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ग़ज़ल -फिर ‘नूर’ हर्फ़ हर्फ़ वहाँ तितलियाँ रहीं.

221/2121/122/1212

.
आसानियों के साथ परेशानियाँ रहीं, 
गर रौशनी ज़रा रही, परछाइयाँ रहीं.
.

क़दमों तले रहा कोई तपता सा रेगज़ार, 
यादों में भीगती हुई पुरवाइयाँ रहीं.
.

नाकामियों में कुछ तो रहा दोष वक़्त का,  
ज़्यादा कुसूरवार  तो ख़ुद्दारियाँ रहीं.
.

ऐसा नहीं कि तेरे बिना थम गया सफ़र
हाँ! ज़िन्दगी की राह में तन्हाइयाँ रहीं.
.

क़िरदार.. कुछ कहानी के, कमज़ोर पड़ गए
कुछ लिखने वाले शख्स की कमज़ोरियाँ रहीं.
.

मिलते दिखे उफ़क पे ज़मीं-आसमाँ मगर,
दोनों के दरमियान बहुत दूरियाँ रहीं.
.

हिन्दी की क्यारियों में जो उर्दू के गुल खिले
फिर ‘नूर’ हर्फ़ हर्फ़ वहाँ तितलियाँ रहीं.
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2016 at 1:59pm
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है आदरणीय नूर जी ..आपको हृदय से हार्दिक बधाई सादर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 6, 2016 at 11:38am

शुक्रिया आ. ब्रिजेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 6, 2016 at 11:38am

शुक्रिया आ. पंकज  जी..

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 5, 2016 at 10:38pm
क्या खूबसूरत ग़ज़ल कही आदरणीय वाह हर एक शेर लाज़बाब 
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 30, 2016 at 6:34pm
बेहतरीन ग़ज़ल के लिए साधुवाद सर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 21, 2016 at 8:23pm

शुक्रिया आ. सुनील जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 21, 2016 at 8:22pm

शुक्रिया शेख शाहज़ाद उस्मानी साहेब 

Comment by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on March 20, 2016 at 5:09pm
सादर नमन आदरणीय नीलेश जी बहुत ही शानदार उम्दा कहन लिए मुखातिब है ग़ज़ल वाह वाह के अलावा और भी वाह।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 20, 2016 at 4:43pm
मतले से मक़्ते तक सम्पूर्ण ग़ज़ल में गहरी बातें कहते हुए काफिये और रदीफ़ के बेहतरीन चयन व इस्तेमाल संग शानदार पेशकश के लिए तहे दिल बहुत बहुत मुबारकबाद मोहतरम जनाब निलेश शेव्गांवकर 'नूर' साहब।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 20, 2016 at 10:50am

शुक्रिया आ. केवल प्रसाद जी 

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