For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मदिरा सवैया

चैन लुटा जब नैन मिले
तन औ मन की सुध भी न रही।

कोमल भाव जगे उर में
शुचि-शीतल-स्नेह-बयार बही।।

मौन रहे मुख नैनन ने
प्रिय से मन की हर बात कही।

चंद्र निहारत रैन कटें
मन की अब पीर न जाय सही।।

रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 818

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रामबली गुप्ता on July 25, 2016 at 3:41pm
मैं समझ गया आदरणीय सौरभ सर। आपकी अपेक्षाओं के अनुरूप खरा उतरने का पूरा प्रयास करूंगा। सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 25, 2016 at 3:21pm

आपकी रचना प्रस्तुति का कथ्य यदि आजक् एदौर की सामाजिक भावनाओं को संतुष्ट करती हुई हओं तो इन छन्दों को आजके संदर्भ में आँकना अधिक सहज होगा. ऐसा नहीं कि शृंगारिक या मानवीय दशा और भावबोध को शाब्दिक करना उचित नहीं है, परन्तु इन विन्दुओं और विषयों पर कहीं अच्छे छन्द पहले से ही उपलब्ध हैं. हम आजके, अपने बीच के, आस-पास के संदर्भों को छन्दों में क्यों नहीं पिरो सकते ?

Comment by रामबली गुप्ता on July 25, 2016 at 2:10pm
रचना पर आपकी प्रतिक्रिया एवं सुझावों से मनोबल और भी बढ़ता है आद0 सौरभ सर जी। तथ्य के सन्दर्भ में तनिक और प्रासंगिक होने का आशय न समझ सका आदरणीय। यदि इस सन्दर्भ में उचित मार्गदर्शन करें तो रचनाकर्म में और निखार आ सकेगा।
Comment by रामबली गुप्ता on July 25, 2016 at 2:03pm
प्रशंसा के लिए हृदय से आभार आद0 गिरिराज भाई जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 25, 2016 at 11:24am

शृंगारिक पक्ष को मुखर करते सवैया छन्द के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीय रामबली जी। 

आपका छन्दबद्ध रचनाओं पर प्रयास आश्वस्त करता है। किन्तु, कथ्य को लेकर तनिक प्रासंगिक होना अन्य रचनाकारों को भी प्रोत्साहित करेगा, ऐसा मेरा मानना है। 

जिन सुधीजनों ने सवैया छन्द के शिल्प के प्रति जानकारी न होने की विवशता जतायी है, वे भारतीय छन्द विधान समूह में सवैया से सम्बन्धित आलेख अवश्य देख लें। सवैया सम्बन्धी एक आइडिया मिल जायेगा। 

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 25, 2016 at 9:42am

आदरनीय राम बली भाई , शिल्प का ज्ञान मुझे नहीं है , पर भावपक्ष  बहुत बढिया लगा ! दिल से बधाइयाँ आपको ।

Comment by रामबली गुप्ता on July 23, 2016 at 10:42am
आद0 कल्पना जी बहुत बहुत आभार आपका
Comment by रामबली गुप्ता on July 23, 2016 at 10:41am
आदरणीया प्रतिभा जी, रचना पर उत्साहवर्धन हेतु आपका हृदय से आभार।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 22, 2016 at 5:15pm

सुंदर रचना है | बधाई स्वीकार करें आदरणीय रामबली जी | 

Comment by pratibha pande on July 22, 2016 at 11:48am

इस छंद का तो मुझे ज्ञान नहीं है पर  रचना के भाव   सुन्दर हैं ,  हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय रामबली जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service