For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गिरा हुआ हूँ मुझको उठाओ कभी-कभी

गिरा हुआ हूँ मुझको उठाओ कभी-कभी

गिरा हुआ हूँ मुझको

उठाओ कभी-कभी
आँखों में यूंही लौट के,

आओ कभी-कभी


हसरत थी कि झूम के,

होंठों को चूम लूं
हौसले को मेरे,

बढ़ाओ कभी-कभी

जो भी मिला वही मुझे, 

कुछ दाग़ दे गया
दागों की दास्ताँ भी,

सुनाओ कभी-कभी


राहों में रोक कर मुझे,

दहला रहे सवाल
इनके जवाब लेके भी,

आओ कभी-कभी


तुझे साथ लेके चलने पे,

ज़माने को ऐतराज
मैं थक रहा हूँ उसको, 

बताओ कभी-कभी


अब तो कामयाबी के, 

नुस्खे भी बिक रहे
ऐसे हकीम हमसे भी, 

मिलाओ कभी-कभी

मौलिक एवं अप्रकाशित

सुधेन्दु ओझा

Views: 667

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SudhenduOjha on July 6, 2016 at 9:09am
परम आदरणीय गिरिराज भण्डारी जी सादर प्रणाम,
रचना के भाव आपको बहुत अच्छे लगे इस केलिए आपका धन्यवाद।
मैं जब से ओबीओ से जुड़ा हूँ सब को यही स्पष्टीकरण देरहा हूँ कि मैं गज़ल नहीं लिखता, पर जो कुछ मैं लिखता हूँ उसे समझता हूँ।
मेरी वय 55 वर्ष की हो चली है। हिन्दी-अङ्ग्रेज़ी में स्नातकोत्तर हूँ। लगभग 38 वर्षों से हिन्दी में लिख रहा हूँ, छप रहा हूँ। 4 पुस्तकें भी हैं। ऐसे में गज़ल से अछूता रहा होऊं इस की संभावना कम ही बचती है।
आप सब लोग संभ्रांत गज़ल-गो हैं। मुझे लगता है मैं गलत संगत में आगया हूँ। यह महफिल मेरी नहीं केवल गज़ल गो की है, जहां मेरी रचना को गज़ल की कसौटी पर पीटा जाता है। काव्य अथवा गीत के मर्म पर उसकी कसौटी नहीं होती। आप लोग एक गधे को पीट-पीट कर घोड़ा बनाना चाहते हैं, क्योंकि आपने इसे (महफिल को) घोड़ों की महफिल बना ली है। यदि आपने आदरणीय डॉ आशुतोष जी को लिखे मेरे उत्तर पर ध्यान देने की ज़हमत उठाई होती तो शायद आपकी जिज्ञासा का निराकरण हो गया होता जिसमें मैंने स्पष्ट किया था "मैं शास्त्रीय पद्धति से गजल नहीं लिखता हूँ। इसलिए मात्राओं का कोई चक्कर इस रचना के साथ नहीं है।"
तथापि, आपके मार्ग-दर्शन का धन्यवाद। किन्तु मैं "आपकी गज़ल" के साथ इस तरह का प्रयोग भविष्य में भी करता रहूँगा।
कृपया यहाँ हुई चर्चा को साहित्यिक-विमर्श के रूप में ही ग्रहण कीजिएगा, व्यक्तिगत समझ कर मुझे कष्ट नहीं दीजिएगा।

सादर,
सुधेन्दु ओझा

गाते, गुन-गुनाते समय यदि किसी शब्द से खलल पैदा हो रहा हो तो उसी अर्थ से मिलता-जुलता शब्द उस स्थान पर रखा जा सकता है। यह स्वतन्त्रता म्यूजिक कम्पोज़र को है।"

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 6, 2016 at 8:37am

आदरनीय सुधेन्दु भाई , आपकी रचना के भाव बहुत अच्छे लगे , आपको हार्दिक बधाई ।

अगर आप गज़ल कहनाक़ चाहते थे तो ये रचना ग़ज़ल की श्रेणी मे नही रखी जा सकेगी , गज़लें किसी बहर मे कही जातीं है , और ग़ज़ल व्याकरण सम्मत भी होनी चाहिये , काफिया -रदीफ ज़रूर आपने सही निभा लिया है । अगर ये ग़ज़ल नही है तो कोई बात नही , अगर आपने गज़ल कहने की कोशिश की है तो ज़रूर इसमे बहर की कमी है ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 5, 2016 at 10:37pm

आदरणीय सुधेंदु ओझा जी सादर, आपने जो टेक ली है  'कभी-कभी' आपने गजल कही है तो रदीफ़ मान लें.वह शुरू से ही गलत लग रही है. देख लें. सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 5, 2016 at 8:53pm

इस रचना और रचनाकार की अवधारणा पर सुधीजन चाहें तो ध्यान दें। 

सादर 

Comment by SudhenduOjha on July 5, 2016 at 8:32pm

प्रिय डॉ आशुतोष मिश्रा जी,

मैं शास्त्रीय पद्धति से गजल नहीं लिखता हूँ। इसलिए मात्राओं का कोई चक्कर इस रचना के साथ नहीं है।

गाते, गुण-गुनाते समय यदि किसी शब्द से खलल पैदा हो रहा हो तो उसी अर्थ से मिलता-जुलता शब्द उस स्थान पर रखा जा सकता है। यह स्वतन्त्रता म्यूजिक कम्पोज़र को है।

आपको कहाँ समस्या हुई और आपने उस थान पर क्या शब्द रखा, अवश्य बताइएगा।

सादर,

सुधेन्दु ओझा

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 5, 2016 at 1:34pm

भाई सुधीन्द्र जी इस रचना पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करीं ..इस बिधा के बारे में मुझे जानकारी नहीं है मैंने गुनगुनाने की कोशिस की कही कहीं पर अटक रहा हूँ ..इसमें मात्राओं का क्या हिसाब होता है इसकी जानकारी न होने के कारन ही शायद ऐसा हो रहा होगा ..हार्दिक बधाई के साथ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service