For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नज़्म - तुम्हारे ख़त

कितना अच्छा होता न ?
अगर वो सारे ख़त तुम्हारे
जिन्हें मैं रोज़ पढ़ता हूँ
पढ़ कर मुस्कुराता हूँ
कभी आंसू भी आते हैं
मगर गिरने नहीं देता
कि कोई लफ्ज़ जो तुमने लिखा
मिट जाए न मेरे आंसू से
कितना अच्छा होता
जो ये सारे ख़त तुम्हारे
तुमने न लिखे होते
या मेरा पता गलत होता
तो आज जब तुम अहद सारे भूल बैठे हो
मैं भी भूल सकता था
सभी क़समें सभी वादे
सभी शिकवे सभी आहें
जो हैं जा ब जा बिखरे हुए
हर एक ख़त की भीगी सत्रों में
और जो अब सिर्फ अलफ़ाज़ हैं कोरे
मायने खो चुके हैं जिनके
बिखर गई है जिनकी सच्चाई
वक़्त के हल्के से एक झोंके में
बदल गए हैं इनके मायने या
तुम ही बदल गए जानाँ
-सालिम
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 470

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by saalim sheikh on May 15, 2016 at 11:50pm

बेहद शुक्रिया जनाब गुमनाम पिथौरागढ़ी साहब , जनाब सुशील साहब , जनाब समीर कबीर साहब  और जनाब मिथिलेश वामनकर साहब , आपकी हौसला अफजाई के लिए , मुझे ख़ुशी है कि आपको नज़्म पसंद आई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 11, 2016 at 1:23pm

आदरणीय सलीम जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Samar kabeer on May 9, 2016 at 6:10pm
जनाब सलीम शैख़ साहिब आदाब,रेशमी मुलायम अहसासात से सजी आपकी नज़्म पसन्द आई,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sushil Sarna on May 9, 2016 at 5:04pm

और जो अब सिर्फ अलफ़ाज़ हैं कोरे
मायने खो चुके हैं जिनके
बिखर गई है जिनकी सच्चाई
वक़्त के हल्के से एक झोंके में
बदल गए हैं इनके मायने या
तुम ही बदल गए जानाँ

वाह बहुत सुंदर अहसासों की नज़्म कहीं आपने आदरणीय। हार्दिक बधाई।

Comment by gumnaam pithoragarhi on May 9, 2016 at 3:39pm

वाह अच्छा लगी  वाह बधाई  ..............................

ये सारे ख़त तुम्हारे
तुमने न लिखे होते
या मेरा पता गलत होता

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
9 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
19 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"अंतिम दीया रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश…"
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"स्वागतम"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212  इस तमस में सँभलना है हर हाल में  दीप के भाव जलना है हर हाल में   हर अँधेरा निपट…See More
Tuesday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"//आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत धन्यवाद"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आ. भाई संजय जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service