For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उड़ रही हो तो ज़रा पंख क़तर जाती हूँ (एक ग़ज़ल)....//डॉ. प्राची

2122.1122.1122.22

मेरी हस्ती ही मिटा दे! यूँ अखर जाती हूँ।
उसकी नफरत का ज़हर देख सिहर जाती हूँ।

कश्ती कागज़ की हूँ पतवार कहाँ हासिल है,
बह चले धार जिधर संग उधर जाती हूँ।

आ! बिछा दे, मेरी राहों में ज़रा अंगारे
जितना जलती हूँ मैं उतना ही निखर जाती हूँ।

ज़िन्दगी देख मुझे खुश, यूँ पलट कर बोली-
"उड़ रही हो तो ज़रा पंख क़तर जाती हूँ !"

बुतशुदा काँच हूँ पत्थर के शहर में साकी,
जोड़ लो कितना भी, हर बार बिखर जाती हूँ।

आस की डोर मुझे संग ही ले जाए, पर
चाहतों में बँधी हर बार ठहर जाती हूँ।

आइना पूछ ही बैठा जो मिलीं नज़रें तो,
पर उसे कह न सकी, हाय! "किधर जाती हूँ?"

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 537

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 3, 2016 at 4:15pm

 प्रयास पर हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद आ० गिरिराज भंडारी जी, आ० रवि शुक्ल जी, आआ० श्याम नारायण वर्मा जी, आ० धर्मेन्द्र जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 3, 2016 at 4:13pm

आ० नादिर खान जी,

मतले के लिए आपका सुझाव सुन्दर है , पर ऊला मिसरे का भाव बदल रहा है उससे.

मतले को इस तरह कहा है अब, देखिएगा 

क़त्ल कर दे न मुझे ! सोच के डर जाती हूँ 

उसकी नफरत का ज़हर देख सिहर जाती हूँ 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 2, 2016 at 10:27am
ख़ूबसूरत अश’आर हुए हैं आदरणीया प्राची जी, दाद कुबूल करें।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 1, 2016 at 9:53pm

आ! बिछा दे, मेरी राहों में ज़रा अंगारे
जितना जलती हूँ मैं उतना ही निखर जाती हूँ ---   लाजवाब !!  आदरनीया प्राची जी बढ़िया गज़ल के लिए हादिक बधाई आपको ।

Comment by नादिर ख़ान on March 1, 2016 at 6:32pm

आदरणीया प्राची जी खूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद बहुत अच्छे भाव उभर कर आये हैं ।
क्या मतले के शेर को ऐसा कहा जा सकता है। ..

मेरी हस्ती ही मिटा दे! जो अखर जाती हूँ।
इतनी नफरत से न यूँ देख सिहर जाती हूँ।

Comment by Ravi Shukla on March 1, 2016 at 5:48pm

आदरणीया प्राची जी सुन्‍दर गजल के लिये बधाई स्‍वीकार करें ।

Comment by Shyam Narain Verma on February 29, 2016 at 12:37pm
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ....हार्दिक बधाई ! 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service