For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

महज इक आदमी है तू - ग़ज़ल-(लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' )

1222    1222    1222    1222
**********************************
भला तू देखता क्यों है महज इस आदमी का रंग
दिखाई क्यों न देता  है धवल  जो दोस्ती  का रंग /1

सुना  है  खूब  भाता है  तुझे  तो  रंग भड़कीला
मगर जादा बिखेरे है  छटा सुन सादगी का रंग/2

किसी को जाम भाता है किसी को शबनमी बँूदें
किसे मालूम है कैसा भला इस तिश्नगी का रंग/3

महज इक आदमी है तू न ही हिंदू न ही मुस्लिम
करे बदरंग क्यों बतला तू बँटकर जिंदगी का रंग/4

अगर बँटना ही है तुझको तो  बँट तू रोशनी जैसा
कि बँट  रंगीन  हो  जाता  हमेशा  रोशनी का रंग/5

अभी तक मीर गालिब थे  चले  आए हैं साहिर भी
‘मुसाफिर’ खूब महफिल में जमेगा शायरी का रंग/6

मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 890

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2016 at 11:24am

आ0 भाई राम आसरे जी, उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2016 at 11:23am

आ0 राहिला जी उत्साहजनक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद।उपस्थिति बनाए रखें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2016 at 11:23am

आ0 भाई रवि शुक्ला जी गजल की प्रशंसा के लिए आभार । अपको गजल पसंद आई लेखन सफल हुआ ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2016 at 11:23am

आ0 भाई मिथिलेश जी आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया से उत्साह दुगुना हुआ हार्दिक धन्यवाद । स्नेह बनाए रखें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2016 at 11:22am

आ0 भाई मदन मोहन जी हार्दिक आभार ।

Comment by Ram Ashery on February 13, 2016 at 4:53pm

very nice

congratulation

Comment by Rahila on February 9, 2016 at 1:00pm
"अगर बँटना ही है तुझको तो बँट तू रोशनी जैसा
कि बँट रंगीन हो जाता हमेशा रोशनी का रंग/5"वाह. ..पूरी की ग़ज़ल शानदार हुई लेकिन इस शेर का जबाब नहीं । बहुत बधाई आपको आदरणीय धामी सर जी! । सादर
Comment by Ravi Shukla on January 29, 2016 at 11:03am

आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी, बहुत ही शनदार ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद कुबूल करें दो शेर बहुत ही ज्‍यादा पंसद आए

किसी को जाम भाता है किसी को शबनमी बँूदें
किसे मालूम है कैसा भला इस तिश्नगी का रंग  ..............बाकई लाज़वाब शेरऔर

अगर बँटना ही है तुझको तो  बँट तू रोशनी जैसा
कि बँट  रंगीन  हो  जाता  हमेशा  रोशनी का रंग  ....... बहुत ही बढि़या प्रतीक लिया है आपने । बधाई स्‍वीकार करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 28, 2016 at 12:24am

आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी, बहुत ही शनदार ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद हाज़िर है-

भला तू देखता क्यों है महज इस आदमी का रंग
दिखाई क्यों न देता  है धवल  जो दोस्ती  का रंग /1................... शानदार मतला 

सुना  है  खूब  भाता है  तुझे  तो  रंग भड़कीला
मगर जादा बिखेरे है  छटा सुन सादगी का रंग/2.............. वाह वाह 

किसी को जाम भाता है किसी को शबनमी बँूदें
किसे मालूम है कैसा भला इस तिश्नगी का रंग/3...............लाज़वाब शेर 

महज इक आदमी है तू न ही हिंदू न ही मुस्लिम
करे बदरंग क्यों बतला तू बँटकर जिंदगी का रंग/4............. बहुत खूब 

अगर बँटना ही है तुझको तो  बँट तू रोशनी जैसा
कि बँट  रंगीन  हो  जाता  हमेशा  रोशनी का रंग/5.............अद्भुत शेर.... आपने भौतिकी सिद्धांत को प्रतीक रूप में अद्भुत प्रयोग किया है. इस शानदार ग़ज़ल पर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं.

Comment by Madan Mohan saxena on January 27, 2016 at 12:51pm

भला तू देखता क्यों है महज इस आदमी का रंग
दिखाई क्यों न देता है धवल जो दोस्ती का रंग /1

सुना है खूब भाता है तुझे तो रंग भड़कीला
मगर जादा बिखेरे है छटा सुन सादगी का रंग/2

किसी को जाम भाता है किसी को शबनमी बँूदें
किसे मालूम है कैसा भला इस तिश्नगी का रंग/3

महज इक आदमी है तू न ही हिंदू न ही मुस्लिम
करे बदरंग क्यों बतला तू बँटकर जिंदगी का रंग/4

अगर बँटना ही है तुझको तो बँट तू रोशनी जैसा
कि बँट रंगीन हो जाता हमेशा रोशनी का रंग/5

अभी तक मीर गालिब थे चले आए हैं साहिर भी
‘मुसाफिर’ खूब महफिल में जमेगा शायरी का रंग

शानदार ग़ज़ल

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
20 hours ago
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service