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शिकवा - डॉ उषा साहनी

कितनी बंदिशें ज़िन्दगी में,
कितनी रुकावटें,
दिल नाशाद
दिमाग में रंजिशें।
बेपरवाह होके जीना,
इक गुनाह
घुट घुट के जीना,
इक सज़ा
न यह सही है न यह ग़लत
तिसपर भी ज़िन्दगी के हैं उसूल
औ नियम ,...... अनगिनत।
चाहा तो बहुत था
सब रहे सलामत
पर कब, कैसे बिगड़ गया,
याद भी नहीं रह गया
अब ये आलम है कि..... क्या है ,
क्या नहीं ,
पड़ता कहीं कोई फ़र्क़ नहीं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Usha on May 27, 2016 at 8:01am

जीवन में  कैसे कैसे सत्य से सामना होता है ,कैसे समझौते करने पड़ते हैं और फिर भी जीवन है कि  चलता ही रहता है।  एक छोटा सा प्रयास है यह कविता।  आदरणीय प्रतिभा पांडेय जी , आपने अपनी उपस्थिति को इतने खूबसूरत शब्दों से सजाया है , मैं उपकृत  हूँ।  आपका ह्रदय से बहुत बहुत सादर धन्यवाद।

Comment by pratibha pande on May 26, 2016 at 6:44pm

छोटे से कथ्य में  आपने  गंभीर बातें  कह दी , कब ,क्या कैसे अनचाहा हो जाता है सच में पता नहीं पड़ता  और फिर आ जाती  है  'अब क्या फरक पड़ता है' वाली  मानसिकता ,,बधाई प्रेषित है इस रचना पर आपको आदरणीया   

Comment by Usha on May 26, 2016 at 8:13am


आदरणीय बशर भारतीय जी , रचना पर सकारात्मक विचार हेतु सादर धन्यवाद 

Comment by Usha on May 26, 2016 at 8:12am
आदरणीय समर कबीर सर , नमस्ते , प्रस्तुत रचना पर आपकी उपस्थिति एवं सराहना के लिए सादर धन्यवाद। इधर कुछ व्यस्तता के कारण लेखन प्रभावित रहा है , आपका उत्साहवर्धन अवश्य प्रेरित करेगा और आपका आशीर्वाद आगे भी म्मिलता रहेगा।  सादर 
 
  

 

Comment by बशर भारतीय on May 26, 2016 at 7:21am
मनोभावों का सुंदर चित्रण हुआ है बधाई आ. उषा जी
Comment by Samar kabeer on May 25, 2016 at 10:46pm
मोहतरमा डॉ.उषा साहनी साहिबा आदाब,पहली बार आपकी रचना से रु बी रु होने का मौक़ा मिला है ।
ज़िन्दगी के उतार चढाव पर बेहतरीन लेखन ग़ोर-ओ-फ़िक्र की दवात देता है, और यही अच्छे लेखन की पहचान होती है, बहुत अच्छा लिखा तापने,दिल से ढेरों दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
Comment by Usha on May 25, 2016 at 9:58pm

आदरणीय कल्पना भट्ट जी, रचना को पसंद करने और प्रशंसा के लिए हृदय से सादर धन्यवाद।  

Comment by Usha on May 25, 2016 at 9:57pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर , रचना के सार्थक मूल्यांकन हेतु आपको सादर धन्यवाद।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 25, 2016 at 8:58pm

बहुत खूब | अच्छी रचना है आदरणीया | बधाई | 

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 25, 2016 at 8:48pm
इस दार्शनिक प्रस्तुति के लिए बधाई , आदरणीय सुश्री डॉo उषा साहनी जी , वैसे थोड़ा बहुत समझौता तो जीवन में सभी करते हैं। सादर।

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