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ऐसे हालात का इल्ज़ाम मुझे मत देना। (ग़ज़ल)....डॉ. प्राची

2122.1122.1122.22

तुम सजा सा कोई ईनाम मुझे मत देना।
प्यार का रुसवा सा अंजाम मुझे मत देना।

तुम पुकारो भी नहीं, और न कभी मैं आऊँ
ऐसे हालात का इल्ज़ाम मुझे मत देना।

अपना साया ही डराए मुझे तन्हाई में
इतनी सूनी भी कोई शाम मुझे मत देना।

तुम अगर ज़ह्र भी दो, हँस के उसे पी लूँ, पर
बेवफाई का गम-ए-जाम मुझे मत देना।

तेरी साँसों से जुड़ी हैं मेरी साँसे हमदम
रुखसती का कभी पैगाम मुझे मत देना।

मेरी पहचान बना दी है तमाशा उसने
अब जो बदले कभी वो नाम मुझे मत देना।

सिर्फ ख्वाहिश ने तेरी मुझको जिलाए रक्खा
लौ बुझे ऐसा भी आराम मुझे मत देना।

मौलिक और अप्रकाशित
डॉ. प्राची

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Comment by TEJ VEER SINGH on March 4, 2016 at 5:39pm

 हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ प्राची सिंह जी! बेहतरीन गज़ल!

Comment by Ravi Shukla on March 2, 2016 at 6:07pm

आदरणीया प्राची जी  बढि़या गजल कही है आपने बधाई आदरणीय समर साहब की इस्‍लाह से मतला और भी अच्‍दा हो गया हे । सादर

Comment by UMASHANKER MISHRA on March 1, 2016 at 11:06pm

आदरणीया प्राची जी  बहेतरीन गजल के लिये हार्दिक बधाई 

Comment by Samar kabeer on March 1, 2016 at 9:41pm
मोहतरमा डॉक्टर प्राची साहिबा आदाब,तक़रीबन छ बजे आपकी ग़ज़ल पर अपनी बात कह दी थी,पता नहीं ग़ायब कैसे हो गई !
ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हो रहा है, बहुत उम्दा ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएँ ।
मतले के ऊला मिसरे में"इनाम"को"इनआम"कर लें और सानी मिसरे को इस तरह लिखें:-
"प्यार रुस्वा हो वो अंजाम मुझे मत देना"
चोथे शैर का सानी मिसरा इस तरह लिखें:-
"बे वफ़ाई का कभी जाम मुझे मत देना"
एक बात और साझा करूँगा कि "मत"शब्द उर्दू में मतरूक है, लेकिन इस पर अमल होते कम ही देखा है ।
Comment by Samar kabeer on March 1, 2016 at 9:11pm
मेरा कमेंट कहाँ गया?

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2016 at 8:51pm

आदरणीया प्राची जी , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , सभी अशआर बढिया हुये हैं , दिली बधाइयाँ आपको ।

Comment by Sushil Sarna on March 1, 2016 at 8:20pm

तेरी साँसों से जुड़ी हैं मेरी साँसे हमदम
रुखसती का कभी पैगाम मुझे मत देना।

वाह आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी कितना खूबसूरत अहसासों के अशआर हैं आपकी इस ग़ज़ल में .... दिल से बधाई स्वीकार करें आदरणीया।

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