For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1- नाम वरों में छुप रहे

नामवरों में छुप रहे , सारे गलती बाज

सच के आगे किस तरह , मची हुई है खाज

मची हुई है खाज , खून उभरा है तन में

लेकिन कोई लाज , कहाँ कब दिखती मन में

सत्य गिनेगा नाम , कभी तो जानवरों में

आज छिपालो झूठ, किसी का नामवरों में

****************

2- गिरगिट मानव देख

धोती में अपनी कभी , नही देखते दाग

और लगाते हैं सदा , अन्य वसन में आग

अन्य वसन में आग , लगाते हैं वो सारे

जिनको डर है सत्य,  कहीं ना उनको मारे

गिरगिट मानव देख , सदा सच्चाई रोती

चलो दिखायें दाग , निकालें उनकी धोती

***************************************

गिरिराज भंडारी

Views: 854

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2016 at 7:59am

आदरनीय सौरभ भाई , आपके विस्तार से समझाने पर ग़लती का नक्शा साफ साफ खिंच गया , इतनी बारीकी समजह्ने और समझाने के लिये आपका हृदय से आभार । आपका सुझाया हल भी बहुत सही है , मै अभी सुधार कर रहा हूँ । नामवर भी ठीक कर लेता हूँ । आपका पुनः आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 2, 2016 at 7:51am

आदरनीय बड़े भाई गोपाल जी , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

नामवर को ठीक कर लूँगा आपका पुनः आभार ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2016 at 2:16am

बहुत खूब ! हार्दिक बधाइयाँ !

एक पंक्ति .. लेकिन कोई लाज , नही दिखती है मन में 

गेयता कमज़ोर है. सुधीजनों को इसका भान अवश्य हुआ होगा किन्तु, अगाह, देख रहा हूँ किसीने किया नहीं है.  इसका मुख्य कारण पंक्ति और क्रमशः चरणों का शुद्ध मात्रिक होना प्रतीत हो रहा है. लेकिन शब्द संयोजन की दृष्टि से देखा जाय तो ’है’ पर मात्रा-भार कम कर उच्चारण करना पड़ रहा है. इसका कारण ’दिखती’ के ’ती’ अधिक स्वर-भार का होना है. चूँकि ’दिखती’ एक शब्द होने से ’दिख+ती’ करते हुए ’दिख’ को अलग कर पढ़ना संभव नहीं है ताकि ’ती’ पर का स्वर-भार अधिक न हो पाये. अतः ’नहीं’ के बाद कोई ऐसा द्विकल रख दिया जाय ताकि उपर्युक्त समस्या में दिखते ’दिख’ का स्थानापन्न हो. इसकेलिए ’नहीं’ के बाद ’है’ रखने से काम चल जायेगा.

इस स्थिति में पंक्ति होगी - लेकिन कोई लाज , नही है दिखती मन में   

मात्रिकता और शब्द-संयोजन के हिसाब से अब वाचन-उच्चारण में कोई दोष नहीं होगा.

लेकिन पंक्ति अर्थ के हिसाब से थोड़ी  अटपटी हो गयी. इसकेलिए इस पंक्ति को फिर से लिखना और साधना होगा.  

एक विकल्प, लेकिन कोई लाज , कहाँ कब दिखती मन में .. हो सकता है. वैसे, इस विन्दु पर आप मुझसे बेहतर सोच सकते हैं, आदरणीय.

और, ’नामवर’ एक शब्द है. आदरणीय. इसे ’नाम वर’ लिखना अशुद्ध है 

सादर  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 1, 2016 at 10:34am

आआ० अनुज , मैं जो कुण्डलिया देख रहा हूँ , उनमे त्रुटि नहीं है . शायद मैं  सुधार के बाद देख रहा  हूँ . बहुत बढ़िया रचना है. नाम और वरों को अलग अलग दिखाना सही नहीं है नामवर अपने आप में एक शब्द है ,  सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2016 at 9:25am

आदरनीय अशोक भाई , सराहना के लिये आपका आभार , खून उभरा है तन में  -- के लिये कोई सलाह हो तो बताइयेगा । आपका पुनःआभार ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 1, 2016 at 8:17am

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब सादर नमन, सुंदर कुण्डलिया छंद रचे हैं. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. फिरभी 'खून उभरा है तन में' कहन कमजोर लगी. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 28, 2016 at 3:41pm

आदरणीय आशुतोष भाई , सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार । आपकी सलाह उचित है , अभी सुधार रहा हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 28, 2016 at 3:40pm

आदरणीया राजे श जी , सराहना के लिये आपका आभार । आपकी सलाह उचित है , सुधार कर लूँगा ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 28, 2016 at 3:39pm

आदरणीय राम बली भाई , आप का कहना सही है , सुधरता हूँ अभी , आभार आपका ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 28, 2016 at 3:19pm

आदरणीय भाईसाब ..सुंदर कुण्डलियाँ है पर उनकी धोती का प्रयोग शायद परिवर्तित होना चाहिए ..इन दोनों ही रचनाओं पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर प्रणाम के साथ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
15 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service