आज सबके मन का उल्लास देखते ही बनता था। सभी के हाथ में पिचकारी व रंग की बाल्टी थी जिससे वे सभी राहगीर और परिचितों को सराबोर कर रहे थे। रास्ते से गुजरने वाले उधर जाने से डर रहे थे कि जाने कब बच्चों की पार्टी उन्हें देख ले और उन पर रंगों की बौछार कर दे। सभी प्रसन्न चित हो घूम रहे थे। रामू ने देखा कि एक आदमी तेजी से उस तरफ चला आ रहा है। वह बगैर इधर-उधर देखे चला आ रहा था लगता था कि उसे बड़ी जल्दी थी। वह जब नजदीक आया तो रामू ने अपने हथियार संभाले और प्रहार की तैयारी की निशाना लगा ही रहा था कि तब तक उस आदमी की निगाह उस पर पड़ गई। उसने कहा बच्चे मैं बड़ी जल्दी में हूं और बहुत ही आवश्यक कार्य है इसलिए मेरे उपर रंग न डालना कृ पा करना क्योंकि इससे मेरी बड़ी हानि हो जायेगी। रामू ने इसे नहीं समझ कर उस पर रंग डालने के लिए पिचकारी उठा ली। अब उस आदमी ने उससे हाथ जोड़ा और कहा कि देखो मैं एक आवश्यक कार्य से जा रहा हूं मेरे घर में एक व्यक्ति बहुत बीमार है उसके लिए डाक्टर बुलाने के लिए जा रहा हूं। इसलिए तुम रंग न खेलो। रामू समझदार लड़का था।वह रूक गया। आगे आकर पूछा कि आपके घर कौन बीमार है । उस आदमी ने कहा कि मेरे पिता बीमार हैं और मैं उनके लिए दवा के इंतजाम के लिए जा रहा हूं। रामू ने कहा कि आज तो होली का त्यौहार है ।डिस्पेंशनरी तो बंद है आप को डाक्टर नहीं मिल पायेंगे। मैं भी एक डौक्टर का बेटा हूं। पिताजी तो आज घर पर त्यौहार मना रहे हैं । आप मेरे घर चले और पिताजी से बतायें वे आपके पिता का इलाज कर देंगे। वह आदमी उसके साथ चला गया। घर पहुंचने के बाद देखा कि डौक्टर साहब अपने परिचितों से रंग खेलने में मशगूल हैं। रामू ने जाकर अपने पिता को पूरा वाकया बताया। सूनने के बाद डाक्टर ने तुरंत अपने कपड़े बदले और रामू के साथ आये आदमी के उस उसके घर रवाना हो गये।
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