँ 
बादल की कूचियों पर नई रेखा बना डालूँ 
     
या रेखा के भीतर अनदेखा लिखूँ क्या 
 शाश्वत सत्य का लेखा लिखूँ क्या 
लिख दूं बेमानी बेबसी  कारोबार 
लिख दूं बेमानी आसन -अत्याचार 
सर्व पर सर्वोच्चता बेमानी लिख दूं 
मानस के खोने  की कहानी लिख दूं 
लिख दूं इतिहास का फिर वो इतिहास 
ज़मीन दोज़ होता  विकसित  विकास 
या तितली के पांखों से  परिस्तान  सजा डालूँ 
बादल की कूचियों पर नई रेखा बना डालूँ
.
मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 562

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on November 22, 2016 at 10:14am
आदरणीया अमिता जी बहुत ही सुन्दर मनोभाव।
काश हम दिल के अरमां सजा पाते,
जो सोचते हैं वही जहां बना पाते।
हार्दिक बधाई स्वीकार करें।सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2016 at 9:59am

आदरनीया अमिता जी , मन की छटपटाहट को कविता मे अच्छे शब्द दिये हैं , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 16, 2016 at 9:48pm
इस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई आदरणीय ।
Comment by Samar kabeer on November 16, 2016 at 5:03pm
मोहतरमा अमिता तिवारी जी आदाब,बहुत ही भावपूर्ण कविता लिखी अपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service